नई दिल्ली,
चीन और ताइवान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है. गुरुवार को एक कदम आगे बढ़कर चीन की तरफ से 11 मिसाइलें दागी गई हैं. ताइवान की सरकार ने इसकी पुष्टि कर दी है. उनके आसपास के इलाकों की तरफ ये मिसाइलें फायर हुई हैं. लेकिन कहा जा रहा है कि इन मिसाइलों की लैंडिंग जापान में हुई.
जापान के रक्षा मंत्री की तरफ से जारी बयान में कहा गया चीन की तरफ से दागीं गईं पांच मिसाइलें जापान के इलाके में गिरी हैं. ये एक गंभीर मामला है क्योंकि इसका सीधा वास्ता हमारे देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है. हम लोगों की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं कर सकते हैं.
वैसे चीन का ये एक्शन इसलिए भी चिंता में डालता है क्योंकि बुधवार को ताइवान के एयर जोन में चीन के 27 लड़ाकू विमान देखे गए थे. उस कार्रवाई की वजह से ताइवान ने भी अपना मिसाइल सिस्टम एक्टिवेट कर दिया था. अब उस टकराव के बाद गुरुवार को फिर दोनों देश आमने-सामने आ गए हैं. मिलिट्री अभ्यास के नाम पर चीन लगातार ताइवान को चेतावनी दे रहा है, मिसाइलें दाग डराने का काम कर रहा है.
अमेरिका ने लिखी तनाव की स्क्रिप्ट
अब दोनों देशों के बीच शुरू हुए इस तनाव की स्क्रिप्ट अमेरिका द्वारा लिखी गई है. जब से अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने ताइवान का दौरा किया था, चीन द्वारा धमकियों का दौर शुरू हो गया. अब पेलोसी से ताइवान से चली गई हैं, लेकिन अमेरिका के एंट्री मात्र से दोनों देशों के बीच तकरार काफी बढ़ चुकी है. जानकारी के लिए बता दें कि आधिकारिक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि चीनी सेना 4 से 7 अगस्त तक 6 अलग-अलग क्षेत्रों में भी सैन्य अभ्यास करेगी, जो ताइवान द्वीप को सभी दिशाओं से घेरते हैं.
अमेरिका पर ताइवान कर सकता भरोसा?
इसके अलावा ग्लोबल टाइम्स ने चीनी विशेषज्ञों के हवाले से कहा कि चीन का ये अभ्यास अभूतपूर्व है क्योंकि PLA की मिसाइलों के पहली बार ताइवान द्वीप पर उड़ान भरने की उम्मीद है. ऐसी स्थिति में पहले से ज्यादा चल रहा तनाव और ज्यादा बढ़ सकता है. वर्तमान में अमेरिका, ताइवान की मदद की बात जरूर कर रहा है, सुरक्षा देने की गारंटी भी दे रहा है. लेकिन जमीन पर जैसी स्थिति चल रही है, उसे देखते हुए ताइवान, अमेरिका पर भी आंख मूंदकर विश्वास नहीं कर सकता है.
इसका सबसे बड़ा उदाहरण रूस-यूक्रेन युद्ध के रूप में देखने को मिलता है जहां पर शुरुआत में अमेरिका लगातार यूक्रेन का समर्थन कर रहा था, उसे रूस के खिलाफ उकसा रहा था. लेकिन जैसे ही युद्ध शुरू हुआ, अमेरिका ने वहां पर भी अपनी सेना भेजने से इनकार कर दिया और सिर्फ रूस पर प्रतिबंध लगाने वाली कार्रवाई की.