तुलसीदास जूनियर ने जीता नेशनल अवॉर्ड, दलीप ताहिल ने राजीव कपूर को किया याद

दिवंगत एक्टर राजीव कपूर की आखिरी फिल्म ‘तुलसीदास जूनियर’ ने बेस्ट हिंदी फिल्म का नेशनल अवॉर्ड जीता है. 68वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स में यह फिल्म सरप्राइज एलिमेंट रही. ऐसे में फिल्म के एक्टर दलीप ताहिल ने फिल्म और राजीव कपूर के बारे में बात की. दलीप ताहिल ने अवॉर्ड जीतने पर कहा, ‘ये बहुत ही खुशी की बात है. मैं डायरेक्टर और सभी कास्ट व क्रू को बधाई देता हूं. मेरे लिए तुलसीदास जुनियर बहुत ही महत्वपूर्ण और मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक है. इसकी कहानी बहुत ही अलग किस्म की थी. यह बाप बेटे के रिलेशनशिप को बहुत ही इमोशनल तरीके से पेश करती है.’

दलीप आगे कहते हैं, ‘बस मुझे इसी बात का अफसोस रहेगा कि फिल्म थिएटर पर रिलीज नहीं हो पाई थी. ये नेटफ्लिक्स पर आई है लेकिन देर से सही उसे अपनी जमीन मिल गई. नेटफ्लिक्स पर भी रिस्पॉन्स जबरदस्त का रहा, चिल्ड्रेन कैटेगरी में उसे टॉप पर रखा जाता है. मैं जब भी जाता हूं, हमेशा लोगों को इस फिल्म को रेकमेंड करता हूं. इतने सालों बाद कोई ऐसी क्लीन ड्रामा आई थी, जिसे 6 साल के बच्चे से लेकर 80 साल के उम्रदराज संग बैठकर आराम से देख सकते हैं.’

थिएटर में नहीं हो पाई रिलीज
फिल्म की मेकिंग के बारे में दलीप कहते हैं, ‘यह फिल्म 2019 में बन कर रेडी हो गई थी. 2020 में जून के महीने में इसे थिएटर पर रिलीज करने का इरादा था, जो हो नहीं पाया. वहां से हमारा स्ट्रगल शुरू हुआ था. हम कशमकश में थे कि फिल्म को आखिर कहां रिलीज करें. बहुत दिक्कतें आईं और आखिरकार मई में 2022 में ओटीटी पर रिलीज हुई. इसकी किस्मत में ही ओटीटी पर आना लिखा
था.’

राजीव कपूर के साथ किया काम
दलीप ताहिल ने राजीव कपूर के साथ काम करने को लेकर भी बात की. उन्होंने कहा, ‘राजीव कपूर के साथ जब शूट कर रहा था, वो तीस साल के बाद कैमरे के सामने आया था. मुझे याद है कि वो हमेशा मुझसे कहता था कि दलीप मैं तीस साल के बाद कैमरा फेस कर रहा हूं. पता नहीं ठीक करूंगा या नहीं. मैं उसे तसल्ली दिया करता था. वो बेचारा इतना चाहता था कि ये फिल्म जल्द से जल्द रिलीज हो और उसका करियर आगे बढ़े. वो अपनी सेकेंड इनिंग को लेकर बहुत नर्वस था. इतनी मेहनत की थी उसने लेकिन जब फिल्म रिलीज हुई, तो वो नहीं रहा. 2021 में उसने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. राज कपूर के बेटे होने के बावजूद भी उसे तीस साल से काम नहीं मिला था. और जब काम मिला, तो वो नहीं रहा.’

दलीप ने आगे कहा, ‘डायरेक्टर मृदुल के पापा जिनपर कहानी आधारित है, वो भी रिलीज से पहले ही गुजर गए. हालांकि उन दोनों ने ही फिल्म पहले देखी थी, लेकिन रिलीज नहीं देख पाए. उन दोनों को फिल्म बहुत पसंद आई थी. राजीव को इतनी पसंद आई थी कि वो कई दफा मुझे कॉल कर कहता था कि काश ये जल्द से जल्द रिलीज हो जाए और मैं अपना करियर आगे बढ़ा सकूं. मैं राजीव को पेशेंस रखने के लिए कहा करता था. भगवान की मर्जी ही कुछ और थी. मृदुल की मां नहीं चाहती थीं कि ये फिल्म बनें क्योंकि वो परिवार की निजी बातों को बाहर नहीं आने देना चाहती थीं. मृदुल ने बहुत मेहनत के साथ इस फिल्म को बनाया था और उसे नेशनल अवॉर्ड के रूप में अपना फल मिल गया है.’

अपने किरदार से मिलते-जुलते हैं दलीप?
अपने किरदार से तुलना को लेकर दलीप ताहिल ने कहा, ‘मैं जिमी टंडन जैसा बिलकुल भी नहीं हूं लेकिन ऐसे लोगों से मैंने अपने आस-पास देखा है. एयरफोर्स बैकग्राउंड से होने की वजह से हम क्लब में ही अपनी जिंदगी गुजारा करते थे. मुझे याद है बचपन में हमें स्नूकर वाले रूम में आने की परमिशन नहीं मिलती थी. स्नूकर टेबल पर लगे हरे रंग के कपड़े को लेकर वो लोग हमेशा सजग रहते थे कि कहीं कोई बच्चा आकर फाड़ न दे. क्योंकि बहुत महंगा होता था. जो लाइन्स मेरे लिए फिल्म के लिए लिखी थी, वो मुझ पर बचपन में गुजरी हैं. मैं क्लब के माहौल से वाकिफ हूं और उनके किरदारों को समझता हूं.’

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