आखिर किस मामले में बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन पर चलेगा रेप का मुकदमा, जानें पूरी बात

नई दिल्ली

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महिला की शिकायत पर बीजेपी के नेता शाहनवाज हुसैन के खिलाफ तत्काल एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। महिला ने 2018 में पुलिस को दी गई अपनी शिकायत में हुसैन पर बलात्कार का आरोप लगाया था। जस्टिस आशा मेनन ने इस बात का जिक्र किया कि एफआईआर दर्ज करने में पुलिस पूरी तरह से अनिच्छुक रही। उन्होंने कहा कि निचली अदालत के 2018 के उस आदेश में कोई त्रुटि नहीं है, जिसमें एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।

जानिए क्या है पूरा मामला
ये मामला साल 2018 के अप्रैल महीने का है। एक महिला ने शाहनवाज हुसैन पर रेप करने का आरोप लगाया था। आरोप है कि छतरपुर के एक फॉर्म हाउस में नशीला पदार्थ खिलाकर शाहनवाज हुसैन ने उसके साथ रेप किया था। लेकिन दिल्ली पुलिस ने इस मामले में मुकदमा दर्ज करने से मना कर दिया था। इसके बाद महिला ने दिल्ली के साकेत कोर्ट में याचिका लगाई। साकेत जिला कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को शाहनवाज हुसैन के खिलाफ केस दर्ज करने का आदेश दिया था। निचली अदालत के इस आदेश को शाहनवाज हुसैन ने पहले साकेत कोर्ट में ही विशेष जज के सामने चुनौती दी थी। वहां से जब राहत नहीं मिली तो उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की। लेकिन हाई कोर्ट से भी बीजेपी नेता को रियायत नहीं मिली और अब उनके खिलाफ रेप केस दर्द होगा। पुलिस जांच करेगी, तीन महीने में रिपोर्ट देनी होगी।

कोर्ट ने पुलिस की भूमिका पर उठाए सवाल
कोर्ट ने बुधवार को अपने आदेश में कहा, ‘मामले में तत्काल एफआईआर दर्ज की जाए। जांच पूरी की जाए और CRPC (दण्ड प्रक्रिया संहिता) की धारा 173 के तहत विस्तृत रिपोर्ट तीन महीने के भीतर मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत की जाए।’ हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस की स्थिति रिपोर्ट में चार अवसरों पर पीड़िता के बयान दर्ज करने का जिक्र किया गया है लेकिन इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई।

कोर्ट ने पुलिस को सुनाई खरी-खरी
अदालत ने कहा, ‘प्राथमिकी तंत्र (मशीनरी) को सिर्फ सक्रिय बनाए रखती है। अपराध की शिकायत की जांच के लिए यह बुनियादी जरूरत है। जांच के बाद ही पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंच सकती है कि क्या कोई अपराध हुआ है या नहीं और यदि ऐसा हुआ है तो यह किसने किया है। मौजूदा मामले में, यहां तक कि एफआईआर दर्ज करने में पुलिस की ओर से पूरी तरह से अनिच्छा नजर आती है।’

उल्लेखनीय है कि एक मजिस्ट्रेट अदालत ने सात जुलाई 2018 को हुसैन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देते हुए कहा था कि महिला की शिकायत के आधार पर एक संज्ञेय अपराध का मामला बनता है। भाजपा नेता ने अदालत के आदेश को सत्र अदालत में चुनौती दी थी, जिसने उनकी याचिका खारिज कर दी।उच्च न्यायालय ने 13 जुलाई 2018 को एक अंतरिम आदेश जारी कर निचली अदालत के उस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी, जिसमें दिल्ली पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।

उच्च न्यायालय ने उस वक्त हुसैन की याचिका पर नोटिस जारी किया था और महिला और पुलिस से जवाब मांगा था। हुसैन ने निचली अदालत के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी थी कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप पुलिस की जांच में सही साबित नहीं हुए, फिर भी निचली अदालत ने प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया। अभियोजन पक्ष ने कहा कि ललिता कुमारी मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों के आलोक में प्राथमिकी दर्ज की जानी थी और उसे दर्ज किए जाने के संबंध में दिए आदेश में कोई त्रुटि नहीं है।

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