नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि तकनीकी आधार पर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इसमें मेरिट नहीं है. अदालत ने कहा कि आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार करने के मुद्दे पर नहीं जा रहे हैं. फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि स्वीकृति प्रदान करने की प्रक्रिया के कानूनी प्रश्न पर एक अन्य उपयुक्त मामले में विचार किया जा सकता है.
इस मामले में चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 24 अगस्त को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. शीर्ष अदालत में इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा कथित भड़काऊ भाषण की जांच की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था. इस मामले में राज्य सरकार ने पिछले साल आदित्यनाथ योगी को अभियुक्त बनाने से ये कहकर मना कर दिया था और कहा था कि उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं हैं.
कपिल सिब्बल ने बीच में ही छोड़ दिया था केस
इस मामले में सुनवाई के अंत में याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने बहस करने में असमर्थता जताई. पीठ भी सिब्बल के मामले से हटने पर सहमत हो गई. उसने याचिकाकर्ता के मामले को स्थगित करने के अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. कपिल सिब्बल के बाद इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट फुजैल अहमद अय्यूबी ने तर्क दिए. याचिकाकर्ता परवेज परवाज ने आरोप लगाया था कि योगी आदित्यनाथ ने 2007 में गोरखपुर में हुई बैठक में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए हेट स्पीच दी थी.
क्या था पूरा मामला?
बता दें कि 11 साल पहले 27 जनवरी 2007 को गोरखपुर में सांप्रदायिक दंगा हुआ था. इस दंगे में दो लोगों की मौत और कई लोग घायल हुए थे. इस दंगे के लिए तत्कालीन सांसद व मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ, विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल और गोरखपुर की तत्कालीन मेयर अंजू चौधरी पर भड़काऊ भाषण देने और दंगा भड़काने का आरोप लगा था. कहा गया था कि इनके भड़काऊ भाषण के बाद ही दंगा भड़का था.