नई दिल्ली
हिंदुओं को कुछ राज्यों में अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग उठी है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल हुई है। यह और बात है कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस संबंध में साफ लाइन खींच दी है। उसने दो-टूक कह दिया है कि वह कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मसले की ‘हवा में’ विवेचना नहीं करेगा। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सटीक उदाहरण देने को कहा है। इनमें साफ जाहिर होता हो कि उन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यकों को मिलने वाले लाभ नहीं दिए जा रहे हैं। ये ऐसे राज्य होने चाहिए जिनमें हिंदुओं की आबादी अन्य समुदायों से कम हो। कुछ राज्यों में हिंदुओं का अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग के बीच सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी कई मायनों में महत्वपूर्ण है।
याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में कुछ राज्यों का हवाला दिया है। इनमें हिंदुओं की आबादी अन्य समुदायों से कम है। याचिका में हिंदुओं को इन राज्यों में अल्पसंख्यक का दर्जा देने की गुजारिश की गई है। आर्टिकल 29-30 के तहत ऐसा करने को कहा गया है। इसके तहत उन्हें अपनी पसंद का शिक्षण संस्थान बनाने और शुरू करने की इजाजत मांगी गई है।
इन राज्यों में कम है हिंदुओं की आबादी
याचिका के मुताबिक, कुछ राज्यों और क्षेत्रों में हिंदुओं की संख्या अन्य समुदायों से कम है। लेकिन, उन्हें अल्पसंख्यकों के अधिकार हासिल नहीं हैं। इसके लिए याचिका में लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर का जिक्र किया गया है। हिंदुओं की आबादी लद्दाख में करीब 1 फीसदी है। मिजोरम और लक्षद्वीप में यह आंकड़ा 2.8 फीसदी है। कश्मीर में हिंदुओं की संख्या कुल आबादी का 4 फीसदी और नागालैंड में 8.7 फीसदी है। मेघालय में यह आंकड़ा 11.5 फीसदी और अरुणाचल प्रदेश में 29.5 फीसदी है। पंजाब में इनकी संख्या 38.5 फीसदी और मणिपुर में 41.3 फीसदी है।
कैसे हिंदुओं के साथ हुआ है पक्षपात?
याचिका के अनुसार, इसके उलट लक्षद्वीप, कश्मीर और लद्दाख में मुस्लिमों को अल्पसंख्यक का दर्जा मिला हुआ है। जबकि लक्षद्वीप में मुस्लिम 96.58 फीसदी, कश्मीर में 95 फीसदी और लद्दाख में 46 फीसदी हैं। इसी तरह की स्थिति नागालैंड और मिजोरम में ईसाइयों के साथ है। नागालैंड में ईसाई 88.10 फीसदी और मिजोरम में 74.59 फीसदी हैं। इन राज्यों में भी केंद्र ने ईसाइयों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया हुआ है। इस तरह वे आर्टिकल 30 के तहत अपनी पसंद का शिक्षण संस्थान स्थापित और चला सकते हैं।
चल रही है राज्यों की मनमानी
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि नेशनल कमीशन ऑफ माइनॉरिटीज (एनसीएम) एक्ट का सेक्शन 2(सी) केंद्र को निरंकुश ताकत देता है कि वह माइनॉरिटी को नोटिफाई कर सके। यह संविधान के आर्टिकल 14, 15, 21, 29, 30 के खिलाफ है। यह पूरी तरह मनमाना और अतार्किक है। याचिका में एनसीएम एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। याचिका में केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह ‘माइनॉरिटी’ शब्द को परिभाषित करे। साथ ही जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए गाइडलाइंस बनाए। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि सिर्फ उसी को अल्पसंख्यक का बेनिफिट मिलेगा जो इसका सही हकदार है।
बेंच ने पूछा यह सवाल
इस याचिका की सुनवाई जस्टिस यूयू ललित, एस रवींद्र भट्ट और सुधांशु धूलिया की बेंच कर रही है। सुनवाई के दौरान बेंच ने पूछा कि क्या हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने के बारे में सरकार की ओर से कोई गाइडलाइन जारी की गई है। इस बारे में बेंच ने देशभर में उन शिक्षण संस्थानों का उदाहरण दिया जिन्हें डीएवी चलाता है। उसने कहा कि इन सभी को माइनॉरिटी दर्जा नहीं दिया जाएगा। यह फैसला राज्यों को करना है। इस बारे में बेंच ने 2002 में टीएमए पाई केस में दिए गए फैसले का हवाला दिया।
इस बात पर कोर्ट ने दिया जोर
सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि अल्पसंख्यक दर्जा देने का फैसला राज्यों को करना है। यह राष्ट्रीय स्तर पर नहीं हो सकता है। पंजाब में एक सिख संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा न्याय का उपहास है। नागालैंड और मिजोरम में बहुसंख्यक ईसाई समुदाय उन राज्यों में खुद को अल्पसंख्यक नहीं बता सकता है। याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट अरविंद दतर पेश हुए। उन्होंने दो हफ्ते का समय मांगा है। इस दौरान वह ऐसे सटीक उदाहरण जुटाकर वापस लौटेंगे जिनमें हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जे का फायदा नहीं मिला है।
क्या कहता है 2002 का आदेश?
साल 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में एक फैसला सुनाया था। उसने अल्पसंख्यक दर्जा देने का निर्णय राज्य पर छोड़ा था। उसने पंजाब में आर्य समाजियों और हिंदुओं के अल्पंसख्यक घोषित किए जाने को लेकर कई पुराने फैसलों का भी हवाला दिया था। शीर्ष अदालत ने इस दलील को भी मानने से इनकार किया था कि देश में हिंदुओं के बहुसंख्यक होने के कारण पंजाब में उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।
देवकीनंदन ठाकुर की है जनहित याचिका
ताजा याचिका मथुरा के धार्मिक नेता देवकीनंदन ठाकुर की है। इसमें एनसीएम एक्ट 1992 और नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटीज एजुकेशनल इस्टीट्यूशंस एक्ट 2004 को चुनौती दी गई है। ये माइनॉरिटी के लिए उपलब्ध अधिकारों को छह समुदायों तक सीमित करते हैं। इनमें ईसाई, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन शामिल हैं।