भगवान के बाद अटल-आडवाणी को ही मानता हूं, लेकिन कभी पैर नहीं छुए… वेंकैया का संदेश समझिए

नई दिल्ली

राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू को सोमवार को उच्च सदन में विदाई दी गई। विदाई समारोह में बोलते हुए वेंकैया नायडू ने कहा कि मैं एक तरफ बहुत खुश हूं और दूसरी तरफ मुझे लगता है, मैं आप सभी को याद कर रहा हूं क्योंकि मैं 10 अगस्त से सदन की अध्यक्षता करने की स्थिति में नहीं रहूंगा। मैं हमेशा सदन का अभिवादन करते हुए ‘नमस्ते’ कहा करता था क्योंकि भारतीय परंपरा और संस्कृति में बहुत कुछ है। इस दौरान उन्होंने कई पुराने किस्से भी सुनाए और सदस्यों को बताया कि कड़ी मेहनत का कितना महत्व है। उन्होंने बताया कि भगवान के बाद अटल और आडवाणी को ही मानते थे लेकिन उनके पैर भी कभी नहीं छुए।

वेंकैया नायडू ने विदाई समारोह में बोलते हुए कहा कि कैसे एक सामान्य कार्यकर्ता से वह इस पद तक पहुंचे। उन्होंने सभागार में मौजूद सदस्यों से कहा कि कड़ी मेहनत बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं क्योंकि मैंने कभी किसी के पैर नहीं छुए। वाजपेयी जी और आडवाणी जी मेरे लिए भगवान के बाद दूसरे थे लेकिन मैंने उनके भी पैर कभी नहीं छुए। हालांकि सम्मान और लगाव वैसा ही था। उन्होंने कहा कि मैं इसलिए कह रहा हूं कि क्योंकि कड़ी मेहनत करिए।

उन्होंने बताया कि वह एक साधारण किसान परिवार से आते हैं। स्कूल 3 किलोमीटर चलकर जाना पड़ता था। पार्टी के बड़े नेता जब शहर आते थे तो पोस्टर चिपकाता था। उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी की सभा जब हमारे यहां हुई तब मैं तांगा में बैठकर उद्घोषणा की और पोस्टर चिपकाया। पार्टी में सामान्य कार्यकर्ता से पार्टी का अध्यक्ष बना। यह लोकतंत्र की खूबसूरती है। उन्होंने सदस्यों से कड़ी मेहनत की अपील की और कहा कि लोगों से मिलिए और उनकी बातें सुनिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि एम. वेंकैया नायडू जानते थे कि कैसे सदन को और अधिक सक्षम बनाना है और देश के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना है। हमें उनकी सलाह को यादगार बनाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वेंकैया नायडू ऐसे पहले उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापित हैं जो लंबे समय तक राज्यसभा में रहे। उनको सदन में क्या-क्या चलता है, पर्दे के पीछे क्या चलता है, कौन सा दल क्या करेगा, इन सभी बातों का उनको भली भांति अंदाजा रहता था।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा आपका हर शब्द सुना, पसंद किया जाता है और कभी भी काउंटर नहीं किया जाता। उन्होंने कहा कि सभापति ने हमेशा सरकार को प्रस्ताव लाने दें, विपक्ष को उसका विरोध करने दें और सदन को उसका समाधान निकालने दें के सिद्धांत पर काम किया। सांसदों की बातें सुनकर नायडू भावुक भी हो गए।

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