मॉस्को
रूस ने भारतीय नौसेना के लिए साइन हुई उस डील से हाथ खींच लिए हैं, जिसके तहत 6 एडवांस्ड पनडुब्बियों का निर्माण होना था। इस डील को प्रोजेक्ट-75I नाम दिया गया है। रूस की तरफ से भारत को इस बारे में बता दिया गया है। ये डील 40,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की है। रूस के एक सीनियर अधिकारी की तरफ से कहा गया है कि जो शर्तें भारत की तरफ से रखी गई थीं, वो पूरी तरह से अवास्तविक हैं। उनकी मानें तो जब तक इन शर्तों को नहीं बदला जाता, तब तक ये प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती है।
शर्तें बहुत ही सख्त
रक्षा मंत्रालय की तरफ से इस प्रोजेक्ट की डेडलाइन को 30 जून को अगले 6 महीने के लिए बढ़ाया जा चुका है। अब दिसंबर माह के अंत तक इस डेडलाइन में रूस को फैसला लेना होगा। रूस की रूबिन डिजाइन ब्यूरो के डिप्टी डायरेक्टर जनरल आंद्रे बारानोव ने आर्मी-2022 एक्सपो में कहा कि जो जरूरतें भारत की तरफ से रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (RFI) में रखी गई हैं, वो बहुत ही सख्त हैं। इन शर्तों के बाद डिजाइनर पर बहुत ज्यादा जिम्मेदारियां आ जाती हैं। उनका कहना है कि डिजाइनर का निर्माण पर कोई नियंत्रण नहीं है जो कि भारत में होता है।
उनका कहना था कि पहले रूस ने इस प्रोजेक्ट से हाथ खीचें और फिर फ्रांस भी इससे बाहर हो गया। उन्होंने कहा है कि अगर डिजाइन की बात की जाए तो प्रोजेक्ट काफी अच्छा है। लेकिन इसे कैसे लागू किया जाएगा, ये चिंता का विषय है क्योंकि ये काम भारत में होना है। उनका कहना था कि ये अच्छा नहीं है और इसलिए प्रोजेक्ट रुका हुआ हुआ है। उनकी मानें तो बिना बदलाव के ये प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ सकता है।
क्या हैं भारत की शर्तें
भारतीय नौसेना ने भी रक्षा मंत्रालय से अनुरोध किया है कि कुछ शर्तों में ढील दी जानी चाहिए। बारानोव ने कहा कि नौसेना की तरफ से जो खास जरूरतें रखी गई हैं, वही दरअसल चिंता का विषय हैं। उन्होंने बताया कि इंडियन नेवी चाहती है कि प्रोजेक्ट के तहत ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी, ताकतवर मिसाइलों के साथ स्टेट ऑफ आर्ट पनडुब्बी हों, स्टेल्थ और ऐसी ही कुछ शर्तें रखी गई हैं। लेकिन दुनिया में किसी भी नौसेना के पास इस तरह की पनडुब्बी का प्रोटोटाइप मौजूद नहीं है।
इसके अलावा जो शर्त रखी गई है उसके तहत पनडुब्बी का निर्माण भारत में हो और अगर तय समय में निर्माण पूरा नहीं होगा तो भारी जुर्माना अदा करना होगा। जनवरी 2020 में रक्षा खरीद परिषद (DAC) ने मझगांव डॉक्स लिमिटेड और लार्सन एंड टूर्बो को प्रोजेक्ट में भारतीय पार्टनर के तौर पर नामित किया था। इसके अलावा साउथ कोरिया के दो, फ्रांस का एक, स्पेन, रूस और जर्मनी की एक-एक कंपनियों का चयन किया गया था।