दुनिया का सबसे शक्तिशाली चुंबक बनकर तैयार, क्लीन एनर्जी की दिशा में बड़ा कदम, जानें भारत का इसमें कितना अहम रोल

नई दिल्ली:

क्लीन एनर्जी को लेकर पूरी दुनिया के लिए खुशियों भरी खबर है। दुनिया का सबसे बड़ा न्यूक्लियर फ्यूजन प्रोजेक्ट का सेंट्रल मैग्नेट सिस्टम पूरा हो गया है। इसमें अहम बात यह है कि भारत ने इसके कई जरूरी हिस्से बनाने में मदद की है। यह प्रोजेक्ट दक्षिणी फ्रांस में चल रहा है। इसका नाम ITER (इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर) है। इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य हाइड्रोजन और एटम को मिलाकर सूरज जैसी ऊर्जा बनाना है,जिससे बिना कार्बन वाली बिजली बनेगी। यह पारंपरिक परमाणु ऊर्जा से अलग है। इसमें फ्यूजन होगा, जिससे लंबे समय तक रहने वाला रेडियोधर्मी कचरा नहीं बनेगा।

ITER के सेंट्रल सोलेनॉइड का आखिरी हिस्सा अमेरिका में बना है। यह एक बहुत शक्तिशाली चुंबक है, जो फ्यूजन रिएक्शन को चलाती है। इसे जल्द ही फिट किया जाएगा। एक बार जब यह चालू हो गया तो इतना मजबूत होगा कि एक एयरक्राफ्ट कैरियर को भी उठा सके। यह ITER के डोनट आकार के रिएक्टर का दिल होगा, जिसे टोकामक कहा जा रहा है।

कौन-कौन से देश हैं शामिल?
ITER 30 से ज्यादा देशों का एक साथ मिलकर किया जाने वाला काम है। इसमें भारत, अमेरिका, चीन, रूस, जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ के देश शामिल हैं। इसे इस तरह बनाया गया है कि 50 मेगावाट बिजली का इस्तेमाल कर 500 मेगावाट बिजली पैदा करेगा। इससे ‘बर्निंग प्लाज्मा’ नाम की स्थिति बनेगी। यह फ्यूजन रिसर्च का सबसे बड़ा लक्ष्य है।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग का बड़ा उदाहरण
ITER के डायरेक्टर-जनरल पिएत्रो बाराबास्की ने बताया कि ITER को जो चीज खास बनाती है, वह सिर्फ इसकी तकनीकी जटिलता नहीं है। बल्कि यह इंटरनेशनल सहयोग का बड़ा उदाहरण है। बदलते राजनीतिक माहौल में भी यह बना हुआ है। इसका सीधा मतलब है कि अलग-अलग देशों के बीच राजनीतिक बदलाव होने के बाद भी यह प्रोजेक्ट चलता रहा।

धीरे-धीरे जोड़ी जा रही है मशीन
पिएत्रो बाराबास्की ने आगे कहा कि ITER प्रोजेक्ट उम्मीद की एक किरण है, जिसके जरिए हम भविष्य में टिकाऊ ऊर्जा और शांतिपूर्ण रास्ते की उम्मीद कर रहे हैं। इस साल की शुरुआत में ITER ने अपने वैक्यूम वेसल का पहला हिस्सा सफलतापूर्वक लगा दिया था। बाकी मशीन को धीरे-धीरे जोड़ा जा रहा है। हालांकि, ITER से बिजली तो नहीं बनेगी, लेकिन यह साबित हो जाएगा कि फ्यूजन बड़े पैमाने पर काम कर सकता है। इससे कमर्शियल फ्यूजन प्लांट बनाने का रास्ता खुल जाएगा।

यूरोप दे रहा 45 फीसदी खर्च
प्राइवेट कंपनियां भी आजकल फ्यूजन में पैसा लगा रही हैं। ITER ने रिसर्च को साझा करने और तेजी से आगे बढ़ने के लिए प्रोग्राम शुरू किए हैं। यूरोप इस प्रोजेक्ट का मेजबान है। इसलिए वह इसकी 45% लागत दे रहा है। बाकी छह भागीदार, जिनमें भारत भी शामिल है, लगभग 9% का योगदान कर रहे हैं। सभी सदस्यों को प्रोजेक्ट से मिले डेटा, टेक्नोलॉजी और पेटेंट का पूरा एक्सेस मिलेगा। इसका मतलब है कि सभी देश मिलकर इस प्रोजेक्ट से सीखेंगे और आगे बढ़ेंगे।

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