जब जवाहर लाल नेहरू से मिले थे राज कपूर, पूछा था- पंडित जी, सुना है आप लड़कियों में बड़े फेमस हैं

राज कपूर को ‘बॉलीवुड का शोमैन’ कहा जाता है। क्यों? क्योंकि उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को एक अलग पहचान दिलाई। अलग-अलग तरह की फिल्मों, कहानियों से लोगों को रूबरू कराया। उन्होंने सिनेमा को जिया। पूरी जिंदगी इसी में बिताई। यही वजह है कि उनकी लाइफ खुद किसी कहानी से कम नहीं। वो भी एक दिलचस्प कहानी। इसी कहानी से जुड़ा एक किस्सा है, जो उनकी और देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की मुलाकात से जुड़ा है। इसी मुलाकात के दौरान उन्होंने ‘आयरन लेडी’ कही जाने वाली इंदिरा गांधी को बहुत शर्मीला और विनम्र पाया था। इसी दौरान नेहरू जी को एक ‘बच्चे’ की तरह पाया था और उनके दिल में उठने वाली एक ‘कसक’ को भी भांप लिया था। आइये आज किसी किस्से के बारे में जानते हैं, जिसका जिक्र उनकी बायोपिक ‘राज कपूर वन एंड ओनली शोमैन’ में किया गया है।

राज कपूर की बायोपिक में लिखा है, ‘मैंने हमेशा ये माना है और फिर कहता हूं कि एक शोमैन (फिल्म इंडस्ट्री) और एक पॉलिटिशियन एक ही प्लेटफॉर्म पर दौड़ते हैं, क्योंकि वे सपने बेचते हैं। कुछ सपने सच हो जाते हैं, कुछ नहीं होते। फिल्म बनाना किसी इलेक्शन में कंटेस्ट करने जैसा ही है, लेकिन इलेक्शन में आप धांधली कर सकते हैं, लेकिन पब्लिक ओपिनियन में नहीं।’

पृथ्वीराज कपूर से मिले थे जवाहर लाल नेहरू
इसमें आगे लिखा है, ‘सोवियत यूनियन ट्रिप से वापस लौटने के बाद, जहां पंडित जवाहर लाल नेहरू स्टालिन से मिले थे, वे मेरे पापाजी (पृथ्वीराज कपूर) से भी मिले। नेहरू जी ज्यादा फिल्में तो नहीं देखते थे, लेकिन वो मेरे पापा को अच्छे से जानते थे। वो मेरे पिता को एक तरफ लेकर गए और पूछा, ‘ये ‘आवारा’ फिल्म क्या है, जो तुम्हारे बेटे ने बनाया है? स्टालिन पूरे टाइम इसकी ही बातें कर रहा था।’

राज कपूर और जवाहर लाल नेहरू का किस्सा
राज कपूर को एक बार जवाहर लाल नेहरू से मिलने का मौका मिला था। उनके साथ दिलीप कुमार और देव आनंद साहब भी थे। बायोग्राफी में आगे लिखा है, ‘एक बार दिलीप कुमार, देव आनंद और मुझे भारत के प्राइम मिनिस्टर पंडित जवाहर लाल नेहरू संग कुछ समय बिताने के लिए इनवाइट किया गया। उनके तीन मूर्ति आवास पर। हमारी गाड़ी के आगे और पीछे सिक्योरिटी गार्ड्स अपनी मोटरबाइक से एस्कोर्ट करते हुए हमें वहां तक लेकर गए, जहां उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने हमें रिसीव किया। वो मॉडेस्ट और शर्मीली थीं। कुछ ही शब्द बोले थे, लेकिन बहुत ज्यादा विनम्र थीं। हमें खास चाय भी पिलाई। इसके बाद हमें नेहरू जी तक ले जाया गया।

आगे लिखा है, ‘उस समय वो (नेहरू जी) स्ट्रोक से बस उबरे थे। उन्होंने हम तीनों ‘बिग थ्री’ (इस फेमस ट्रायो को यही कहा जाता था) को बांहों में भर लिया और जल्द ही अच्छे मूड के साथ बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। उस टाइम के दुनिया के सबसे महान लीडर्स में से एक के एनकाउंटर्स को रिकाउंट करते हुए। हम उन्हें पूरी अटेंशन के साथ सुन रहे थे। जैसे बच्चे अपने दादा की एडवेंचर से भरी कहानियों को सुनते हैं। वो एक बच्चे की तरह ही थे, जो खुशी और गर्व के साथ अपने कुछ मेमेंटोस को दिखा रहे थे। हम थोड़ी ही देर में ऐसे खुल गए थे, जैसे बिछड़े दोस्त हों और सालों बाद मिल रहे हों। वो उस मोमेंट का इंतजार कर रहे थे, जब अपनी जिंदगी के बोझ से कुछ समय के लिए भाग सकें, जिसमें उनके पॉलिटिकल प्रेशर को डील करने के इर्द-गिर्द बुनी हुई थी।’

‘हमने उनसे पूछा कि हमने सुना है कि आप जहां भी जाते हैं, वहां महिलाओं के बीच में काफी पॉप्युलर हो जाते हैं। उन्होंने मुस्कुराते हुए तुरंत कहा, ‘आप जितने हैं, उतने नहीं।’ हमने पढ़ा था कि उनकी स्माइल बहुत चार्मिंग है और बहुत फोटोजेनिक फेस है। फिर हमने पूछा कि ‘क्या आपकी कातिल मुस्कान ने लेडी माउंटबेटन का दिल जीत लिया था?’ इस पर वो ब्लश कर हंसते हुए कहते हैं कि ‘उन्हें अपने बारे में इस तरह की खबरें पसंद हैं।’ ‘ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने आपके प्रति अपनी इस फीलिंग को खुद बयां किया था।’ दिलीप कुमार भी इस सवाल-जवाब में खुद को शामिल कर लेते हैं। ‘लोगों ने मुझे इन खबरों पर यकीन करवा दिया है।’ इस पर वो खूब हंसते हैं। इस दौरान मैं उनके स्टडी रूम को स्कैन करता हूं और उनसे पूछता हूं कि क्या यही वो फेमस सीट है, जहां से हमारे देश के प्रधानमंत्री अपने देश को हुक्म देते हैं? इस पर वो हंसते हैं और कहते हैं, ‘जाओ, वहां बैठो। तुम्हें पता चल जाएगा।’ पंडित जी ने हम सभी को हैरान कर दिया था। लेकिन मैंने उस आदमी में एक उदासी पाई, जो देख रहा था कि उसके इर्दगिर्द क्या हो रहा है। एक महान लीडर, जिसने देश की आजादी के लिए लड़ते हुए और उसे हासिल कर इतिहास बनाते हुए जेल में रहने के दौरान ‘द डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में हिस्ट्री लिख दी थी। जो जल्द ही खुद इतिहास का हिस्सा बनने वाला था। वो उस चेतावनी को छिपा नहीं पाए थे कि वो अपने क्रिएटर के कॉल का इंतजार कर रहे थे। इस व्यथा की झलक उनके हंसने और खिलखिलाने में कई बार दिख गई।’

1964 में हुआ था देहांत
साल 1962 में नेहरू जी की तबीयत बिगड़नी शुरू हुई थी। उन्होंने रिकवरी के लिए 1963 में कश्मीर में कई महीने बिताए। इसी वजह से कुछ दिन वो देहरादून में भी रहे। 1964 में दिल्ली वापस लौटे। 26 मई की पूरी रात वो बैचेन रहे। सुबह पीठ में दर्द की शिकायत की। डॉक्टर को बुलाया गया, लेकिन वो बेहोश हो गए और फिर दोबारा कभी नहीं उठे। उनकी मौत का कारण हार्ट अटैक बताया गया।

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