नई दिल्ली
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीयों में उत्साह है। अब उनके लिए एक और अच्छी खबर है। रेटिंग एजेंसी इक्रा का अनुमान है कि कच्चे तेल (क्रूड) की कीमतों में गिरावट से भारत को वित्त वर्ष 2025-26 में इम्पोर्ट बिल पर 1.8 लाख करोड़ रुपये तक की बचत हो सकती है। भारत अपनी जरूरत का 85% से ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है। इक्रा के अनुसार, कच्चे तेल की औसत कीमत 60-70 डॉलर प्रति बैरल रहने की उम्मीद है। इससे तेल उत्पादन करने वाली कंपनियों को भी फायदा होगा। एलएनजी के आयात पर भी 6,000 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है।
भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का 85% से अधिक आयात करता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट अधिक सप्लाई और ग्लोबल डिमांड में अनिश्चितता के कारण आई है। यह भारत के लिए एक बड़ा आर्थिक बूस्टर साबित हो सकती है। इस खबर से निश्चित रूप से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह एक और पॉजिटिव डेवलपमेंट है।
दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक और उपभोक्ता है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने 242.4 अरब डॉलर का कच्चा तेल खरीदा था। इसके अलावा, लिक्विफाइड नैचुरल गैस (एलएनजी) के आयात पर 15.2 अरब डॉलर खर्च किए गए थे। भारत अपनी एलएनजी की जरूरत का लगभग आधा हिस्सा घरेलू उत्पादन से पूरा करता है।अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें गिर रही हैं। इस सप्ताह की शुरुआत में कीमतें 60.23 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गईं, जो चार साल का निचला स्तर है। इसकी वजह यह है कि मांग कम है और सप्लाई बढ़ने की उम्मीद है।
भारत को कैसे होगा फायदा?
इक्रा का मानना है कि वित्त वर्ष 2025-26 में कच्चे तेल की औसत कीमत 60-70 डॉलर प्रति बैरल के बीच रहेगी। रेटिंग एजेंसी ने कहा, ‘इक्रा को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2025-26 में कच्चे तेल की औसत कीमत 60-70 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहेगी।’ इसका मतलब है कि तेल कंपनियों को भी फायदा होगा। इक्रा का अनुमान है कि तेल उत्पादन करने वाली कंपनियों की आय 25,000 करोड़ रुपये तक रह सकती है।
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से भारत को काफी फायदा होगा। इक्रा का अनुमान है कि कच्चे तेल के आयात पर 1.8 लाख करोड़ रुपये और एलएनजी के आयात पर 6,000 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। इसका मतलब है कि भारत के पास विकास के लिए अधिक पैसा होगा।