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बांग्लादेश में आरक्षण पर संग्राम: 1971 की जंग से है कनेक्शन, हसीना के ‘गद्दार’ कहने से भड़की आग

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नई दिल्ली

अगर भारत ने हैदराबाद में घुसने की कोशिश की तो उसे डेढ़ करोड़ हिंदुओं की राख और हड्डियों के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा। यह धमकी आजादी के बाद भारत में मिलने से इनकार करने वाले हैदराबाद रियासत के निजाम की पैरामिलिट्री फोर्स रजाकार वाहिनी के नेता की थी। हैदराबाद के विलय के साथ इन रजाकारों का वजूद वैसे तो खत्म हो चला था, मगर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान ये फिर अस्तित्व में आ गए। दरअसल, रजाकार वाहिनी का गठन पाकिस्तान के जनरल टिक्का खान ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में किया था।

इस रजाकार वाहिनी के सदस्य युद्ध के दौरान नागरिकों की हत्या, लूटपाट और बलात्कार सहित युद्ध अपराध के गुनहगार रहे हैं। पाकिस्तानी सेना के साथ सहयोग करने वाले स्थानीय रूप से भर्ती किए गए अर्धसैनिक बल ‘रजाकार वाहिनी’ के सदस्यों को जब-तब बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण द्वारा ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ के लिए मौत की सजा सुनाई जाती रही है। आज बांग्लादेश में रजाकार का इस्तेमाल अपमानजनक शब्द “गद्दार” के रूप में किया जाता है। हाल ही में बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ सड़कों पर उतरे छात्रों का प्रदर्शन तब और हिंसक हो गया, जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने प्रदर्शन्कारी छात्रों को रजाकार कह दिया।

हैदराबाद के रजाकार जब निजाम के इशारे पर कत्लेआम करते
आजादी से पहले हैदराबाद में भारत के एजेंट जनरल रहे डॉ. केएम मुंशी की लिखी किताब ‘The end of an era ‘ में कहा गया कि भारत की आजादी के बाद देश के सामने कश्मीर मुद्दे जैसी कई समस्याएं थीं। किसी तरह की फसाद से बचने के लिए निजाम हैदराबाद और भारत सरकार के बीच स्टैंडस्टिल समझौता हुआ। इसमें अलग देश की मांग कर रहे निजाम को कुछ छूट देने की बात थी। साल भर के इस समझौते के बीच उस्मान अली के रजाकारों ने जमकर आतंक मचाया। निजाम के संकेत पर ये रजाकार कत्लेआम करते और हैदराबाद की 85 फीसदी हिंदू आबादी की औरतों के साथ रेप करते। बहुत से लोगों को धर्मांतरण करने पर मजबूर करते।

रजाकारों के नेता ने जब भारत को दे डाली थी धमकी
तत्कालीन राज्य सचिव वीपी मेनन की किताब ‘द इंटीग्रेशन ऑफ स्टेट्स’ में रजाकारों के नेता कासिम रिजवी के एक भाषण का अंश है। कासिम ने ललकारते हुए कहा था कि भारत ने हैदराबाद में घुसने की कोशिश की तो उसे डेढ़ करोड़ हिंदुओं की राख और हड्डियों के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। इसके बाद 13 सितंबर, 1948 को इंडियन आर्मी ने ऑपरेशन पोलो के जरिए निजाम की रजाकारों की बर्बर सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। रजाकार वैसे तो फारसी का शब्द है, जिसका अर्थ है स्वयंसेवक। मगर, अब यह अपमानजनक शब्द के रूप में लिया जाता है।

क्या है बांग्लादेश में 56 फीसदी कोटा सिस्टम
बांग्लादेश का गठन 1971 में हुआ और इसी साल से वहां पर 56 फीसदी कोटा सिस्टम लागू हो गया था। सरकारी नौकरियों में मिलने वाले 56 फीसदी आरक्षण में से 30 फीसदी आरक्षण स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों को, 10 फीसदी महिलाओं को, 10 फीसदी पिछड़े जिलों में रहने वाले लोगों को, मूल निवासियों को 05 फीसदी और 01 फीसदी दिव्यांग लोगों को मिलता था। भारत की तरह बांग्लादेश में भी सरकारी नौकरियां इनकम का स्थायी सोर्स मानी जाती हैं। करीब 4 लाख ग्रेजुएट्स हर साल 3 हजार सरकारी नौकरियां पाने के लिए परीक्षाएं देते हैं।

2018 में खत्म कर दिया गया था 56 फीसदी कोटा
1971 से मिल रहे 56 फीसदी आरक्षण के खिलाफ 2018 में छात्र सड़कों पर उतरे थे। 4 महीने तक चले इस प्रदर्शन के आगे तब सरकार को झुकना पड़ा था। सरकार ने पूरा का पूरा आरक्षण ही खत्म कर दिया था। आइए ग्राफिक से जानते हैं कि दुनिया के किन देशों में कोटा सिस्टम किसी न किसी रूप में लागू है।

अब किस आरक्षण के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन
बीते जून में बांग्लादेश की एक अदालत ने आरक्षण दिए जाने के पक्ष में फैसला सुनाया। दरअसन, ढाका हाई कोर्ट ने कहा कि जो भी आरक्षण वापस लिए गए थे उसको फिर से लागू किया जाए। अदालत के इसी फैसले के खिलाफ अब छात्र प्रदर्शन पर उतर आए हैं। छात्रों का कहना है कि हम 56 फीसदी आरक्षण को नहीं मानेंगे। स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाला 30 फीसदी आरक्षण नहीं दिया जाए। तर्क यह दिया जाता है कि बांग्लादेश जंग के हीरो अब बूढ़े हो चुके हैं। उनकी औलादें भी बूढ़ी हो चली हैं। ऐसे में उनके पोते-पोतियों को आरक्षण देने का कोई मतलब नहीं है। सरकारी नौकरियों में किसी का भी चुनाव मेरिट से होना चाहिए।

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