दिल्‍ली से तालमेल…सीबीआई-ED का डर, माया ने उपराष्ट्रपति चुनाव में NDA प्रत्‍याशी का क्यों किया समर्थन?

लखनऊ

उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम और बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने राष्ट्रपति चुनाव के बाद अब उपराष्ट्रपति के चुनाव में भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को समर्थन देने का ऐलान किया है। मायावती ने राष्ट्रपति चुनावों में आदिवासी महिला उम्मीदवार के नाम पर बीजेपी को वोट किया था। मायावती के इस फैसले से कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।

बीजेपी उम्मीदवार को समर्थन करना जरूरी भी और शायद मजबूरी भी
दरअसल बीएसपी के इतिहास को देखें तो दिल्ली के तख्त से मायावती का रवैया नरमी भरा रहा है फिर चाहे वो कांग्रेस रही हो या बीजेपी। ऐसे में सवाल ये है कि मायावती की बीजेपी को समर्थन देने की ये घोषणाएं किसी राजनीतिक लेन-देन का ही हिस्सा तो नहीं। चूंकि मायावती पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे है। बीते कई सालों से ईडी और सीबीआई के रडार पर भी मायावती हैं।

दिल्ली से हमेशा बैठाया मायावती ने तालमेल
मायावती का जन्म भले गरीब परिवार में हुआ हो लेकिन अब उनकी गिनती रईश नेताओं में होती है। मायावती सत्ता में रही हो या फिर विपक्ष में लेकिन दिल्ली की हुकूमत के साथ तालमेल बिठाकर काम करना उनकी मजबूरी रहा है। केंद्र से नरम रवैए के चलते मायावती के सर से सीबीआई और ईडी का भूत दूर रहता है।

मुस्लिम+दलित+जाट समीकरण
इस मजबूरी के अलावा सियासी रूप से समझें तो बीजेपी के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जनदीप धनखड़ का समर्थन करके मायावती ने लोकसभा चुनाव से पहले मुस्लिम दलित और जाट समीकरण को दोबारा मजबूत बनाने की कोशिश की है। साथ ही आगमी राजस्थान चुनाव में भी बीएसपी इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगी। मायावती इस कदम से सपा और रालोद गठबंधन के गणित को बेअसर करना चाहती हैं।

यूपीए को क्यों नहीं किया समर्थन?
सियासी जानकारो की मानें तो इन दिनों कांग्रेस के साथ मायावती का छत्तीस का आंकड़ा है। राजस्थान और मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों के बाद हुए सियासी उठापटक में कांग्रेस ने बीएसपी को तोड़ लिया था, इससे मायावती खासी नाराज थीं। कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन न करने के पीछे एक ये भी कारण है। हालांकि बीजेपी के साथ जाने का ये पहला मौका नहीं है इससे पहले भी जरूरत पड़ने पर मायावती बीजेपी के साथ जाती रही हैं। चार बार यूपी की सीएम रह चुकी मायावती तीन बार बीजेपी की मदद से ही इस पद पर पहुंची थीं।

बीजेपी भी लगा रही अपना गणित
बीजेपी के लिहाज से देखें तो आज के हालात में बीएसपी के साथ गठबंधन करने का उसे कोई फ़ायदा तो नहीं दिखता, लेकिन इतना ज़रूर है कि ऐसा करके वो एसपी-बीएसपी को साथ जाने से तो रोकेगी ही साथ ही दलित वोटों के बिखराव को भी रोक सकती है। इसके अलावा बीएसपी का नरम रुख उसकी सियासी सेहत के लिए इस मायने में भी फायदेमंद दिखता है।

दरअसल अगर यूपी में दलित और मुस्लिम गठजोड़ बनता है तो बीजेपी के लिए नुकसानदायक हो सकता है और माया की बीजेपी परस्त छवि से इसकी सभावनाए खारिज हो जाती है। बीजेपी भी मायावती से नज़दीकियां जाहिर करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ती।

बीजेपी ने जताया आभार
सपा सुप्रीमो मायावती के उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने को लेकर यूपी के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने मायावती का आभार प्रकट किया है। ब्रजेश पाठक ने कहा कि बहन जी ने हमेशा से वंचित वर्ग की आवाज उठाई है, सभी राजनीतिक दल इसी प्रकार निर्विरोध चुनाव की ओर आगे बढ़े।

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