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Wednesday, July 2, 2025
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‘मछुआरा आयोग सिर्फ दिखावा’ मुकेश सहनी का CM नीतीश पर निशाना, पूछा- इतने सालों से याद क्यों नहीं आई?

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पटना

बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की आहट के बीच नीतीश सरकार ने कई नए आयोगों का गठन किया है, जिनमें मछुआरा आयोग सबसे प्रमुख है। लेकिन इस फैसले को लेकर राज्य की सियासत गर्मा गई है। वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) प्रमुख और ‘सन ऑफ मल्लाह’ कहे जाने वाले मुकेश सहनी ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने मछुआरा आयोग को “चुनावी दिखावा” बताया और एनडीए पर निषाद समाज के साथ वादाखिलाफी का आरोप लगाया।

चुनाव से पहले आयोग क्यों याद आया?
रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुकेश सहनी ने नीतीश कुमार सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा, ‘इतने वर्षों तक सरकार को मछुआरा आयोग की जरूरत नहीं पड़ी, लेकिन चुनाव से पहले अचानक इसकी याद क्यों आई?’ सहनी का मानना है कि यह कदम सिर्फ निषाद समाज को लुभाने के लिए उठाया गया है, न कि उनकी वास्तविक भलाई के लिए।

बिना आरक्षण के नहीं मिलेगा निषाद समाज का वोट
सहनी ने बीजेपी और एनडीए को सीधी चेतावनी दी। उन्होंने कहा, ‘अगर निषाद समाज का वोट चाहिए, तो उन्हें दूसरे राज्यों की तरह बिहार में भी आरक्षण देना होगा। इस बार बिना आरक्षण के कोई भी निषाद एनडीए को वोट नहीं देगा।’ उन्होंने आरोप लगाया कि एनडीए ने निषाद समाज के साथ धोखा किया है और अब समाज इसका बदला लेने के मूड में है।

आयोग में कौन-कौन शामिल?
बिहार सरकार ने हाल ही में महादलित आयोग, अनुसूचित जाति आयोग और मछुआरा आयोग का गठन किया है। मछुआरा आयोग में पूर्वी चंपारण के ललन कुमार को अध्यक्ष नियुक्त किया गया है, जबकि बक्सर के अजीत चौधरी उपाध्यक्ष बनाए गए हैं। इसके अलावा, समस्तीपुर से विद्या सागर सिंह निषाद, भागलपुर से रेणु सिंह और पटना से राजकुमार को सदस्य बनाया गया है। सभी पदाधिकारियों का कार्यकाल तीन वर्षों का होगा, जो पदभार ग्रहण करने की तारीख से लागू होगा।

निषाद समाज की नाराज़गी क्या बदलेगी चुनावी गणित?
मुकेश सहनी की यह नाराजगी और निषाद समाज की भूमिका बिहार के आगामी चुनावों में निर्णायक हो सकती है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए अब इस समुदाय को साधने के लिए क्या कदम उठाती है। आयोग का गठन क्या वोटों में बदल पाएगा या फिर यह सिर्फ एक राजनीतिक ‘दिखावा’ बनकर रह जाएगा?

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