USAID की फंडिंग, भारत में साजिश की स्क्रिप्ट… ट्रंप का भाषण लिखने वाले अधिकारी ने बताईं खतरनाक बातें

नई दिल्ली,

अमेरिकी प्रशासन में दिग्गज अधिकारी रहे माइक बेंज ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि अमेरिका भारत-बांग्लादेश समेत दुनिया के कई देशों की अंदरुनी राजनीति में दखल दे रहा था. बेंज ने आरोप लगाया है कि अमेरिकी फॉरेन पॉलिसी के अंदर मौजूद एजेंसियां जिनमें, USAID, थिंक टैंक और दिग्गज टेक कंपनियां शामिल हैं, ने 2019 के आम चुनावों को प्रभावित करने के लिए ऑनलाइन चर्चाओं को मोड़ने की कोशिश की.

माइक बेंज के अनुसार इन कोशिशों का मकसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के हितों के खिलाफ काम करना था. अमेरिका के विदेश विभाग के पूर्व अधिकारी माइक बेंज का दावा है कि भारत-बांग्लादेश के आंतरिक मुद्दों में दखल देने के लिए कई साधनों का इस्तेमाल किया गया. इनमें मीडिया इन्फ्लूएंस, सोशल मीडिया सेंसरशिप और विपक्ष के अभियानों की फंडिंग शामिल थी.

बेंज के अनुसार, अमेरिका समर्थित एजेंसियों ने चुनावों को प्रभावित करने, सरकारों को अस्थिर करने और विदेशी प्रशासनों को वाशिंगटन के रणनीतिक हितों के साथ जोड़ने के लिए डेमोक्रेसी को बतौर ढाल इस्तेमाल किया. इस अधिकारी का दावा है कि इन संस्थाओं ने चुनाव के नैरेटिव को प्रभावित करने के लिए एक साथ काम किया. ये संस्थाएं लोगों में ये बात फैला रही थीं कि मोदी की राजनीतिक कामयाबी काफी हद तक गलतबयानी और गलत सूचना का परिणाम थी. इसी को व्यापक सेंसरशिप का आधार तैयार कर नैरेटिव को तैयार किया गया.

कौन हैं माइक बेंज
सवाल है कि माइक बेंज के बातों का क्या महत्व है? खुद माइक बेंज हैं कौन और वे क्या करते हैं? उनकी बातों को कितनी गंभीरता से लिया जाए. माइक बेंज के बारे में जानकारी इकट्ठा करने पर पता चला कि वे एक पूर्व अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारी हैं, जिन्होंने 2020 से 2021 तक अंतर्राष्ट्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी के लिए उप सहायक सचिव के रूप में कार्य किया. इस भूमिका में, वे साइबर मुद्दों पर अमेरिकी नीति तैयार करने और बड़ी टेक कंपनियों के साथ मिलकर काम करने के लिए जिम्मेदार थे.

अपनी सरकारी सेवा से पहले, उन्होंने व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के लिए भाषण लिखा और प्रौद्योगिकी मामलों पर सलाह दी. ट्रंप अपनी पहली पारी में 2016 से लेकर 2020 तक अमेरिका के राष्ट्रपति थे.सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद माइक बेंज ने गैर सरकारी संगठन फाउंडेशन फॉर फ्रीडम ऑनलाइन नाम का एक संगठन बनाया. ये संगठन डिजिटल सेंसरशिप और मीडिया नैरेटिव का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार करता है.

माइक बेंज लीक हुए दस्तावेजों और अंदरूनी जानकारी पर भी रिपोर्ट तैयार करते हैं. उनके खुलासों ने उन्हें एक व्हिसलब्लोअर के रूप में स्थापित किया है. अपनी रिपोर्ट के आधार पर वे ये साबित करने में जुटे हैं हैं कि कैसे USAID और इसी तरह की संस्थाएं कथित रूप से दुनिया भर में गुप्त रूप से अपना एजेंडा चलाती हैं.

USAID पर गंभीर खुलासे
USAID के बारे में उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अमेरिकी सरकार की इस एजेंसी ने काउंटर मिस इनफॉर्मेशन प्रोग्राम की फंडिंग की. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार ये फंडिग बीजेपी के राष्ट्रवादी अभियानों को दबाने के लिए शुरू किए गए थे.

बेंज का दावा है कि अटलांटिक काउंसिल और ग्लोबल एंगेजमेंट सेंटर जैसे संगठनों ने गलत सूचना को रोकने के बहाने सोशल मीडिया पर अधिक कंटेंट मॉडरेशन के लिए जोर दिया, जबकि वास्तव में उनका ध्यान मोदी समर्थक संदेशों की पहुंच को कम करने पर था.

माइक बेंज ने दावा किया है कि उस समय भारत में चल रही कई काउंटर मिसइनफॉर्मेशन इनीशिएटिव को संभवत: USAID ने अथवा अमेरिकी विदेश नीति की अन्य शाखाओं ने फंडिंग की थी. उनका कहना है कि इन संगठनों को भाजपा के डिजिटल आउटरीच प्रयासों को चुनौती देने के लिए वित्तीय और रणनीतिक समर्थन मिला, जिससे चुनावों से पहले राजनीतिक विमर्श पर और अधिक प्रभाव पड़ा.

गौरतलब है कि 2019 में डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे, जिनका प्रधानमंत्री मोदी से अच्छा संबंध है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार बेंज ने आगे दावा किया कि अमेरिकी सरकार के भीतर मोदी विरोधी अभियान को विदेश विभाग के भीतर अलग गुटों द्वारा चलाया गया था.

ये गुट ट्रम्प प्रशासन में स्वतंत्र रूप से संचालित होते थे. बेंज का मानना है कि विदेश विभाग के भीतर जड़ जमाए नौकरशाही तत्व, जिनमें साइबर नीतियों की देखरेख करने वाले लोग भी शामिल हैं, बिग टेक के साथ सेंसरशिप की कोशिशों में शामिल थे.

उन्होंने दावा किया कि ग्लोबल एंगेजमेंट सेंटर और अन्य अमेरिकी एजेंसियों के अधिकारियों ने सोशल मीडिया कंपनियों को कंटेंट मॉडरेशन रणनीतियों पर सलाह दी, जिसका उद्देश्य दुनिया भर में राष्ट्रवादी राजनीतिक आंदोलनों को सीमित करना था, जिसमें मोदी की भाजपा को अक्सर निशाना बनाया जाता था.

फ़ेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब और ट्विटर बने मोहरा
माइक बेंज का दावा है कि नैरेटिव चेंज के इस खेल में विदेश विभाग ने फ़ेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब और ट्विटर जैसी प्रमुख तकनीकी कंपनियों को भी मोहरा बनाया. उन्होंने बताया है कि अमेरिकी विदेश विभाग ने मोदी समर्थक सामग्री को रोकने के लिए फ़ेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब और ट्विटर जैसी प्रमुख तकनीकी कंपनियों पर प्रभाव डाला.

उनका दावा है कि भारत में राजनीतिक संदेश भेजने के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले व्हाट्सएप को विशेष रूप से प्रतिबंधों के लिए टारगेट किया गया था. बेंज जनवरी 2019 में भारत में मैसेज फॉरवर्ड करने की क्षमता को सीमित करने के व्हाट्सएप के फैसले को बीजेपी की मतदाताओं तक पहुंचने की क्षमता को रोकने के लिए एक जानबूझकर उठाया गया कदम बताते हैं.

निशिकांत दुबे ने संसद में उठाया मुद्दा
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने USAID की फंडिंग का मुद्दा संसद में उठाया. सोमवार को उन्होंने लोकसभा में ये मुद्दा उठाया और सरकार से मांग की कि भारत में उन संगठनों की जांच की जाए जिसे USAID से पैसा मिलता है. उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसे अधिकांश संगठन देश में अशांति पैदा करने का काम करते हैं और इनका कांग्रेस पार्टी से संबंध है. लोकसभा में शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे को उठाते हुए दुबे ने दावा किया कि USAID द्वारा वित्तपोषित संगठनों ने सरकार की अग्निवीर पहल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जाति जनगणना का समर्थन किया और देश में नक्सलवाद का समर्थन किया.

 

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