नई दिल्ली
धोखाधड़ी के जरिए बैंक अकाउंट से पैसा निकालने वालों पर सरकार सख्ती से पेश आ रही है। सरकार बैंकों को इंडियन साइबर क्राइम कॉर्डिनेशन सेंटर (I4C) के साथ सीधे काम करने के लिए प्रेरित कर रही है। इसका मकसद वित्तीय धोखाधड़ी की बढ़ती समस्या से निपटना है।
वित्तीय सेवा विभाग ने सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में कहा गया है कि सभी बैंक इस महीने यानी जनवरी के अंत तक I4C के बैक-एंड सिस्टम के साथ सीधे इंटीग्रेट हो जाएं। पत्र में लिखा है कि I4C के साथ API (एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस) इंटीग्रेशन को पूरा करने का अनुरोध किया जाता है।
क्या है I4C इंटीग्रेशन?
I4C सरकार की एक पहल है। इसका मकसद भारत में साइबर क्राइम को रोकना है। इसके लिए सरकार ने एक वेबसाइट i4c.mha.gov.in भी बनाई है। यहां साइबर क्राइम से जुड़ी अवेयरनेस और संबंधित सारी जानकारियां अपडेट की जाती हैं।
दरअसल, इस समय ऐसे काफी मामले आ रहे हैं जब धोखेबाज कभी केवाईसी तो कभी अकाउंट ब्लॉक होने के नाम पर लोगों के अकाउंट खाली कर रहे हैं। ये धोखेबाज फर्जी अकाउंट खुलवाते हैं और उनकी रकम दूसरे अंकाउंट में ट्रांसफर कर लेते हैं। सरकार का मकसद ऐसी धोखाधड़ी रोकना और फर्जी अकाउंट की पहचान कर उन्हें ब्लॉक करना है।
I4C योजना को अक्टूबर 2018 में शुरू किया गया था। हालांकि इसका उद्घाटन जनवरी 2020 में हुआ। जून 2020 में I4C की सिफारिश पर भारत सरकार ने 59 चीनी मोबाइल ऐप पर बैन लगाया था।
कैसे काम करता है यह सिस्टम?
बैंकों के I4C के साथ रजिस्टर्ड होने पर वित्तीय धोखाधड़ी को तुरंत रोका जा सकेगा। इसमें सरकार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के इस्तेमाल पर भी जोर दे रही है। अगर कोई धोखेबाज किसी शख्स के अकाउंट से पैसे निकाल एक या इससे ज्यादा अकाउंट में ट्रांसफर करता है। ये बैंक अकाउंट फर्जी होते हैं यानी किसी और शख्स के नाम पर होते हैं। पीड़ित अगर इस धोखाधड़ी की शिकायत तुरंत करता है तो इस पर तुरंत एक्शन लिया जाता है। अभी I4C में कुछ बैंक शामिल हैं। इनमें पंजाब नेशनल बैंक भी है।
शिकायत मिलते ही यह सिस्टम I4C इंटीग्रेटेड बैंकों के बीच तुरंत काम करना शुरू कर देता है। यानी यह कम्युनिकेशन इन बैंकों के बीच होता है जिस बैंक अकाउंट से रकम निकाली गई है और जिस बैंक के अकाउंट में जमा की गई है। यह जानकारी तुरंत बैंक को भेजी जाती है। जानकारी मिलते ही बैंक उस अकाउंट के ट्रांजेक्शन पर रोक लगा देता जिसमें रकम ट्रांसफर की गई है। अगर वह अकाउंट फर्जी पाया जाता है तो उसे ब्लॉक कर दिया जाता है। बाद में वह रकम पीड़ित के अकाउंट में ट्रांसफर कर दी जाती है।
कैसे रुकेगी रकम?
अगर किसी शख्स के साथ ऑनलाइन धोखाधड़ी हो जाती है उसे टोल-फ्री नंबर 1930 पर कॉल करना होगा। यह ऑनलाइन साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर है। इसके बाद उसे पूरे मामले को बताना होता है। जानकारी मिलते ही I4C सिस्टम काम करता है और उस ट्रांजेक्शन को रोकने की कोशिश करता है। कई मामलों में समय पर शिकायत करने से पीड़ित की रकम वापस भी मिली है।