कोलंबो
चीन का जासूसी जहाज यूआन वांग 5 श्रीलंका के दौरा स्थगित करने के अनुरोध के बाद भी लगातार हंबनटोटा बंदरगाह की ओर बढ़ रहा है। मंगलवार को श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने भारत के विरोध के बाद चीन से अनुरोध किया था कि वह यूआन वांग 5 की यात्रा को टाल दे। चीन के जहाज ने यात्रा को टालने की बजाय दबाव बनाने के लिए अपने स्पीड को बढ़ा दिया और हंबनटोटा से मात्र 600 समुद्री मील की दूरी पर पहुंच गया है। इस बीच विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि श्रीलंका अगर चीनी जासूसी जहाज को भारत के कहने पर रोकता है तो ड्रैगन उसे आईएमएफ से बेलआउट पैकेज लेने से रोक सकता है।
चीन के जहाज ने हिंद महासागर में लगातार अपनी चाल को बदला है। इंडोनेशिया के पास पहुंचे इस जहाज ने मंगलवार को उसने अपनी स्पीड को कम कर दिया था और अंडमान निकोबार द्वीप समूह की ओर घूम गया था। हालांकि बुधवार सुबह यह फिर से हंबनटोटा की ओर मुड़ गया। हालांकि उसकी स्पीड अभी कम है। इस जहाज को 11 से 17 अगस्त तक श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर रुकना है। चीन ने ऐलान किया है कि वह तटीय देशों और कानून का सम्मान करते हुए गहरे समुद्र में वैज्ञानिक शोध करता रहेगा। चीन ने कहा कि भारत की आपत्ति आधारहीन है।
ड्रैगन रोक सकता है IMF से मिलने वाला बेलआउट पैकेज
चीन का यह जहाज साल 2007 में बना था और इसकी क्षमता 11 हजार टन है। यह जहाज हिंद महासागर के उत्तरी इलाके में सैटलाइट शोध का काम करेगा जिससे भारत के कान खड़े हो गए हैं। हंबनटोटा बंदरगाह कोलंबो से 250 किमी दूर है और चीन के कर्ज से इसे बनाया गया था। श्रीलंका सरकार कर्ज को चुका नहीं पाई तो उसने इसे चीन को 99 साल के लिए दे दिया था। इस बीच इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक अगर श्रीलंका ने भारत के विरोध के बाद चीन के जासूसी जहाज को अनुमति नहीं दी तो अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से उसको मिलने वाला बेलआउट पैकेज ड्रैगन रोक सकता है।
भारतीय सूत्रों का कहना है कि चीन ने अपने इस कार्ड को श्रीलंका के साथ चल रही लंबी बातचीत के दौरान खेल दिया है। दरअसल, आईएमएफ से बेलआउट पैकेज लेने के लिए सबसे पहले संगठन के मुख्य ऋणदाताओं से स्वीकृति लेनी होती है और इसके लिए एक रिपोर्ट तैयार होती है। विश्लेषकों का कहना है कि श्रीलंका की माली हालत को देखते हुए यह रिपोर्ट बहुत ही नकारात्मक है। आईएमएफ नहीं चाहेगा कि उसकी दी हुई आर्थिक मदद श्रीलंका के कर्ज को बढ़ाए। अभी फिलहाल श्रीलंका पर जीडीपी का 115 प्रतिशत कर्ज है।
चीन की चाल से श्रीलंका की माली हालत और ज्यादा हो जाएगी खराब
विश्वबैंक और आईएमएफ के मुताबिक आमतौर पर इसे गरीब देशों के लिए 60 से 65 फीसदी नहीं पार करना चाहिए। श्रीलंका को बड़े पैमाने पर कर्ज देने वाले देशों में चीन भी शामिल है। श्रीलंका के आईएमएफ से पैकेज लेने के लिए जरूरी है कि चीन भी मुद्राकोष की शर्तों से सहमत हो। चीन को अपने कर्ज की उगाही में या तो देरी करनी होगी या फिर रिस्ट्रक्चर करना होगा। ऐसे में चीन की मंजूरी आईएमएफ से लोन लेने में बेहद जरूरी होगी। चीन इस पूरी प्रक्रिया में या तो देरी कर सकता है या लंबा खींच सकता है। इन दोनों ही सूरत में श्रीलंका की माली हालत और ज्यादा खराब हो जाएगी। चीन अब अपने जहाज को रोकने का बहाना करके श्रीलंका को परेशान कर सकता है। भारत ने भी करीब 4 अरब डॉलर का लोन दिया है जिससे वह भी ऐसा कर सकता है लेकिन पड़ोसी के लिए नई दिल्ली ऐसा करेगा नहीं।