नई दिल्ली,
देश में जल्द ही स्ट्रेन स्पेसिफिक वैक्सीन आने वाली है. केंद्र सरकार की तरफ से ये वैक्सीन तैयार करवाई जा रही है. ये वैक्सीन वायरस के बदलते स्वरूप का मुकाबला करने में मददगार साबित होगी. खासतौर पर ओमिक्रॉन से बचाने में वैक्सीन काफी ताकतवर मानी जा रही है.
साइंस मिनिस्ट्री के तहत बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट एंटी-कोविड वैक्सीन के तेजी से विकास के लिए एक ऐसा ईको सिस्टम बनाने की दिशा में काम कर रहा है, जो मुख्य तौर पर डॉमिनेंट वैरिएंट को टारगेट करेगा. सेकंड जेनरेशन (दूसरी पीढ़ी) की वैक्सीन डेवलप करने के लिए इस ईको सिस्टम को तैयार करने में मदद करने वाले एक अधिकारी ने आजतक से बातचीत की और बताया कि भारत में स्ट्रेन स्पेसिफिक वैक्सीन को डेवलप करने के लिए रिसर्च और डेवलपमेंट वर्क चल रहा है.
अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा- ‘पांच दवा कंपनियों ने रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए शैक्षणिक संस्थानों के साथ हाथ मिलाया है, ताकि देश को किसी भी नई तरह की चिंता से दूर किया जा सके.’ इस परियोजना में एक बीवालेंट वैक्सीन (bivalent vaccine) डेवलप करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों, दवा कंपनियों और निर्माताओं का जॉइंट कोऑर्डिनेशन शामिल है.पहले की दो डोज से अलग होनी चाहिए? NTAGI के एक्सपर्ट्स ने दी ये सलाह
बायवेलेंट वैक्सीन क्या है?
भारत और उसके बाहर उपयोग किए जाने वाले वर्तमान टीके मोनोवैलेंट हैं, जिसका अर्थ है कि ये वैक्सीन वायरस के एक स्पेसिफिक वैरिएंट- ऑरिजनल कोरोनावायरस को टारगेट करने के लिए डिजाइन किए गए हैं. जबकि एक बायवेलेंट वैक्सीन (द्विसंयोजक टीका) ओमिक्रॉन स्ट्रेन में देखे जाने वाले स्पेसिफिक स्पाइक म्यूटेशन को टारगेट करेगा, जो सब वैरिएंट और सेकंड जेनरेशन के वैरिएंट बनाने के लिए कई बार म्यूटेट हुआ है. बायवेलेंट वैक्सीन दो अलग-अलग एंटीजन के खिलाफ इम्युनिटी बढ़ाता है. ऐसे में ये ओमिक्रॉन के संबंध में ज्यादा महत्वूपर्ण है. बताते चलें कि पांचवां वैरिएंट चिंता का कारण बना हुआ है. इसके कारण वायरस और भी ज्यादा तेजी से फैल रहा है.
वैरिएंट को लेकर प्रूफ वैक्सीन विकसित करने के लिए इनोवेशन किया जा रहा है. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक पहले से ही स्ट्रेन स्पेसिफिक वैक्सीन पर काम कर रहे हैं. SII ने Nonavax के साथ सहयोग किया है. भारत बायोटेक महामारी की तैयारियों के लिए CEPI के साथ काम कर रहा है.
एक अधिकारी ने कहा- ‘हम सेकंड जेनरेशन की वैक्सीन से इस महामारी से निपटने की उम्मीद करते हैं. कोच्चि की IMA रिसर्च सेल के वाइस चेयरमैन डॉ. राजीव जयदेवन ने आजतक से बातचीत में कहा कि मौजूदा टीके गंभीर बीमारी और मौत से बचाते हैं, लेकिन संक्रमण नहीं बचा पा रहे हैं. ऐसे में अब वायरस के बदले हुए एडिशन फैल रहे हैं.
‘सभी मौजूदा वैक्सीन वायरस के ऐंसेस्टल डिप्रेशन पर आधारित हैं. उनमें से ज्यादातर वायरस के सिर्फ एक हिस्से पर आधारित होते हैं, जिसे स्पाइक प्रोटीन कहा जाता है. लेकिन हमने पिछले ढाई वर्षों में देखा है कि ह्यून इम्युन सिस्टम (मानव प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया) से बचने और ज्यादा फैलने की कोशिश से वायरस अपने स्पाइक प्रोटीन में लगातार बदलाव कर रहा है. ये परिवर्तन, जिन्हें म्युटेशन भी कहा जाता है. ये या तो चरणबद्ध तरीके से या तेजी से हो सकते हैं.’
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा- ‘ओमिक्रॉन आधारित वैक्सीन के बारे में शुरुआती रिसर्च ने ऐंसेस्टल डिप्रेशन पर एक बड़ा वैनिफिट नहीं दिखाया है. ज्यादा एडिशन का टेस्ट किया जा रहा है, और उन्हें पुराने वैक्सीन की तुलना में बेहतर एंटीबॉडी रिस्पॉन्स करते दिखाया गया है. हालांकि, हमारे पास प्रोटेक्शन का सटीक रिजल्ट नहीं है, जो एक निश्चित स्तर की गारंटी देता है. उन्होंने ये भी कहा कि इन वैक्सीन के अगले एडिशन के आने पर अभी भी वैलिड होने की चिंता है. इसमें ओमिक्रॉन से समानता हो भी सकती है और नहीं भी.
पैन सर्बेकोवायरस वैक्सीन अधिक संभव है?
जयदेवन का कहना है कि पैन सर्बेकोवायरस वैक्सीन डेवलन करना संभव होगा और प्रभावी होगा, जो सभी कोरोनावायरस से प्रोटेक्ट कर सकता है. COVID वैक्सीन रिसर्च पर WHO कन्सल्टेशन ने संकेत दिया है कि एक sarbecovirus वैक्सीन विकसित की जानी चाहिए, क्योंकि वायरस के नए वैरिएंट के उभरने की संभावना है और CEPI द्वारा किया गया वर्क संकेत दे रहा है कि वे बेहतर काम करते हैं. शरीर यह भी कहता है कि स्पाइक के अलावा अन्य एंटीजन जैसे एन को शामिल किया जाना चाहिए.