भेल भोपाल।
यूं तो बीएचईई थ्रिफ्ट एंड क्रेडिट सोसायटी का इतिहास यही रहा है कि कहीं न कहीं इसमें कर्मचारी कम नेता ज्यादा जीतते आए हैं। इसी के चलते अक्सर विवादों की स्थिति बनी रही है। चाहे करनैल सिंह हों या फिर राजेंद्र सिंह अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में संस्था को बेहतर ढंग से चलाया और राजनीति का अखाड़ा नहीं बनने दिया। अब लगातार नई—नई स्थिति बनती जा रही है।
सौ करोड़ से ज्यादा टर्न ओवर वाली थ्रिफ्ट सोसायटी पिछले दो टर्म से यूनियन नेताओं का कुछ ज्यादा ही जलजला रहा है। बात यही वर्ष 2022 के चुनाव की ही की जाए तो सत्य मेव जयते पैनल से दीपक गुप्ता, निशांत नंदा और राजकुमार इढापाची, प्रगतिशील पैनल से विशाली वाणी, आशीष सोनी और राजमल बैरागी, न्यू पारदर्शी पैनल से कमलेश नागपुरे और श्रीमती किरण (बीएमएस नेता की पत्नि) चुनाव जीतकर थ्रिफ्ट के डायरेक्टर बने।
वहीं निर्दलीय के रूप में इंटक यूनियन के वर्तमान अध्यक्ष राजेश शुक्ला भी चुनाव जीते। रही बात अध्यक्ष की तो वह अधिकारी वर्ग के माने जाते हैं। अब जब पिछले दो माह से थ्रिफ्ट जैसी वित्तीय संस्था विवादों में रही तो अप्रत्यक्ष रूप से यूनियन नेताओं का जमावड़ा भी देखने को मिला। अगले यूनियन चुनाव में इसमें किस यूनियन को कितना फायदा मिलेगा इसको लेकर सब कुछ चल रहा है।
एक मामूली विवाद ने पुराने सत्ताधारी संचालकों को हटाकर सत्ता से वंचित रहे नए डायरेक्टरों को अपने पक्ष में कर नई सरकार का गठन कर दिया। यह कानूनी है या गैर कानूनी यह अलग बात है, लेकिन घोर दुश्मन रहे डायरेक्टरों ने भले ही अध्यक्ष के खिलाफ पिछले पौने तीन साल आवाज उठाई हो, लेकिन आज वही उनके दोस्त बन गए।
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यह बात भी किसी भी कर्मचारी सदस्य को गले नहीं उतर रही है। थ्रिफ्ट के चुनाव में यूनियन नेताओं का शामिल होना और जीतकर लड़ाई का अखाड़ा बनाना समझ से बाहर है। अब अगला चुनाव वर्ष 2027 में होना है। ऐसे में कर्मचारी सदस्यों का क्या रवैया होगा यह तो चुनाव के बाद देखने को मिलेगा।
