आतंकी हमले का साया, प्रकृति की मार… अमरनाथ यात्रा में श्रद्धालुओं को क्‍या-क्‍या खतरे?

नई दिल्‍ली

अमरनाथ गुफा के पास बादल फटने से बाढ़ में कई लोगों की मौत हुई है। यह ऐसा पहला हादसा नहीं है। पहले भी अमरनाथ यात्रा के दौरान बादल फटने से मौत की कई बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। बात सिर्फ प्राकृतिक आपदा की नहीं है। अमरनाथ यात्रा में और कई खतरे हैं। इस यात्रा पर आतंकी हमले का भी साया रहता है। कई श्रद्धालु इन आतंकी हमलों में पहले जान गंवा चुके हैं। बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए पहाड़ों से होकर रास्‍ता जाता है। यह बहुत दुर्गम है। इसे सुगम बनाने के लिए इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर निर्माण करना मुश्किल है। ऐसे में रास्‍ते में ही कुछ अप्रिय घटने की आशंका बनी रहती है।

भारी बारिश के बीच शुक्रवार शाम करीब साढ़े पांच बजे गुफा के पास बादल फटा। पहाड़ की ढलानों से पानी और गाद की मोटी धारा घाटी की ओर बहने लगी। तीर्थस्थल के बाहर बेस कैंपों में पानी घुस गया। इसमें दर्जनों टेंट और कई सामुदायिक रसोई क्षतिग्रस्त हो गईं। यहां तीर्थयात्रियों को भोजन परोसा जाता है। रातभर रेस्‍क्‍यू ऑपरेशन चलता रहा। इस हादसे में कई लोगों की मौत हुई है। दर्जनों लापता हैं। इस त्रासदी के बाद अमरनाथ यात्रा स्‍थगित कर दी गई है। 30 जून से इसकी शुरुआत हुई थी। बचाव अभियान खत्म होने के बाद इसे फिर से शुरू करने पर फैसला किया जाएगा।

पहले भी घट चुके हैं कई हादसे
यह पहली बार नहीं जब श्रद्धालुओं को प्रकृति की मार झेलनी पड़ी है। पिछले कुछ सालों में बार-बार बादल फटने की घटनाएं हुई हैं। हालांकि, पहला बड़ा हादसा 1969 में हुआ था। तब अमरनाथ यात्रा मार्ग में बादल फटने से 100 से ज्‍यादा श्रद्धालुओं ने जान गंवाई थी। 2010 में भी गुफा के पास बादल फटा था। हालांकि, उसमें कोई नुकसान नहीं हुआ था। 16 जुलाई 2017 को रामबन जिले के पास श्रद्धालुओं की बस खाई में गिरी थी। इस हादसे में दर्जनों श्रद्धालु घायल हो गए थे। 2019 में यात्रा के दौरान करीब 30 श्रद्धालुओं ने जान गंवाई थी। 28 जुलाई, 2021 को भी गुफा के करीब बादल फटा था। इसमें कई लोग फंस गए थे। लेकिन, सभी को बचा लिया गया था।

सिर्फ प्राकृतिक आपदाएं ही नहीं हैं मुश्किल
अमरनाथ यात्रा को प्राकृतिक आपदाएं सिर्फ मुश्किल नहीं बनाती हैं। इसे लेकर आतंकियों का भी खतरा रहता है। इस यात्रा पर आतंक का साया बना रहता है। 1993 में तीन श्रद्धालुओं को आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया था। फिर 1994 में दो श्रद्धालुओं को आतंकियों के हाथों जान गंवानी पड़ी। 1995 और 1996 में भी आतंकियों ने श्रद्धालुओं को निशाना बनाने की नाकाम कोशिश की। साल 2000 में उन्‍होंने पहलगाम बेस कैंप पर अटैक किया था। इसमें 35 लोगों की मौत हुई थी। यह सिलसिला आगे भी बना रहा। 2017 में आतंकियों ने श्रद्धालुओं की बस को टारगेट बनाया था। इसमें 7 लोगों ने जान गंवाई थी।

13,500 फीट की ऊंचाई पर बनी है गुफा
बाबा बर्फानी की गुफा श्रीनगर से 140 किमी और जम्‍मू से 326 किमी दूर है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 13,500 फीट है। प्रकृति की गोद में बसे पहलगाम से इसकी शुरुआत होती है। आगे चलकर यह यात्रा दुर्गम चरणों से गुजरती है। एक जगह आकर ऑक्सिजन की कमी तक हो जाती है। यह और बात है कि चिकित्‍सा संबंधी सहायता जगह-जगह उपलब्‍ध रहती है। इन दुर्गम रास्‍तों पर हर जगह इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर तैयार करना नामुमकिन है।

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