मुंबई,
महायुति में मंत्री पद न मिलने से नाराज एनसीपी (AP) नेता छगन भुजबल ने सीएम देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की. इसके बाद भुजबल प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए बताया कि मुख्यमंत्री से उनकी मुलाकात के वक्त क्या-क्या बातें हुई हैं. उन्होंने कहा, “मैं और मेरे चचेरे भाई समीर भुजबल देवेंद्र फडणवीस से मिले, हमने राजनीति और सामाजिक जैसे कई मुद्दों पर चर्चा की. उन्होंने हाल के कई मुद्दों में हमारी बातें सुनी.”
छगन भुजबल ने बताया, “सीएम फडणवीस ने माना कि महायुति की जीत में ओबीसी का वोट शेयर और उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण था. इसलिए उन्होंने भरोसा दिलाया कि हम ओबीसी समुदाय और उनके नेताओं का ख्याल रखेंगे.”
‘फडणवीस को पता है…’
भुजबल ने बताया, “CM ने कहा कि मुझे 8-10 दिन का वक्त दीजिए, हम फिर मिलेंगे और तय करेंगे कि ओबीसी और उनके नेताओं के कल्याण के लिए हम क्या कर सकते हैं.” मंत्रिमंडल से हटाए जाने के सवाल पर छगन भुजबल ने कहा, “मैं जानता हूं कि इस स्थिति से लोग परेशान हैं, देवेंद्र फडणवीस को इस बारे में पता है.”
इससे पहले छगन भुजबल आरोप लगाया था कि फडणवीस मुझे कैबिनेट में शामिल करने पर जोर दे रहे थे, लेकिन एनसीपी के पार्टी नेता ने अलग फैसला लिया. दिलचस्प बात यह है कि भुजबल को कैबिनेट से हटाए जाने के बाद से अजित पवार ने उनसे मुलाकात नहीं की है.
क्यों नाराज हैं छगन भुजबल?
पिछले दिनों छगन भुजबल ने दावा किया कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस उन्हें कैबिनेट में शामिल करना चाहते थे, लेकिन फैसला अजित पवार ने किया. 77 वर्षीय विधायक भुजबल पहले महायुति सरकार में मंत्री थे . लेकिन इस बार उन्हें जगह नहीं दी गई है.
भुजबल ने कहा कि एनसीपी में फैसले अजित पवार लेते हैं, जैसे बीजेपी में देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना में एकनाथ शिंदे लेते हैं. एक दिन पहले दिए गए अपने बयान ‘जहां नहीं चैन, वहां नहीं रहना’ पर सफाई देते हुए भुजबल ने कहा कि वह बुधवार को एनसीपी कार्यकर्ताओं और अपनी येवला सीट के लोगों से चर्चा के बाद कुछ कहेंगे. भुजबल ने कहा, ‘मुझे मंत्री न बनाए जाने का कोई दुख नहीं, लेकिन जो व्यवहार मेरे साथ हुआ, उससे मैं आहत हूं.’
नासिक में मीडिया से बात करते हुए भुजबल ने कहा था कि उन्हें मई में लोकसभा चुनाव लड़ने को कहा गया था, लेकिन नाम फाइनल नहीं हुआ. फिर राज्यसभा सीट की पेशकश की गई, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया. उन्होंने कहा, ‘मैंने नासिक से लोकसभा चुनाव लड़ने का सुझाव स्वीकार किया. जब मैं राज्यसभा जाना चाहता था, तो मुझे विधानसभा चुनाव लड़ने को कहा गया. अब मुझे राज्यसभा सीट ऑफर की जा रही है. क्या मैं कोई खिलौना हूं? आप जब कहें खड़ा हो जाऊं और जब कहें बैठ जाऊं? मेरे क्षेत्र के लोग क्या सोचेंगे अगर मैं इस्तीफा दे दूं?’