अहमदाबाद
3 मार्च 2002, बिलकिस बानो के लिए यह वह दिन था जब उसकी जिंदगी तबाह हो गई। गर्भ में पांच महीने के पल रहे बच्चे के स्वागत के लिए बिलकिस और उसका परिवार तैयारी कर रहा था। उसके घर खुशियां आने वाली थीं, लेकिन उससे पहले ही गोधरा कांड के बाद हुए गुजरात दंगो ने सब तबाह कर दिया। दंगाईयों की भीड़ बिलकिस के घर में घुसी और निर्ममता से उसकी आंखों के सामने ही पूरे परिवार को खत्म कर दिया। दंगाईयों का जी यहीं नहीं भरा, उन्होंने बिलकिस के साथ हैवानियत की। उसके साथ एक-एक करके कई लोगों ने गैंगरेप किया। वह दर्द से तड़पकर बेहोश हो गई। होश आया तो न्याय के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। उसके दोषियों को उम्रकैद हुई लेकिन अब उन्हें गुजरात सरकार ने जेल से रिहा कर दिया है।
दोषियों ने 15 साल से अधिक जेल की सजा काटने के बाद समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार को उनकी सजा माफ करने के मुद्दे पर गौर करने का निर्देश दिया था। सरकार ने एक समिति का गठन किया। इस पैनल की जांच रिपोर्ट के बाद दोषियों को 15 अगस्त के दिन जेल से आजाद कर दिया गया।
इसलिए हुए रिहा
पैनल की अध्यक्षता करने वाली पंचमहल की कलेक्टर सुजल मायात्रा ने कहा, ‘कुछ महीने पहले गठित समिति ने मामले के सभी 11 दोषियों की छूट के पक्ष में सर्वसम्मति से निर्णय लिया। राज्य सरकार को सिफारिश भेजी गई और स्वतंत्रता दिवस पर दोषियों को रिहा कर दिया गया।
गैंगरेप के बाद मरने के लिए छोड़ा
बिलकिस बानो केस 3 मार्च 2002 का है। गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के दौरान दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका के रंधिकपुर गांव में भीड़ बिलकिस बानो के घर में घुसी। परिवार पर हमला किया गया। उस समय पांच महीने की गर्भवती बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप बलात्कार किया गया और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई। बिलकिस बानो गैंगरेप मामला गुजरात दंगों का सबसे भयावह मामला था। बिलकिस उस समय 21 साल की थीं और गर्भवती थीं। गोधरा गुजरात दंगों के बाद उनके साथ गैंगरेप किया और उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया। छह अन्य सदस्य भागने में सफल रहे। इस मामले के दोषियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था।
शरीर पर नहीं थे कपड़े, मांगकर पहने
बिलकिस ने बताया था कि गैंगरेप के बाद वह लगभग तीन घंटे तक बेहोश रही। उसके शरीर में इतना दर्द था कि वह उठ भी नहीं पा रही थी। होश में आने के बाद किसी तरह उसने खुद को संभाला। उसके दिल में यह भी डर था कि अगर वह यहां कुछ और देर ठहरी तो वह मार दी जाएगी। वह नंगे बदन ही आगे बढ़ी और पास की एक आदिवासी महिला से कपड़े उधार लिए। एक होमगार्ड ने बिलकिस को देखा तो वह उसे लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन ले गया जहां उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
न्याय के लिए लड़ी लंबी लड़ाई
स्थानीय पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज हुआ लेकिन पुलिस ने सबूतों के अभाव केस खारिज कर दिया। इसके बाद बिलकिस मानवाधिकार आयोग पहुंची और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और सीबीआई को मामले की नए सिरे से जांच करने का आदेश दिया था। सीबीआई ने चार्जशीट में 18 लोगों को दोषी पाया था। इसमें 5 पुलिसकर्मी समेत दो डॉक्टर भी शामिल थे जिन्होंने आरोपी की मदद करने के लिए सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप था।
2 साल में बिलकिस बानो ने बदलना पड़ा घर
बिलकिस ने किसी तरह खुद को बचाया और न्याय के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। उधर बिलकिस के परिवार वालों को लगातार धमकियां मिलती रहीं। दो साल में उन्होंने 20 बार अपना घर बदला। बिलकिस ने सुप्रीम कोर्ट ने अपना केस गुजरात से बाहर किसी दूसरे राज्य में शिफ्ट करने की गुहार लगाई। 2008 में मुंबई के एक सेशन कोर्ट ने 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। इनमें से तीन ने बिलकिस के साथ रेप की बात स्वीकार की थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मई 2017 को सभी आरोपियों की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी और 7 दोषियों को को बरी करने का आदेश ठुकरा दिया। इसमें पुलिसकर्मी और डॉक्टर भी शामिल थे जिन्होंने सबूतों से छेड़छाड़ की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने फिर दिखाई सख्ती
कोर्ट ने सभी दोषियों को 55 हजार रुपये मुआवजे के रूप में बिलकिस को देने का आदेश दिया। इसको बाद जिन पुलिसकर्मियों को हाई कोर्ट ने जांच में दोषी पाया था, गुजरात सरकार ने उन्हें बहाल कर दिया था। इसके बाद मामले में सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा और पुलिस कर्मियों को पेंशन सुविधा देने से रोक लगाई, साथ ही एक आईपीएस अधिकारी को डिमोट करने का आदेश दिया।
ऐसे मिली दोषियों को सजा
अहमदाबाद में ट्रायल शुरू हुआ। हालांकि, बिलकिस बानो ने आशंका व्यक्त की कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है और सीबीआई द्वारा एकत्र किए गए सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई ट्रांसफर कर दिया। विशेष सीबीआई अदालत ने बिलकिस बानो के परिवार के सात सदस्यों से सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के आरोप में 21 जनवरी, 2008 को 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2018 के अपने आदेश में आरोपी व्यक्तियों की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए मामले में सात लोगों को बरी करने को भी खारिज कर दिया था।