NSA डोभाल की एक तरकीब और तालिबान राज में भी भारत का कमबैक, पाकिस्तान फिर पस्त

काबुल

अफगानिस्‍तान, दुनिया के नक्शे पर मौजूद एक ऐसा देश जिसने दो दशकों में दक्षिण-एशिया की राजनीति को बदलकर रख दिया है। पिछले साल यहां पर फिर एक बड़ा बदलाव देखने को मिला जब 21 सालों के बाद तालिबान ने शासन में वापसी की। जैसे हालात शुरुआत में बने, उसके बाद भारत की मौजूदगी यहां पर कितनी रहेगी, इस पर कोई कुछ नहीं कह सकता था। लेकिन अब एक साल के बाद भारत चुपचाप अपना कमबैक अफगानिस्‍तान में कर चुका है। तालिबान और पाकिस्‍तान की करीबियों के बाद भी नई दिल्‍ली का कद कमजोर नहीं पड़ा है। ये बात भी सच है कि तालिबान और पाकिस्‍तान के रिश्‍ते अब उतने मधुर नहीं रहे हैं जितने किसी जमाने में हुआ करते थे।

तालिबान-पाकिस्‍तान के रिश्‍ते
अफगानिस्‍तान-पाकिस्‍तान बॉर्डर पर स्थित डूरंड लाइन ने पाकिस्‍तान और तालिबान के रिश्‍तों को खट्टा कर दिया है। इसके अलावा पश्‍तूनों की स्थिति को लेकर भी दोनों के बीच में विवाद की स्थिति है। पश्‍तून, पाकिस्‍तान के पेशावर में रहते हैं। इन सबसे अलग तालिबान ने पाकिस्‍तान विरोधी आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्‍तान (टीटीपी) के अलग कई आतंकियों को सुरक्षित पनाहगार मुहैया कराई हुई है। तालिबान के साथ पाक के रिश्‍ते जटिल बने हुए है। तालिबान की अंतरिम सरकार में वही हक्‍कानी नेटवर्क शामिल है जिसे अमेरिका ने खतरा करार दिया था। साल 1970 में इसकी शुरुआत पाकिस्‍तान से हुई थी और अब ये तालिबान का अहम हिस्‍सा है।

डूरंड लाइन पर एक स्थिर क्षेत्र पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान में हिंसा को कम करने में मददगार साबित होगा। हालांकि भारत की चिंताएं इससे अलग हैं। उसे इस बात की चिंता है कि अगर पाकिस्‍तानी आतंकी संगठनों को अफगानिस्‍तान में पनाह मिल गई तो फिर उसके लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी। भारत अपनी इसी चिंता को दूर करने के लिए तालिबान का फायदा उठाने की कोशिशें कर रहा है। तालिबान अगर भारत के साथ रिश्‍तों को बेहतर करता है तो पाकिस्‍तान पर नियंत्रण रखा जा सकेगा।

क्‍या है भारत की मंशा
नवंबर 2021 में भारत के सुरक्षा सलाहकार अज‍ित डोभाल ने राजधानी नई दिल्‍ली में अफगानिस्‍तान पर तीसरी क्षेत्रीय वार्ता की मेजबानी की थी। उस दौरान भारत ने इस बात को स्‍पष्‍ट कर दिया था कि उसका मकसद तालिबान को उखाड़ फेंकने के लिए किसी गठबंधन से हाथ मिलना नहीं है बल्कि वो आईएसआईएस-के और अल-कायदा जैसे संगठनों को रोकना चाहता है। जून 2022 में जब वार्ता हुई तो इसी लाइन को दोहराया गया। फरवरी 2022 में भारत ने ऐलान कर दिया था कि वो 50 हजार टन गेहूं अफगानिस्‍तान को मुहैया कराएगा।

भारत का ये ऐलान मानवीय राहत के तहत था। हैरानी उस समय हुई जब पाकिस्‍तान ने भारत की तरफ से आने वाली गेहूं की को इस खेप को जाने के लिए अपनी सीमा का प्रयोग करने दिया। भारत वो देश रहा है जिसने अफगानिस्‍तान में सबसे ज्‍यादा मदद पहुंचाई है। इस देश के विकास के लिए भारत की तरफ से साल 2001 के बाद से करीब 3 बिलियन डॉलर निवेश किए जा चुके हैं। इस रकम से कई स्‍कूलों का निर्माण हुआ, सड़कें, बांध और अस्‍पताल बनवाए गए।

क्‍यों भारत को मिली तवज्‍जो
इन सारे प्रोजेक्‍ट्स की वजह से तालिबान ने भारत को तवज्‍जो देनी शुरू की। तालिबान का सुप्रीम लीडर और इसका फाउंडर मुल्‍ला उमर अब नहीं है और इस तालिबान को 2.0 कहा जा रहा है। माना जा रहा है कि नए तालिबान के सामने क्षेत्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर कई समस्‍याएं हैं जिन्हें उसका सामना करना पड़ेगा। भारत की तरफ से इस बात का इशारा किया जा चुका है कि वो अफगानिस्‍तान के साथ रिश्‍ते मजबूत करना चाहता है। इस बात पर विचार जारी है कि अफगान राष्‍ट्रीय एयरलाइंस को भारत में फिर से लैंडिंग की मंजूरी दी जाए या नहीं।

भारत अपनी एक टीम को काबुल स्थित दूतावास पर तैनात कर चुका है। यह कदम अफगान नागरिकों को काउंसलर सर्विसेज देने के मकसद से उठाया गया है। ये कवायद बताते हैं कि कहीं न कहीं भारत एक बार फिर अपनी पकड़ को अफगानिस्‍तान पर मजबूत करने में लगा है। रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो अगर ऐसा होता है तो पाकिस्‍तान को बड़ा झटका लगने वाला है।

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