तेरा-मेरा, ऊंच-नीच का एक ही इलाज इंडिया फर्स्ट… सावरकर, मुखर्जी को पीएम के याद करने का मतलब समझिए

नई दिल्ली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार नौवीं बार लाल किले की प्राचीर से बोले। खूब बोले। 83 मिनट लंबे भाषण में उन्होंने देशवासियों से 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में बढ़ने को प्रेरित किया। इसके लिए 5 प्रण दिलाए। भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की बात कही। परिवारवाद के खिलाफ लड़ाई में देशवासियों खासकर नौजवानों का समर्थन मांगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमाम विषयों पर बहुत बिना लाग-लपेट के बेबाकी से बोले। खास बात ये है कि राष्ट्रनायकों को नमन करते वक्त उन्होंने वीर सावरकर को याद किया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी को याद किया।

विनायक दामोदर सावरकर भारतीय दक्षिणपंथी राजनीति के पुरोधा हैं। दूसरी तरफ, श्यामा प्रसाद मुखर्जी आधुनिक बीजेपी के पूर्ववर्ती जनसंघ के संस्थापक थे। सावरकर ने 1911 से 1921 तक अंडमान जेल में काला पानी की सजा काटी। भीषण यातनाएं सही। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की अग्नि प्रज्ज्वलित की। वहीं मुखर्जी ने आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर में भारत के समानांतर अलग प्रधानमंत्री, अलग झंडा, अलग संविधान का पुरजोर विरोध किया। परमिट सिस्टम का विरोध किया। तब भारत के बाकी राज्यों के लोगों को जम्मू-कश्मीर में जाने के लिए परमिट लेने की जरूरत थी। जम्मू-कश्मीर में हिरासत के दौरान 1953 में मुखर्जी की रहस्यमय मौत हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से इन दोनों हस्तियों का खास तौर पर नाम लिया।

पीएम मोदी ने कहा, ‘आजादी की जंग में गुलामी का पूरा कालंखड संघर्ष में बीता है। हिन्‍दुस्‍तान का कोई कोना ऐसा नहीं था, कोई काल ऐसा नहीं था, जब देशवासियों ने सालों साल तक गुलामी के खिलाफ जंग न की हो, जीवन न खपाया हो, यातनाएं न झेली हों, आहुति न दी हो।’ उन्होंने कहा, ‘आज हम सब देशवासियों के लिए ऐसे हर महापुरूष को, हर त्‍यागी को, हर बलिदानी को नमन करने का अवसर है। उनका ऋण स्‍वीकार करने का अवसर है और उनका स्‍मरण करते हुए उनके सपनों को जल्‍द से जल्‍द पूरा करने का संकल्‍प लेने का भी अवसर है। हम सभी देशवासी पूज्‍य बापू, नेता जी सुभाष चंद्र बोस, बाबासाहेब आम्‍बेडकर, वीर सावरकर के कृतज्ञ हैं जिन्‍होंने कर्तव्‍य पथ पर जीवन को खपा दिया। कर्तव्‍य पथ ही उनका जीवन पथ रहा।’

आजादी की लड़ाई में सावरकर का अप्रतिम योगदान रहा। लेकिन उनके आलोचक उनके अंग्रेजों से ‘माफी मांगने’ वाले पत्रों का बार-बार हवाला देते हैं। देश निर्माण में किसी शख्सियत के योगदान को विचारधारा की कसौटी पर कसकर आंकने वाली संकीर्णता का शिकार सावरकर भी हुए, मुखर्जी भी। अब चूंकि दक्षिणपंथी सरकार है तो प्रधानमंत्री इन दोनों हस्तियों को गांधी, पटेल, नेहरू की कतार में रखकर याद कर रहे हैं।

पीएम मोदी ने लाल किले से अपने भाषण में एकता और एकजुटता की बात कही। उन्होंने कहा कि इतने बड़े देश की विविधता को हमें सेलिब्रेट करना होगा। कोई नीचा नहीं है, कोई ऊंचा नहीं है, कोई अपना नहीं, कोई पराया नहीं। हमें एकता से बांधने का मंत्र हैं- इंडिया फर्स्ट। हमें ऊंच-नीच और मेरे-तेरे के भेदभाव को खत्म करना होगा। पीएम मोदी की ये बातें सिर्फ सामाजिक ऊंच-नीच, भेदभाव की भावना पर ही लागू नहीं होती। महापुरुषों को भी ऊंचा-नीचा, तेरा-मेरा में बांटने की संकीर्णता पर भी लागू होती है।

दिलचस्प बात ये है कि एक दिन पहले ही बीजेपी और कांग्रेस में ट्विटर पर तीखी तकरार देखने को मिली थी। 14 अगस्त को विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस के मौके पर बीजेपी ने ट्विटर पर वीडियो जारी करके देश के विभाजन के लिए नेहरू की अगुआई वाली कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया था। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लिखा कि कांग्रेस न आजादी की लड़ाई के दौरान ‘अखंड भारत’ को पसंद करती थी और न ही अब।

दूसरी तरफ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बंटवारे के लिए सावरकर को जिम्मेदार बताया। रमेश ने ट्वीट किया, ‘सच तो ये है कि द्वि राष्ट्र सिद्धांत को सावरकर ने दिया और जिन्ना ने उसे परफेक्ट किया। सरदार पटेल ने लिखा था- मुझे लगा कि अगर हमने विभाजन को स्वीकार नहीं किया होता तो भारत कई टुकड़ों में बंट जाता और पूरी तरह बर्बाद हो जाता।’खैर, राजनीति है। महापुरुषों के राजनीतिकरण का दौर है। किसी को सावरकर फूटी आंखों नहीं सुहाते तो किसी को आज की हर समस्या के पीछे नेहरू ही नजर आते हैं। ये सियासी तंगनजरी का ही तकाजा है जो विपरीत विचार का हर महापुरुष बौना दिखता है।

 

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