मंदिर-मस्जिद विवाद पर मोहन भागवत का कहना क्या मान लेंगे हिंदू? चुनौतियां कई हैं

नई दिल्ली,

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को एक कार्यक्रम में बोलते हुए देश में सद्भावना की वकालत की और मंदिर-मस्जिद को लेकर शुरू हुए नए विवादों पर नाराजगी जाहिर की है. इस बयान का मतलब सीधे तौर पर उत्तर प्रदेश में संभल और राजस्थान में अजमेर शरीफ में मंदिर होने के दावे जैसे विवाद अचानक बढने से लिया जा रहा है. मोहन भागवत जो कह रहे हैं उससे इनकार नहीं किया जा सकता. शायद यही कारण है कि विपक्ष के कुछ नेताओं ने आगे बढ़कर उनकी बात का समर्थन भी किया है. पर सवाल उठता है कि वो जो कह रहे हैं उसके लिए वो किस हद तक आगे आ्एंगे? क्योंकि बयान देना अलग बात है , और उस बयान के धरातल पर उतारने के लिए पहल किस लेवल की होती है यह अलग बात है.

अलग अलग समूहों और संगठनों में बंटा हिंदू क्‍या मानेगा भागवत की बात?
एक सवाल ये उठता है कि क्या संघ देश के सभी हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करता है. इसका जवाब भी बहुत पेचीदा है. क्‍योंकि मुस्लिम और ईसाई समुदायों की तरह हिंदू धर्म किसी एक सेक्ट तो बंधा नहीं है. बहुत से सेक्ट हैं और सभी में इतने बड़े अंतर हैं कि बाहर वाला चकरा जाए. दूसरी बात यह भी है कि संघ के अलावा भी हिंदू धर्म के बड़े झंडाबरदार हैं. जैसे मंहत अवैद्यनाथ, दिग्विजयन नाथ, सावरकर आदि हिंदू महासभा से जुड़े रहे हैं. महाराष्ट्र में शिवसेना बनाकर बाला साहब ठाकरे ने खुद को हिंदू हृदय सम्राट का दर्जा हासिल किया. यहां तक कैबिनेट मिशन के सामने हिंदुओं के रिप्रजेंटशन के लिए जिन्ना का कहना था कि कांग्रेस की बजाए विनायक दामोदर सावरकर से बात होनी चाहिए. मतलब साफ है कि आरएसएस की बात को देश के सभी हिंदू कितना तवज्जो देंगे, इस पर एकमत नहीं हुआ जा सकता. इतना ही नहीं, मान लीजिये कि संघ प्रमुख की भावना के अनुसार संघ परिवार मान भी जाए कि उन्‍हें राम मंदिर के अलावा सिर्फ काशी-मथुरा के मंदिरों तक ही सीमित रहना है, लेकिन क्‍या बाकी हिंदू समुदाय उनकी बात पर सहमत होगा?

देश के कई अलग-अलग शहरों में उठ रहे हैं मंदिर मस्जिद विवाद
अयोध्या में मंदिर बनने के बाद देश भर के दर्जनों शहरों से ऐसा खबरें आ रही हैं कि यहां मस्जिद के नीचे मंदिर कभी रहा है. हर शहर की तासीर अलग अलग है.कई शहरों में लोकल नेतृत्व उभर रहा है. उत्तर प्रदेश ही नहीं मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी कई जगह मंदिर-मस्जिद विवाद कोर्ट में हैं, और न्‍यायालयीन कार्यवाही बहुत आगे तक पहुंच गई है. ये सभी केस अलग अलग व्‍यक्ति और संगठन लड़ रहे हैं. कई जगहों पर स्‍थानीय जनभावना भी इससे जुड़ी हुई है. क्‍या संघ प्रमुख की भावना से ऐसे सभी लोगों को सहमत कराना आसान होगा?

क्या मुस्लिम इस बात कों मानेंगे कि आक्रांताओं ने जो किया वो गलत किया
दरअसल मोहन भागवत की शांति की बात कर रहे हैं. यह जरूरी भी है कि देश एक बार फिर मंदिर मस्जिद का विवाद नहीं चाहता है. देश को 1947 तक अगर विकसित देश बनाना है तो देश की 25 परसेंट आबादी से विवाद करके लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता. पर सवाल यह है कि अगर हिंदू यह मान भी लें कि अब वे किसी भी मंदिर की बात नहीं उठाएंगे तो क्या मुस्लिम यह मानेंगे कि जो आक्रांताओं ने किया वो गलत किया. दक्षिण अफ्रीका की शांति से भारत को सबक सीखना चाहिए. वहां अंग्रेजों ने मान लिया कि उनके पूर्वजों ने जो अत्याचार किए वो गलत थे. आज गोरे और काले दोनों मिलकर एक साथ शांति से रह रहे हैं.

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