नई दिल्ली ,
बिहार की सियासत ने एक बार फिर करवट ली है. बीजेपी का साथ छोड़ नीतीश कुमार एक बार फिर से अब महागठबंधन में लौट चुके हैं तो तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री के रोल में है. बिहार के इस सियासी उलटफेर से विपक्ष की भूमिका में आई बीजेपी अपने दम पर खड़ी होने की कवायद में है. इस कड़ी में बीजेपी ने तेजस्वी को नकली यादव तो केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय को असली यादव बताकर सूबे में यादव सियासत पर नई बहस छेड़ दी है. ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी नित्यानंद के बहाने आरजेडी के कोर वोटबैंक यादव समुदाय को क्या सियासी संदेश देना चाहती है?
बिहार में असली-नकली यादव की लड़ाई
बता दें कि आरजेडी नेताओं पर सीबीआई के छापे के अगले दिन बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने किसी का नाम लिए बिना कहा था, ‘एक केंद्रीय मंत्री मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे और बिहार में ‘खेला’ होने की योजना बना रहे थे. वे संभल जाएं. बिहार है यहां दिल्ली से कोई बचाने नहीं आएगा.’ तेजस्वी के निशाने पर माना जाता है कि केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय थे.
वहीं, बिहार बीजेपी के प्रवक्ता और ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव निखिल आनंद ने कहा कि तेजस्वी यादव को यादव समाज पर बात करने का हक नहीं है, क्योंकि वह भेड़ चराने वाले समाज से आते हैं जबकि नित्यानंद राय गौपालक, गौवंशी और भगवान श्रीकृष्ण के असली वंशज हैं. बिहार की जनता को पता है कि असली यादव कौन है. इतन ही नहीं उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार करके और गरीबों का खून चूसकर नहीं, बल्कि भगवान कृष्ण के रास्ते पर चलकर ही कोई यादव समाज का भला कर सकता है.
बीजेपी का बिहार में टारगेट 35 प्लस का
बिहार के बदले हुए सियासी समीकरण में बीजेपी ने 2024 के चुनाव में 35 प्लस सीटें जीतने का टारगेट तय किया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटें जीती थीं. तब बीजेपी के साथ जेडीयू और एलजेपी एनडीए का हिस्सा थे, लेकिन अब बीजेपी के साथ एलजेपी ही बची है. ऐसे में बीजेपी को अपने टारगेट को पाने की कड़ी चुनौती होगी.
दिलचस्प बात यह है कि लालू-नीतीश की जोड़ी 2015 में साथ आए थे तो बिहार की 243 सीटों में से उन्होंने 181 सीटें जीती थीं और बीजेपी को केवल 53 सीटें ही मिल सकी थी. हालांकि, साल 2010 के चुनाव में पार्टी 91 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी. ऐसे में फिर से नीतीश-लालू साथ हैं तो बिहार की दो बड़े ओबीसी समुदाय कुर्मी और यादव वोटबैंक के महागठबंधन से छिटकने की उम्मीदें कम दिख रही है.
नित्यानंद के बहाने यादवों को संदेश
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो बीजेपी काफी समय से नित्यानंद राय को यादव समुदाय के चेहरे के तौर पर बिहार की सियासत में स्थापित करने की कवायद में है. 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने केंद्र में गृह राज्य मंत्री जैसा भारी भरकम विभाग दिया. इसके अलावा बीजेपी 2015 से लेकर 2020 के चुनाव में भी यादवों पर अच्छा खासा दांव खेला था, लेकिन दोनों ही बार उसे सफलता नहीं मिली.
बदले हुए सियासी माहौल में बिहार की जातीय पिच पर नित्यानंद पर एक बार और दांव खेलने की दिशा में है. ऐसे में तेजस्वी यादव को नकली यादव बता रही है ताकि बिहार में राजनीतिक रूप से मुखर जाति समूह पर अपनी पकड़ बना सके. बिहार में यादव समुदाय पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से आरजेडी के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ है. बीजेपी यादव समाज को अपने साथ जोड़ने के लिए तमाम जतन कर चुकी है, लेकिन अभी तक कामयाब नहीं हो सकी है. ऐसे में बीजेपी अब तेजस्वी को नकली तो नित्यानंद को असली यादव बताकर सियासी तौर पर बड़ा दांव चल रही है.
बिहार में यादव समीकरण
बिहार में यादव मतदाता 16 फीसदी के करीब है और उन्हें आरजेडी का परंपरागत वोटर माना जाता है. यादव वोटर भले ही 16 फीसदी हों, लेकिन बिहार की करीब 70 सीटें अपने दम पर जीतने का माद्दा रखते हैं तो करीब बीस सीटों पर वो जिताने और हराने की ताकत रखते हैं. लालू यादव अपने इस मूलवोट बैंक यादव समुदाय के सहारे तीन दशक से बिहार की सियासत के बेताज बादशाह बने हुए हैं.
बता दें कि 2000 में बिहार में यादव विधायकों की संख्या 64 थी जो 2005 में 54 हो गई थी और फिर 2010 में संख्या घटकर 39 पर आ गई थी, लेकिन 2015 में बढ़कर 61 पहुंच गई. वहीं, 2020 के विधानसभा चुनाव में फिर से विभिन्य दलों से कुल 52 यादव विधायक बनने में कामयाब रहे. आरजेडी के टिकट पर 36, सीपीआई (माले) से दो, कांग्रेस से एक और सीपीएम से एक यादव विधायक चुने गए हैं. बीजेपी से 6, जेडीयू से पांच और वीआईपी से एक यादव विधायक हैं.
आरजेडी के 15 सालों तक सत्ता में रहने के चलते यादव पिछड़ों से एक अलग समूह के रूप में विकसित हुए हैं, जो सियासी तौर पर बिहार में काफी मजबूत हुए हैं. ऐसे यादवों के गोलबंदी होने के कारण दूसरे पिछड़ों और अतिपिछड़ों को गोलबंद कर नीतीश कुमार सत्ता तक पहुंचने में कामयाब हुए थे. बीजेपी भी इसी वोटबैंक को साधने में कामयाब रही . हालांकि, अब यादव वोटों का बिहार की राजनीति में इस बार खास महत्व है और बीजेपी उसे हर हाल में साधने की जुगत में है.
यादव वोट किसके साथ खड़ा रहेगा
बीजेपी नित्यानंद के बहाने फिर से यादवों को सियासी संदेश दे रही है. ऐसे में 2024 के चुनाव में बीजेपी यादव वोटर में साथ में जोड़ने में करने में कामयाब रही तो महागठबंधन का पूरा का पूरा गणित ही गड़बड़ा सकता है. बिहार की सियासत में यादवों पर इतनी बात इसलिए हो रही है कि एनडीए को पता है यदि यादव समूह में उसकी सेंधमारी हो गई या वह बिखर गया तो फिर उनके लिए जीत की राह आसान होगी.
वहीं, दूसरी ओर तेजस्वी यादव भी जानते हैं कि सत्ता में रहते हुए अगर वे यादव मतदाताओं को नहीं संभाल सके तो फिर पिता की विरासत बिखर जाएगी, क्योंकि लालू इसी कोर जनाधार को अपने पाले में लाकर बिहार में अपनी सियासत संभाले हुए थे, अब इसे संभालने की चुनौती तेजस्वी के कंधों पर है. बीजेपी के लिए इस बार मौका भी है और दस्तूर भी. जेडीयू के साथ रहते हुए बिहार में बीजेपी को खुलकर खेलने का मौका नहीं मिल रहा था और उसके पास पूरे सूबे में अपने सियासी आधार बढ़ाने का मौका नजर आ रहा. ऐसे में देखना है कि बीजेपी का यह दांव कामयाब होता है कि नहीं?