नई दिल्ली
‘भारत जोड़ो यात्रा’ के जरिए बीजेपी को मंहगाई और बेरोजगारी पर घेरने का इरादा रखने वाली कांग्रेस के आगे आज पार्टी को जोड़े रखने का संकट खड़ा हो गया है। राष्ट्रीय प्रवक्ता जयवीर शेरगिल के पार्टी छोड़ने के दो दिन बाद पार्टी के अनुभवी नेता गुलाम नबी आजाद ने भी सभी पदों से इस्तीफा देकर कांग्रेस को बहुत बड़ा झटका दिया। हालांकि आजाद का इस्तीफा कोई हैरानी की बात नहीं है। मगर ये कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब जरूर है। दरअसल आजाद से पहले कपिल सिब्बल, जितिन प्रसाद जैसे दिग्गज नेता भी पार्टी छोड़ चुके हैं और आजाद ने भी ऐसे वक्त पर पार्टी से किनारा किया है जब पार्टी महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरने की रणनीति बना रही है।
जी-23 के नेता आजाद ने उठाई थी आवाज
‘जी 23’ में शामिल आजाद ने कांग्रेस आलाकमान को यह स्वीकार करने की नसीहत दी थी कि पार्टी कमजोर हुई और इसे मजबूत करने के लिए काम करने की जरूरत है। गुलाम अली की मौजूदगी में पार्टी छोड़ चुके कपिल सिब्बल ने भी कहा था कि कांग्रेस कमजोर हो गई है, यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिए। वहीं, आनंद शर्मा ने कहा था कि मुझे किसी को यह बताने का अधिकार नहीं है कि हम कांग्रेस के लोग हैं या नहीं। हमारे बीच कोई भी खिड़की से नहीं आया है। हम सभी दरवाजे से चले हैं। हम छात्रों और युवा आंदोलन के माध्यम से यहां तक आए हैं। अब कपिल सिब्बल तो पार्टी छोड़ चुके हैं, वहीं आनंद शर्मा साइडलाइन चल रहे हैं और आजाद ने इस्तीफा देकर अटकलों को विराम दे दिया है।
क्या है G-23 समूह?
G-23 समूह में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता शामिल हैं। अगस्त 2020 में जब पहली बार इन नेताओं का समूह चर्चा में आया तब इसमें 23 नेता शामिल थे। इसलिए इन्हें G-23 कहा गया। बता दें कि गुट में शामिल रहे जितिन प्रसाद बाद में बीजेपी में शामिल हो गए। कपिल सिब्बल ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। सिब्बल अब सपा के समर्थन से राज्यसभा सांसद हैं। सिब्बल के बाद अब गुलाम नबी ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है।
जब आजाद के बीजेपी ज्वाइन करने की चर्चा तेज हो गई थी
संसद में तीन दशक गुजार चुके कांग्रेस नेता आजाद 2021 में राज्यसभा से रिटायर हुए थे। उस दौरान उनके विदाई भाषण में बोलते हुए पीएम मोदी भावुक हो गए थे। पीएम मोदी ने रूंधे गले से आजाद संग बिताए पलों को याद किया और एक वक्त तो रो पड़े। मोदी ने कहा कि ‘गुलाम नबी आजाद के बाद इस पद (नेता प्रतिपक्ष) को जो संभालेंगे, उनको गुलाम नबी जी से मैच करने में बहुत दिक्कत पड़ेगी।’ इसके बाद मोदी ने उस वक्त का एक किस्सा सुनाया जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे और जम्मू-कश्मीर में गुजरात के यात्रियों पर आतंकी हमला हुआ था। उस समय गुलाम नबी आजाद ने जैसी चिंता गुजरात के लोगों के लिए दिखाई, मोदी उसका जिक्र करते हुए रो पड़े। मोदी ने गुलाम नबी आजाद को संसदीय लोकतंत्र में योगदान के लिए सैल्यूट भी किया। पीएम मोदी की ओर से आजाद की तारीफ किए जाने के बाद आजाद के बीजेपी में जाने की अटकलें तेज हो गई थी।
आजाद ने की थी पीएम मोदी की तारीफ
आजाद ने भी रिटायर होने के बाद पीएम की तारीफ की थी। आजाद ने उन्होंने जमीन से जुड़ा नेता बताया था। उन्होंने कहा था कि लोगों को उनसे सीखना चाहिए कि कामयाबी की बुलंदियों पर जाकर भी कैसे अपनी जड़ों को याद रखना चाहिए। उन्होंने कहा था, ‘मुझे बहुत सारे लीडरों की बहुत सी बातें अच्छी लगती हैं। मैं खुद गांव का हूं और बहुत गर्व होता है। हमारे पीएम मोदी भी कहते हैं कि वह गांव से हैं। कहते हैं कि बर्तन मांजते थे, चाय बेचते थे। सियासी तौर पर हम उनके खिलाफ हैं, लेकिन कम से कम जो अपनी असलियत है, वह उसको नहीं छिपाते। यदि आपने अपनी असलियत छिपाई तो आप मशीनरी दुनिया में जी रहे होते हैं।’ जब आजाद ने पीएम मोदी की जमकर तारीफ की थी, तब भी आजाद के बीजेपी में जाने की चर्चा तेज हो गई थी। हालांकि आजाद ने इस्तीफे के बाद साफ किया है कि वह बीजेपी में नहीं जा रहे हैं, वह अपनी नई पार्टी बनाने पर विचार कर रहे हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के पार्टी से इस्तीफे के पत्र के कुछ मुख्य बिंदु-
-आजाद ने 1970 के दशक में पार्टी में शामिल होने के बाद से कांग्रेस के साथ अपने लंबे जुड़ाव का जिक्र किया।
-आजाद ने राहुल गांधी पर पार्टी के भीतर परामर्श तंत्र को खत्म करने का आरोप लगाया।
-सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया गया और अनुभवहीन ‘चापलूसों’ की नई मंडली पार्टी के मामलों में दखल देने लगी।
-आजाद ने राहुल गांधी द्वारा सरकारी अध्यादेश को पूरे मीडिया के सामने फाड़ने को ‘अपरिपक्वता’ का ‘उदाहरण’ बताया।
– यह हरकत भी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की 2014 में हुई हार का एक कारण रही।
-आजाद ने कहा किपार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए वह पंचमढ़ी (1998), शिमला (2003) और जयपुर (2013) में हुए पार्टी के मंथन में शामिल रहे हैं, लेकिन तीनों मौकों पर पेश किये गये सलाह-मशवरों पर कभी गौर नहीं किया गया और न ही अनुशंसाओं को लागू किया गया।
– 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए विस्तृत कार्य योजना ‘‘पिछले नौ वर्षों से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के ‘स्टोररूम’ में पड़ी है।
– वर्ष 2014 से सोनिया गांधी के नेतृत्व में और उसके बाद राहुल गांधी के नेतृत्व में, कांग्रेस ‘शर्मनाक तरीके’ से दो लोकसभा चुनाव हार गई है। पार्टी 2014 और 2022 के बीच हुए 49 विधानसभा चुनावों में से 39 में भी हार गई।
-2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से पार्टी की स्थिति खराब हुई है। चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने आवेग में आकर अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
-संप्रग सरकार की संस्थागत अखंडता को खत्म करने वाला ‘रिमोट कंट्रोल मॉडल’ अब कांग्रेस पर लागू होता है।
-आपके (सोनिया गांधी) पास सिर्फ नाम का नेतृत्व है, सभी महत्वपूर्ण फैसले या तो राहुल गांधी लेते हैं, या ‘फिर इससे भी बदतर स्थिति में उनके सुरक्षाकर्मी और निजी सहायक लेते हैं।’
-आजाद ने आरोप लगाया कि पार्टी की कमजोरियों पर ध्यान दिलाने के लिए पत्र लिखने वाले पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं को अपशब्द कहे गए, उन्हें अपमानित किया गया, नीचा दिखाया गया।
-उन्होंने नेतृत्व पर आंतरिक चुनाव के नाम पर पार्टी के साथ बड़े पैमाने पर ‘धोखा’ करने का आरोप लगाया।
– पार्टी को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से पहले ‘कांग्रेस जोड़ो यात्रा’ निकालनी चाहिए थी।