देश के चार ऐसे उपराष्ट्रपति जिनको निर्विरोध ही चुना गया, 1987 में तो गजब ही हो गया था

नई दिल्ली

उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हो चुका है। एनडीए प्रत्याशी जगदीप धनखड़ की एकतरफा जीत हुई है। धनखड़ को 528 वोट मिले हैं। वहीं मार्गरेट अल्वा को 128 वोट मिले। 15 वोट अमान्य घोषित किए गए। 725 सांसदों ने मतदान किया था। विपक्ष की ओर से मार्गरेट अल्वा को उम्मीदवार बनाया गया था। देश में चार बार ऐसा भी मौका आया जब उपराष्ट्रपति निर्विरोध चुन लिए गए। ऐसा तब होता है जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच एक ही प्रत्याशी पर बात बन जाती है। फिर दोनों ही उसको समर्थन देकर निर्विरोध चुन लेते हैं।

मगर आजाद भारत के इतिहास में ऐसा सिर्फ चार बार ही हो पाया। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे जगदीप धनखड़ को भाजपा, जेडीयू, अपना दल (सोनेलाल), बीजेडी, बसपा, एआईएडीएमके, वाईएसआर कांग्रेस, लोक जनशक्ति पार्टी, एनपीपी, एमएनएफ, एनडीपीपी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले), शिवसेना (शिंदे गुट), अकाली दल जैसे दलों का समर्थन मिला है।

सबसे पहले 1952 में उपराष्ट्रपति का चुनाव निर्विरोध हुआ। लेकिन ये एक संयोग था। क्योंकि विपक्ष की ओर से भी प्रत्याशी उतारा गया था। उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए 21 अप्रैल 1952 तक नामांकन मांगे गए थे। इसमें डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और शेख खादिर हुसैन ने नामांकन दाखिल किया था। यूं तो राधाकृष्णन की जीत पक्की मानी जा रही थी मगर ऐन वक्त पर ये चुनाव निर्विरोध ही हो गया। नामांकन पत्रों की जांच के बाद शेख खादिर का नामांकन रिटर्निंग ऑफिसर ने निरस्त कर दिया। इसके बाद केवल डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन बचे। जिन्हें निर्विरोध उपराष्ट्रपति चुन लिया गया।

पांच साल बाद यानी 1957 को फिर उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव किए गए। इन चुनाव में डॉ. राधाकृष्णन में लगातार दूसरी बार डॉ. राधाकृष्णन निर्विरोध उपराष्ट्रपति चुने गए। ये दूसरा मौका था जब निर्विरोध उनके खिलाफ किसी ने नामांकन नहीं किया था।

मोहम्मद हिदायतुल्लाह का नाम तो आपने सुना होगा। हिदायतुल्लाह पहले ऐसे शख्स हैं जो देश के तीन सबसे बड़े संवैधानिक पदों पर रहे। 1979 में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रहे मोहम्मद हिदायतुल्लाह ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन किया। हिदायतुल्लाह के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा हुआ और वह निर्विरोध उपराष्ट्रपति बन गए।

1987 में तो गजब ही हो गया
उपराष्ट्रपति चुनावों के इतिहास में 1987 को हमेशा याद रखा जाएगा। ये चुनाव जितना रोचक था उतना आचंभित करने वाला था। उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए 27 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया था। लेकिन संयोग तो देखिए 26 उम्मीदवारों का नामांकन रद्द कर दिया गया। रिटर्निंग ऑफिसर ने सिर्फ डॉ. शंकर दयाल शर्मा के नामांकन को ही वैध बताया था। नाम वापसी की अंतिम तिथि समाप्त होने के बाद डॉ. शंकर दयाल शर्मा को निर्विरोध देश का उपराष्ट्रपति चुना गया था।

इकलौते निर्विरोध राष्ट्रपति
देश के सातवें राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी स्वतंत्र भारत के इतिहास में सर्वोच्च पद के लिए निर्विरोध चुने गए इकलौते राष्ट्रपति थे।वह 1977 में फकरुद्दीन अली अहमद के निधन के बाद राष्ट्रपति बने थे। अहमद ने 11 फरवरी 1977 को अंतिम सांस ली थी। इससे एक दिन पहले आपातकाल के दो साल बाद लोकसभा चुनाव हुए थे। उस समय उपराष्ट्रपति बी डी जत्ती ने कार्यवाहक राष्ट्रपति का पद संभाला था।

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