नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कहा कि आज जब देश अमृत काल में प्रवेश कर रहा है तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को निर्णायक मोड़ पर ले जाना उनकी संवैधानिक और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि जब तक भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी के प्रति नफरत का भाव पैदा नहीं होता, सामाजिक रूप से उसे नीचा देखने के लिए मजबूर नहीं किया जाता, तब तक यह मानसिकता खत्म नहीं होने वाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से भ्रष्टाचार पर तगड़ा प्रहार करने की बात कही गई है लेकिन क्या यह इतनी आसानी से संभव है। क्या वह सिस्टम है जिसके जरिए भ्रष्टाचार पर प्रहार किया जा सकता है, जिसको लेकर यह कहा जाता है कि भारत जैसे देश से इसको समाप्त करना संभव नहीं है। हाल फिलहाल में ईडी की जैसी कार्रवाई हुई है और नोटों का बंडल मिला, क्या सिर्फ ऐसी कुछ कार्रवाई से भ्रष्टाचार पर गहरी चोट संभव है? और जहां तक नफरत का भाव पैदा करने वाली बात है यह सोच अच्छी है लेकिन यह भी कम मुश्किल काम नहीं खासकर भारत जैसे देश में।
भ्रष्टाचार को भारत जैसे देश से खत्म करना क्या संभव
भ्रष्टाचार का मतलब सिर्फ इस तक सीमित नहीं है कि किसी के यहां छापा पड़े और नोटों का बंडल मिले। भ्रष्टाचार को यदि भारत के संदर्भ में देखा जाए तो यहां इसका सबसे अधिक मतलब है रिश्वत से। यह कहा जाता है कि कोई काम करना हो तो पहले रिश्वत। छोटी इकाई से लेकर बड़े लेवल तक इसका बोलबाला है। ऐसा भी नहीं कि यह सिर्फ भारत में ही है दुनिया के कई देशों में लोग इससे त्रस्त हैं। पीएम मोदी की पहल अच्छी है लेकिन इसका जमीनी स्तर पर असर आखिर कैसे होगा। आज भले ही ईडी और सीबीआई की बात की जा रही है लेकिन वहां के खाली पदों को छोड़ भी दिया जाए तो देश में सिर्फ पुलिस महकमे में 5 लाख से अधिक पद खाली हैं।
वहीं केंद्र में खाली पदों की संख्या 10 लाख के करीब है। और सबसे आखिरी जहां यह मामले जाते हैं यानी अदालत वहां नजर डाले तो 4 करोड़ से अधिक केस पेंडिंग हैं। यदि इस पर बारीकी से गौर किया जाए तो कहीं न कहीं एक दूसरे से यह कनेक्टेड है। पुलिस बल की पर्याप्त संख्या नहीं, जजों की संख्या पर्याप्त नहीं, विभाग में कर्मचारी पर्याप्त नहीं। ऐसे में क्या कोई एडवांस टेक्नोलॉजी है जिसके जरिए इस पर नजर रखी जा सके।
कैसे लगेगी लगाम, खाली पदों का यह हाल तो देखिए
इसी मानसून सत्र में सराकर की ओर से बताया गया कि उसके विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में करीब दस लाख पद खाली हैं। हालांकि सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि अगले डेढ़ साल में मिशन मोड में इन पदों को भरा जाएगा। सरकार ने बताया कि केंद्र सरकार के विभागों में 40 लाख से अधिक स्वीकृत पदों में से एक मार्च 2021 तक 9.79 लाख पद खाली हैं। यह पद सिविल, होम मिनिस्ट्री ,डाक, रेलवे और रेवेन्यू विभाग में खाली है। हाल ही में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि देश में करीब 5 लाख 30 हजार पुलिस के पद खाली पड़े हैं। देश भर के पुलिस थानों में खाली पड़े पदों को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में सरकार की ओर से यह जवाब आया। राज्य मंत्री की ओर से जो जानकारी दी गई उसके मुताबिक पुलिस की स्वीकृत संख्या है 26 लाख 23 हजार 225 लेकिन वास्तविक संख्या है 20 लाख 91 हजार और 488।
वहीं देश की तमाम अदालतों में साढ़े 4 करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं। इसके पीछे जजों की संख्या की कमी से लेकर मुकदमेबाजी तक तमाम वजहें गिनाई जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक एक अप्रैल 2022 तक कुल 70 हजार से अधिक केस पेंडिंग है। वहीं अटॉर्नी जनरल के मुताबिक देशभर के हाई कोर्ट में 42 लाख मामले पेंडिंग है। वहीं देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि 2016 तक देश में 2 करोड़ 65 लाख केस पेंडिंग थे लेकिन अब लंबित मामलों की संख्या 4 करोड़ से अधिक हो गई है।
घोटाले नहीं हुए लेकिन सवाल बरकरार
बीते आठ साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह कहा जा सकता है कि केंद्र के स्तर पर कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सभी जगहों से भ्रष्टाचार दूर हो गया। विपक्ष की ओर से यह सवाल उठाया जा रहा है कि लोकपाल का अब जिक्र क्यों नहीं हो रहा है। हाल ही में अन्ना हजारे का नाम लेते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि अन्ना हजारे ने लोकपाल के नाम पर देश भर में आतंक मचाया था। अब कहां गायब हो गए। अब वे लोकपाल पर क्यों नहीं बोल रहे हैं।
सीएम गहलोत ने कहा कि अन्ना हजारे ने यूपीए सरकार को खूब बदनाम किया था। विपक्ष की ओर से यह सवाल भी उठाया गया है कि केंद्र की सत्ता में आने के बाद भाजपा ने काले धन की जांच पर कमेटी बनाई थी पिछले 8 साल में उस कमेटी ने कोई रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है। वहीं बैंक व सरकार को चूना लगाकर विजय माल्या, ललित मोदी के देश छोड़कर जाने को लेकर भी विपक्ष निशाना साधता है। हाल फिलहाल में ईडी की जो कार्रवाई हुई है उसको लेकर भी विपक्ष का आरोप है कि एकतरफा कार्रवाई क्यों। पीएम मोदी ने भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों के प्रति नफरत की बात की है लेकिन सच्चाई यह भी है कि समाज में ऐसे ही लोगों का बोलबाला है।
क्या कहती हैं ये रिपोर्ट
– इसी साल की एक स्टडी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि करीब 43.2 प्रतिशत भारतीयों की खुशी भ्रष्टाचार से प्रभावित होती है। परामर्श कंपनी हैपीप्लस ने खुशी के स्तर पर केंद्रित कर रिपोर्ट तैयार की जिसमें पाया गया कि 43.2 प्रतिशत भारतीय मानते हैं कि सरकार और कारोबार में भ्रष्टाचार है और यह लोगों को कुंठित करती है।
– भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशन इंडेक्स सीपीआई 2021 के अपनी रिपोर्ट जारी इसी साल जनवरी के महीने में की। इस रिपोर्ट में भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक (सीपीआई) 2021 में 180 देशों की सूची में भारत को 85वां स्थान मिला है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार पिछली बार के मुकाबले भारत की रैंकिंग में एक स्थान का सुधार हुआ है। विशेषज्ञों और व्यवसायियों के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार के कथित स्तरों के आधार पर 180 देशों और क्षेत्रों की रैंकिंग की सूची तैयार की जाती है।
– भ्रष्टाचार को लेकर वैश्विक संस्था ट्रांसपरेंसी इटरनेशनल की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया एशिया में भारत ऐसा देश है जहां घूसखोरी अधिक है। रिपोर्ट के मुताबिक लोग सरकारी काम कराने के लिए पैरवी का इस्तेमाल करते हैं और साथ ही रिश्वत भी देते हैं। यह धारणा है कि पैरवी नहीं और घूस नहीं दिया तो काम लटक जाएगा। इस सर्वे में आम लोगों को करप्शन की स्थिति पर राय देने को कहा गया था और बुनियादी जरूरतों को पूरा करते वक्त उनके सामने आने वाली मुश्किलों पर ध्यान केंद्रित करना था। यह सर्वे देश के 200 से अधिक शहरों में किया गया।