गठबंधन के खेल में नीतीश से कम स्ट्राइक रेट नहीं है मायावती का, 30 साल से यूपी है गवाह

लखनऊ

देश की राजनीति में आजकल सबसे ज्यादा चर्चा नीतीश कुमार की है। उन्होंने एक बार फिर नीतीश कुमार ने चंद घंटों के भीतर भीतर मुख्यमंत्री बनने के लिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया फिर मुख्यमंत्री पद के लिए दावा किया और आज मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं। नीतीश कुमार बिहार में पूरी सियासत एक झटके में पलट देने के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। लेकिन देश में ऐसा करने वाले वो अकेले नेता नहीं है। नीतीश कुमार कमोबेश उसी रास्ते पर हैं, जिस पर उत्तर प्रदेश में बसपा सुप्रीमो मायावती चलती आई हैं। गठबंधन के मामले में दोनों की राजनीति मेल खाती है। 90 के दशक से बसपा और मायावती देश की राजनीति का अहम किरदार बने हुए हैं। करीब 30 वर्षों में धुर विरोधी हों या कोई और सभी के साथ गठबंधन करने, सत्ता के लिए नए-नए प्रयोग, 6-6 महीने के मुख्यमंत्री का फार्मूला, चुनाव से पहले गठबंधन बाद में किनारा जैसे तमाम फैसले उनके हथियार रहे।

90 के दशक में बसपा का पहला गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ हुआ। उस समय बसपा कांशीराम की हुआ करती थी और मायावती का नंबर उनके बाद आता था। ये गठबंधन कांशीराम और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के बीच हुआ। ये गठबंधन दो ही साल चला और 1995 में मायावती पहली बार बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं।

लेकिन 1996 के चुनाव में बसपा कांग्रेस के साथ गठबंधन में चली गई। 1997 में बसपा ने फिर बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई और फार्मूले के तहत 6-6 महीने मुख्यमंत्री दोनों पार्टियों से होने थे। मायावती ने पहले शपथ ली, कार्यकाल आगे बढ़ा लेकिन जब कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री बनने की नौबत आई तो बसपा ने बीजेपी से संबंध तोड़ लिया। इसके बाद 2002 में फिर मायावती बीजेपी के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बनीं।

अब तक साफ हो गया था कि मायावती ने गठबंधन किसी के भी साथ भले ही किया हो लेकिन उनका इतिहास रहा कि शर्तें सिर्फ वह अपनी ही मनवाती हैं। लेकिन 21वीं सदी में उत्तर प्रदेश की जनता भी अपना मिजाज बदल रही थी। वह गठबंधन की सरकारों से ऊबने लगी थी। इसका फायदा मायावती को ही 2007 के चुनाव में मिल गया। बसपा पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई। हालांकि 2012 में ये जनादेश सपा को मिल गया और 2017 आते-आते भाजपा यूपी की सत्ता पर काबिज हो गई। 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से ही बसपा यूपी में हाशिए पर चली गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा बुरी तरह कमजोर थी इस दौरान मायावती के साथ अखिलेश यादव आ गए।

सपा बसपा के बीच ये गठबंधन काफी चर्चा में रहा क्योंकि स्टेट गेस्ट हाउस कांड के बाद से ही दोनों पार्टियां एक दूसरे की धुर-विरोधी मानी जाती थीं। लेकिन ये हृदय परिवर्तन भी ज्यादा देर नहीं चला। इस चुनाव में बसपा ने 10 सीटें जीतीं और अखिलेश की सपा ने महज 5 सीटें। इसके बाद भी मायावती ने ये कहते हुए गठबंधन तोड़ लिया कि सपा के वोट उनके प्रत्याशियों को नहीं मिले, जबकि बसपा के वोट सपा को मिले। इस बार 2022 के यूपी चुनाव में बसपा ने अकेले चुनाव लड़ा और सिर्फ एक ही विधायक के बूते विधानसभा में खड़ी है।

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