योगी-रामगोपाल मुलाकात से अखिलेश की मुश्किलें बढ़ीं,SP में बिगड़े हालात

लखनऊ

सियासत में कब कौन सा कदम उलटा बैठ जाए, कुछ तय नहीं होता। कुछ ऐसा ही सपा के वरिष्ठ नेता प्रो. राम गोपाल के साथ हुआ है। वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से क्या मिले मानो मुसीबतों और विरोध का ‘छत्ता’ उन पर टूट पड़ा है। उनकी मुलाकात क्या हुई सपा में हालात बिगड़ने से लगे हैं। इससे अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ गई हैं। पहले शिवपाल और फिर अपर्णा ने उन्हें निशाने पर लिया और उनके बाद अब खुद अखिलेश के ‘नवरत्न’ कहे जाने वाले उनके करीबी निशाने पर हैं। अब्दुल्ला आजम खेमा तो पहले ही नाराज़ है। सपा में विरोध के स्वर और मुखर होते नज़र आएं तो हैरत नहीं।

सपा के वरिष्ठ नेता और थिंक टैंक कहे जाने वाले प्रोफेसर साहब यानी राम गोपाल यादव ने एक अगस्त को मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी। उनकी मुलाकात की खबर फैलते ही यह सवाल तैरने लगे कि आखिर उन्होंने मुलाकात क्यों और किस वजह से की। कहीं कोई भ्रम न रहे लिहाजा पार्टी ने उसी रात 9:37 बजे पार्टी के ट्वीटर हैंडिल से इसे लेकर दावा कर दिया।

ट्वीट में बताया गया कि रामगोपाल अल्पसंख्यकों और पार्टी के कार्यकर्ताओं के लगातार हो रहे उत्पीड़न के सिलसिले में योगी आदित्यनाथ से मिले और उत्पीड़न बंद करने की बात कही। बात यहीं थम जाती तो ठीक था लेकिन करीब 24 घंटे बाद उनका पत्र जो उन्होंने सीएम को दिया, सोशल मीडिया में तैरने लगा। हंगामा बस यहीं से खड़ा हो गया। सवाल बड़ा है कि आखिर पत्र सोशल मीडिया तक पहुंचा कैसे और वह भी शिवपाल के हाथों तक?

शिवपाल ने न केवल आवाज उठाई बल्कि चिट्ठी की पोल खोलते हुए सपा की दुखती नब्ज पर हाथ रख दिया। जैसा कि सपा ने दावा किया था चिट्ठी में अल्पसंख्यकों के मुद्दे का जिक्र तक नहीं था। यहीं से सपा मुखिया अखिलेश यादव के करीबी डैमेज कंट्रोल में जुट गए। सपा नेता उदयवीर सिंह का मीडिया में बयान आया। कदम दर कदम बात यूं ही बिगड़ती गई। बयान भी अल्पसंख्यकों को लेकर नहीं बल्कि आजम खां पर केंद्रित हो गया। इस बयान ने भी आग में घी का काम किया और आजम खां तो कुछ नहीं बोले उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म बिफर गए।

राज्यपाल से मिलता रहा है सपा का प्रतिनिधि मंडल: सवाल है कि क्या राम गोपाल यादव सपा मुखिया अखिलेश यादव की सहमति से मिलने गए थे? अगर हां, तो उन्होंने सिर्फ पार्टी के करीबी यादव नेताओं का ही मुद्दा क्यों उठाया और फिर उठाया भी तो समाजवादी पार्टी के ट्वीटर हैंडिल पर भ्रामक दावा क्यों किया गया। जबकि चिट्ठी में इसका जिक्र नहीं था। अगर राम गोपाल अखिलेश की असहमति से गए तो सपा ने इसे पार्टी फोरम पर उठाते हुए सफाई क्यों दी। चूक बस यहीं हो गई।

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