बोम्मई रहेंगे या जाएंगे? ‘बैलेंस’ तय करेगा कर्नाटक के CM की कुर्सी

बेंगलुरू

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई सीएम की कुर्सी पर रहेंगे या नहीं इसको लेकर अब भी अगर-मगर का दौर जारी है। एक तरफ जहां अनुमान लगाया जा रहा है कि चुनाव के लिए केवल 8 महीने बाकी रहते उन्हें रिप्लेस नहीं किया जाएगा। वहीं दूसरी तरफ इस बात भी संभावना है कि भाजपा की तरफ से कोई चौंकाने वाला कदम उठाया जा सकता है। हालांकि इसमें सबसे अहम है, कर्नाटक में समुदाय आधारित बैलेंस। असल में यहां समुदाय के वोट बैंक का काफी अहम रोल है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी इस फैक्टर को पूरी तरह से दिमाग में रखेगी। बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बाद उनके खास बोम्मई भी लिंगायत समुदाय से आते हैं। लेकिन अब येदियुरप्पा बीजेपी की पार्लियामेंट्री बोर्ड में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि मुख्यमंत्री पद का अगला दावेदार वोक्कालिगा समुदाय से आएगा। वहीं येदियुरप्पा का इस्तेमाल चुनाव प्रचार में करके पार्टी लिंगायत समुदाय को खुश रखने की कोशिश करेगी।

ऐसा है वोट बैंक का गणित
कर्नाटक की राजधानी में लिंगायत समुदाय की आबादी करीब 18 फीसदी है। इस समुदाय को भाजपा का वोट बैंक माना जाता है। वहीं दूसरी तरफ वोक्कालिगा समुदाय की आबादी करीब 15 फीसदी है। एनडीटीवी के मुताबिक भाजपा वोक्कालिगा समुदाय के नेता को मुख्यमंत्री पद देकर पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवीगौड़ा के जनता दल-सेकुलर के परंपरागत वोट में सेंध लगाने की कोशिश करेगी। इस बीच कांग्रेस ने भी लिंगायत समुदाय के बीच पैठ लगाने की कोशिश तेज की है। राहुल गांधी ने हाल ही में इस समुदाय के प्रभाव वाली एक सीट का दौरा किया था। बता दें कि बीएस येदियुरप्पा को जब सीएम पद से हटाया गया था तो लिंगायत समुदाय ने इस पर नाखुशी जाहिर की थी। हालांकि बाद में पार्टी ने येदियुरप्पा के वफादार बसईराज बोम्मई को उनकी जगह मुख्यमंत्री बनाकर इस समुदाय को मनाने की कोशिश की। वहीं येदियुरप्पा के पार्लियामेंट्री बोर्ड में चले जाने के बाद माना जा रहा है कि यह समुदाय और ज्यादा खुश होगा।

बोम्मई के सामने कई मुश्किलें
हालांकि बोम्मई के लिए मुख्यमंत्री का कार्यकाल बहुत अच्छा नहीं रहा। उनके ऊपर कठपुतली सरकार चलाने के आरोप लगातार उठते रहे। विपक्षियों के साथ-साथ पार्टी के अंदर से भी उनको लेकर लगातार सवाल उठे हैं। वहीं उनके कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के साथ-साथ सांप्रदायिक दंगों को रोक पाने में उनकी अक्षमता, भाजपा के युवा ईकाई के नेता की हत्या, पार्टी कार्यकर्ताओं का अपने ही सीएम के खिलाफ प्रदर्शन जैसी चीजें होती रही हैं। यहां तक कि जब वह मुख्यमंत्री बने थे तब भी उनके बारे में कहा गया था कि वह आरएएस के आदमी हैं। उन्हें भाजपा का ओरिजिनल आदमी नहीं माना गया था। इस बीच बोम्मई ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की तरह हिंदुत्व कार्ड खेलने की कोशिश की थी। लेकिन यह भी उनके पक्ष में जाता दिखाई नहीं दे रहा है।

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