मोदी के बनारस में ऐसा क्‍या हुआ जिससे लोगों का फूटा गुस्‍सा, ‘जजिया’ टैक्‍स की आई याद

नई दिल्‍ली

प्रधानमंत्री मोदी का बनारस बुधवार को अचानक सुर्खियों में आ गया। माइक्रोब्‍लॉगिंग साइट ट्विटर पर लोग मुगल काल में लगने वाले जजिया टैक्‍स की दुहाई देने लगे। नौबत यहां तक आ गई कि कुछ घंटों के भीतर इस फैसले को वापस लेना पड़ा। पूरा बवाल वाराणसी के नमो घाट को लेकर हुआ। नए-नवेले बने नमो घाट पर घूमने के लिए टिकट लगाया गया था। मंगलवार को यह फैसला अमल में आया था। इसके मुताबिक, नमो घाट पर 4 घंटे बिताने के लिए 10 रुपये का टिकट लगाया गया था। बात यही खत्‍म नहीं थी। टू-व्‍हीलर और कार पार्किंग के लिए अलग से शुल्‍क वसूलने का बंदोबस्‍त किया गया था। इसके विरोध में लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दर्ज की। मुगलों के जमाने के जजिया टैक्‍स का जिक्र किया जाने लगा। यहां जानते हैं कि आखिर मुगलों के जमाने का जजिया टैक्‍स क्‍या था और कैसे इस पूरे मामले की कड़ी इससे जुड़ गई।

क्‍या था जजिया टैक्‍स?
जजिया एक प्रकार का धार्मिक टैक्‍स था। यह टैक्‍स गैर-मुस्लिमों से वसूला जाता था। मुगल शासकों के समय यह टैक्‍स लगता था। टैक्‍स की इस रकम को सैलरी, दान और पेंशन बांटने के लिए इस्‍तेमाल किया जाता था। ऐसा भी कहा जाता है कि इस तरह की टैक्‍स की रकम को मुस्लिम शासकों के निजी खजानों में जमा किया जाता था। अपने शासन में अकबर ने जजिया को खत्‍म किया था। हालांकि, बाद में औरंगजेब ने दोबारा इसे वसूलना शुरू कर दिया था। सबसे पहले मुहम्‍मद बिन कासिम ने भारत में सिंध प्रांत के देवल में जजिया टैक्‍स लगाया था। दिल्‍ली सल्‍तनत में फिरोज तुगलक ऐसा टैक्‍स लगाने वाला पहला सुल्‍तान था। दरअसल, इस्‍लामी राज्‍य में सिर्फ मुस्लिमों को ही रहने की इजाजत थी। अगर कोई गैर-मुसलमान राज्‍य में रहना चाहे तो उसे जजिया टैक्‍स देना होता था।

नमो घाट से कैसे जुड़ गया कनेक्‍शन?
नमो घाट पर जाने के लिए टिकट लगने की बात आते ही लोगों ने इसे जजिया टैक्‍स से जोड़ दिया। ट्विटर पर तमाम यूजर जजिया टैक्‍स की बात करने लगे। एक यूजर ने लिखा कि इतिहास में कभी नहीं हुआ जब गंगा दर्शन के लिए शुल्‍क वसूला गया हो। खिड़किया घाट (नमो घाट) पर अब 4 घंटे के लिए 10 रुपये का टिकट लिया जाएगा। बड़ी संख्‍या में लोग टिकट को शेयर करने लगे। इसमें 12 साल से कम बच्‍चों को बाहर रखा गया है। मेनटिनेंस और दूसरी सुविधाओं के लिए टिकट की यह व्‍यवस्‍था की गई थी।

कैसे लिया गया टिकट लगाने का फैसला?
यह फैसला मंडलायुक्त दीपक अग्रवाल और नगर आयुक्त के निर्देश पर लिया गया था। इस बारे में स्मार्ट सिटी के पीआरओ शाकंभरी ने एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत भी की। उन्‍होंने बताया था कि नमो घाट शहर के बिल्कुल किनारे पर बना है। यहां आने वाली भीड़ में बहुत से असामाजिक तत्व भी होते हैं। ये घाट पर उपद्रव करते हैं। शराब की बोतलें तोड़ते हैं। इसके अलावा घाट पर कई युवा जोड़े भी आते हैं। इनका व्‍यवहार सामाजिक नहीं होता है। सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के साथ मेंटिनेंस के लिए शुल्क लगाया गया है। हालांकि, भारी विरोध-प्रदर्शन के बीच कमिश्नर के आदेश पर टिकट रद्द कर दिया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि अब लोग दोबारा बिना टिकट घाट पर जा सकेंगे।

नमो घाट का उद्घाटन 7 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने वाले थे। इस घाट को पहले ख‍िड़क‍िया घाट के नाम से जाना जाता था। यह और बात है कि पीएम के आने के महज कुछ घंटे पहले जिला प्रशासन ने उद्घाटन का फैसला रद्द कर दिया था। जिला प्रशासन ने वजह बताई थी कि नमो घाट के दूसरे चरण का काम अभी पूरा नहीं हुआ है। लोगों की नाराजगी इस कारण भी थी कि आखिर अधूरे प्रोजेक्ट पर शुल्क कैसे लगाया जाने लगा।

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