फाइटर जेट के इंजन से लेकर हाइपरसोनिक मिसाइल तक… भारत देखता रह गया और चीन ने हासिल की आत्मनिर्भरता, खुलासा

बीजिंग

स्वीडिश थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट से पता चलता है की हथियारों के निर्माण में चीन ने करीब करीब आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है। SIPRI के मुताबिक पिछले 5 सालों में चीन के हथियारों के आयात में दो तिहाई की गिरावट आई है। चीन में विदेशी हथियारों को घरेलू टेक्नोलॉजी से रिप्लेस किया जा कहा है। SIPRI की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले पांच वर्षों की तुलना में 2020-24 के बीच चीन के हथियारों के आयात में 64 प्रतिशत की गिरावट आई है। जो बताता है कि चीन की घरेलू हथियार इंडस्ट्री कितनी डेवलप हो चुकी है। चीन में अब हथियारों के डिजाइन से लेकर उनका प्रोडक्शन भी घरेलू स्तर पर करने लगा है। जबकि एक वक्त चीन भी भारत की ही तरह रूसी हथियारों का आयात करता था।

SIPRI के हथियार ट्रांसफर प्रोग्राम के सीनियर रिसर्चर सिमोन वेजमैन ने कहा है कि चीन को दूसरे देशों से आधुनिक हथियारों की खरीददारी बंद करने और हाई-टेक हथियारों को अपने घर में ही बनाने में करीब 30 साल लग गये। SCMP की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा कि “पिछले पांच सालों में चीन ने रूस से मुख्य तौर पर दो ही तरह के हथियार खरीदे हैं। हेलीकॉप्टर और फाइटर जेट्स के इंजन।” उन्होंने कहा कि “अगर आपके पास इसका अनुभव नहीं है तो इनका उत्पादन करना काफी ज्यादा मुश्किल होता है और यही वह जगह है जहां चीन ने शानदार कामयाबी हासिल की है।”

हथियार बनाने में आत्मनिर्भर हो रहा चीन
सिमोन वेजमैन ने कहा कि “चीन अब फाइटर जेट्स, ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और जनरल एयरक्राफ्ट के इंजन खुद बनाने लगा है। हेलीकॉप्टर के मामले में भी यही बात है। चीन अब खुद के घरेलू हेलीकॉप्टर विकसित करने लगा है। चीन ने अब रूसी या यूरोपीय डिजाइनों पर बने हथियारों को चरणबद्ध तरीके से खत्म करना शुरू कर दिया है।” चीन के हथियार कम खरीदने की वजह से एशिया और ओशिनियादेशों की ज्वाइंट हथियार शिपमेंट में 21 प्रतिशत की कमी जर्ज की गई है। जबकि वैश्विक हथियार आयात में इन दोनों क्षेत्र की हिस्सेदारी भी 2015-19 में 41 प्रतिशत से घटकर 33 प्रतिशत हो गई है।

SIPRI की रिपोर्ट में कहा गया है कि जापान इस क्षेत्र का एकमात्र देश था जिसने विदेशों से ज्यादा हथियारों के आयात किए हैं। जापान के हथियार आयात में 93 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। साल 1990-94 के बाद ये पहली बार हुआ है कि हथियार खरीदने वाला शीर्ष 10 देशों से चीन बाहर निकल गया है, जो उसके लिए बड़ी उपलब्धि है। जबकि भारत, पाकिस्तान, जापान और ऑस्ट्रेलिया टॉप-10 हथियार खरीदने वाले देशों में बने हुए हैं। वहीं यूक्रेन, भारत को छोड़कर विदेशी हथियार खरीदने के मामले में टॉप पर पहुंच गया है। इसके अलावा यूरोपीय देशों ने भी हथियारों की खरीददारी बढ़ाई है। ऐसा मुख्य तौर पर यूक्रेन युद्ध की वजह से हुआ है।

चीन अब हथियार खरीदता कम, बेचता ज्यादा है?
चीन अब दुनिया के देशों को हथियार बेचने लगा है। SIPRI के मुताबिक साल 2020-24 में दुनिया के 44 देशों ने चीनी हथियारों का आयात किया है। जिनमें से ज्यादातर देश एशिया और ओशिनिया के हैं। इसके अलावा SIPRI की रिपोर्ट से पता चला है कि पाकिस्तान से सबसे ज्यादा 63 प्रतिशत चीनी हथियार खरीद। चीन अब दुनिया में हथियारों की बिक्री के मामले में टॉप पर आता जा रहा है। चीन दुनिया का चौथा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक बनने के करीब है। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के टॉप-5 हथियार निर्यात देशों में शामिल होने के बाद भी कई देश उससे हखियार खरीदने के मूड में नहीं हैं और इसके पीछे जियो-पॉलिटिकल वजहें हैं।

लेकिन आत्मनिर्भरता अभियान चलाने के बाद भी भारत को उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिल पा रही है। हालांकि भारत ने भी स्वदेशी LCH हेलीकॉप्टर और LCA तेजस जैसे फाइटर जेट बनाए हैं, लेकिन इनके इंजन का हमें आयात करना पड़ता है। अमेरिका पर इंजन के लिए निर्भरता की वजह से ही HAL अभी तक तेजस की सप्लाई नहीं कर पा रहा है। इसके अलावा भारत अपना स्वदेशी फिफ्थ जेनरेशन फाइटर जेट बना रहा है, लेकिन उसके निर्माण में कम से कम 10 साल और लगेंगे। लेकिन उसके भी ज्यादातर कंपोनेंट्स विदेशी होंगे।

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