आखिरी बहस में माता-पिता के बलिदान को याद कर इमोशनल हुए ऋषि सुनक

लंदन

भारतीय मूल के ऋषि सुनक और लिज ट्रस के बीच सोमवार को प्रधानमंत्री पद के लिए आखिर बहस होनी थी। इस बहस में ऋषि ने अपने माता -पिता को याद किया और वो काफी इमोशनल हो गए। कंजर्वेटिव पार्टी के लीडर ऋषि ने अपने माता-पिता के संघर्ष को याद किया और बताया कि उन्‍हें किस तरह के आदर्श बचपन से सिखाए गए हैं। सुनक ने कहा कि माता-पिता ने जो आदर्श उन्‍हें बताए हैं, उनकी बदौलत ही आज वो प्रधानमंत्री बनने की तरफ हैं। साल 2020 में ऋषि सुनक को जब प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने वित्‍त मंत्री बनाया तो वो हर किसी की नजर में आ गए। यहीं से उनकी लोकप्रियता बढ़ती चली गई।

ऋषि ने दिया जवाब
ऋषि सुनक ने लिज ट्रूस के सामने बहस में कहा, ‘आप बार-बार इस मुद्दे को उठाती रहती हैं। मैं आपको बता दूं कि मेरा परिवार आज से 60 साल पहले यहां पर आया था। मेरी मां साउथ हैंपटन में एक लोकल केमिस्‍ट थीं। मैं यहीं पर दवाईयां बांटते हुए बड़ा हुआ हूं। मैंने सड़क पर बने एक भारतीय रेस्‍टोरेंट में वेटर का काम किया है। मैं यहां पर खड़ा हूं क्‍योंकि मैं कड़ी मेहनत करता हूं, मेरे माता-पिता ने बलिदान किया है और उन्‍होंने मुझे वो मौके दिए हैं जिसकी वजह से मैं प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं।’ सुनक ने आगे कहा, ‘मैं यह दिखाना चाहता हूं कि किसी के भी बच्‍चों और पोते-पोतियों को वो मौके मिल सकते हैं जो मुझे मिले हैं। कड़ी मेहनत और आगे बढ़ने वाले परंपरावादी आदर्शों की वजह से ही मैं प्रधानमंत्री बनूंगा।’

कौन थे ऋषि के पिता
सुनक ने ब्रिटेन के विंचेस्‍टर कॉलेज से स्‍कूल की पढ़ाई की। ये देश के सबसे प्रतिष्ठित स्‍कूलों में शामिल है। इसके बाद वो ऑक्‍सफोर्ड और अमेरिका की स्‍टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी पहुंचे और यहां से आगे की पढ़ाई पूरी की। राजनी‍ति में आने से पहले उन्‍होंने गोल्‍डमैन सैक और कुछ और कंपनियों में काम किया था। ऋषि सुनक पंजाबी खत्री परिवार से आते हैं। ऋषि के दादा रामदास सुनक गुंजरावाला में रहते थे जो बंटवारे के बाद पाकिस्‍तान में चला गया था।

रामदास ने सन् 1935 में गुंजरावाला छोड़ा और वो क्‍लर्क की नौकरी करने के लिए नैरोबी आ गए। ऋषि की बायोग्राफी लिखने वाले माइकल एशक्रॉफ्ट ने बताया है कि रामदास सुनक हिंदू-मुसलमान के बीच खराब होते रिश्‍तों की वजह से नैरोबी गए थे। रामदास की पत्‍नी सुहाग रानी सुनक, गुंजरावाला से दिल्‍ली आ गई थीं और उनके साथ उनकी सास भी थी। इसके बाद वो सन् 1937 में केन्‍या चली गईं।

परिवार से जुड़े सूत्रों की मानें तो रामदास एक अकाउंटेंट थे जो बाद में केन्‍या में एडमिनिस्‍ट्रेटिव ऑफिसर बने। रामदास और सुहाग रानी के छह बच्‍चे थे जिसमें तीन बेटे और तीन बेटियां थीं। ऋषि के पिता यशवीर सुनक इनमें से ही एक थे जिनका जन्‍म नैरोबी में सन् 1949 में हुआ था। साल 1966 में यशवीर लिवरपूल आ गए और यहां पर लिवरपूल यूनिवर्सिटी से मेडिसिन की पढ़ाई की। फिलहाल वो साउथ हैंपटन में रहते हैं। रामदास सुनक की तीनों बेटियों ने भारत में ही पढ़ाई की।

पंजाब के थे नाना
ऋषि के नाना रघुबीर बेरी पंजाब के रहने वाले थे। फिर वो एक रेलवे इंजीनियर के तौर पर तंजानिया चले गए। यहां पर उन्‍होंने तंजानिया में जन्‍मीं सरक्षा सुनक से शादी की। बायोग्राफ के मुताबिक सरक्षा साल 1966 में वन वे टिकट पर यूके गई थीं जो उन्‍होंने अपने शादी के गहने बेचकर खरीदा था। बेरी भी यूके आ गए और यहां पर कई साल तक इनलैंड रेवेन्‍यू के साथ उन्‍होंने काम किया। इसके बाद वो साल 1988 में ब्रिटिश राजशाही के तहत मेंबर ऑफ ऑर्डर बने। इस दंपति के तीन बच्‍चे थे जिनमें से एक ऋषि की मां ऊषा भी थीं। उन्‍होंने सन्1972 में एश्‍टन यूनिवर्सिटी से फार्मालॉजी में डिग्री ली थी। माता-पिता की पहली मुलाकात लिसेस्‍टर में हुई थी और साल 1977 में उन्‍होंने शादी कर ली।

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