कोलकाता
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री को यूनिवर्सिटी का चांसलर नियुक्त करने वाले बिल को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने इसे अनुपालन की अपूर्णता के आधार पर वापस कर दिया। गौरतलब है कि 14 जून को पश्चिम बंगाल की यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति पद पर राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री की नियुक्ति वाला विधेयक विधानसभा में पास हुआ था।
राजभवन की एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि विधानसभा सचिवालय से राज्यपाल के विचार के लिए विधेयक भेजे गए। इन विधेयकों में राज्य के विश्वविद्यालयों के चांसलर सीएम को बनाने का विधेयक भी शामिल है। राज्यपाल ने बिल को वापस भेज दिया। इसे वापस करते हुए राज्यपाल ने टिप्पणी भी की कि यह विधेयक अधूरे इनपुट के साथ भेजा गया जो अनुचित है।
क्या है कुलाधिपति विधेयक?
पश्चिम बंगाल कैबिनेट ने 6 जून को राज्यपाल जगदीप धनखड़ की जगह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राज्य के सभी सरकारी विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति बनाने के प्रस्ताव पर मंजूरी दी थी। विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर ममता सरकार और राज्यपाल धनखड़ के बीच चल रही खींचतान के बाद ये कदम उठाया गया था। राज्यपाल धनखड़ का आरोप था कि राज्य सरकार ने उनकी सहमति के बिना कई कुलपति नियुक्त किए हैं। 14 जून को यह बिल विधानसभा से पारित हो गया था।
सरकार के पास क्या विकल्प?
पश्चिम बंगाल सरकार के लिए चुनौती यह है कि यह बिल राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद ही कानून की शक्ल ले सकेगा। अब सरकार राज्यपाल की ओर से बताए गए सुझावों पर विचार करते हुए संशोधन बिल पारित कर सकती है और इसे फिर से राज्यपाल के पास भेज सकती है। हालांकि ममता सरकार ने यह भी संकेत दिए थे कि अगर राज्यपाल इस बिल को मंजूरी देने में आनाकानी करते हैं तो प्रस्ताव लागू करने के लिए एक अध्यादेश लाया जा सकता है।
हालांकि यह अस्थायी हल होगा क्योंकि अध्यादेश तब ही लाए जा सकते हैं जब विधानसभा का सत्र न चल रहा हो। साथ ही अगर कोई अध्यादेश विधायिका द्वारा स्वीकार नहीं होता है या फिर वापस नहीं लिया जाता है तो यह राज्य विधानमंडल के पुन: संयोजन के 6 हफ्ते के बाद एक्सपायर हो जाते हैं।
राज्यपाल के पास क्या हैं ऑप्शन?
संविधान के आर्टिकल 213 के अनुसार, राज्यपाल धनखड़ या तो विधेयक को अपनी सहमति दे सकते हैं, इस पर रोक लगा सकते हैं या फिर पुनर्विचार के लिए विधानसभा में वापस भेज सकते हैं। राज्यपाल बिल को वापस कर चुके हैं और अब अगर विधानसभा में संशोधनों के साथ या बिना संशोधन के बिल दोबारा पास हो जाता है और उसे गवर्नर के पास भेजा जाता है तो राज्यपाल के पास अपनी सहमति देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।
राज्यपाल के पास एक चौथा विकल्प भी है। वह राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को सुरक्षित रख सकता है। राष्ट्रपति के पास अपनी सहमति देने के बजाय, राज्यपाल को इसे पुनर्विचार के लिए विधानसभा भेजने का निर्देश देने का विकल्प होता है। विधानसभा पुनर्विचार कर सकती है और इसे बदलाव या बिना बदलाव के वापस भेज सकती है। लेकिन उस मामले में भी राष्ट्रपति अपनी सहमति को रोक सकता है क्योंकि संविधान ऐसे मामलों में फैसले के लिए उस पर कोई समय सीमा नहीं लगाता है।
गुजरात और तमिलनाडु भी लागू कर चुके हैं कानून
इससे पहले तमिलनाडु और गुजरात में राज्य सरकारों को स्टेट रन यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर नियुक्त करने का अधिकार देने वाला कानून पारित हो चुके हैं। हालांकि यहां राज्यपाल चांसलर के रूप में बने रहते हैं। गुजरात में 2015 में यह कानून लागू होने के सात साल बाद तमिलनाडु ने इसी साल अप्रैल में इसे पारित किया था।