नई दिल्ली
हाल फिलहाल के प्रयासों को देखा जाए तो राहुल गांधी की ओर से भारत जोड़ो यात्रा की मुहिम पार्टी के लिए एक अच्छी शुरुआत मानी जा सकती है। इस यात्रा का मकसद भाजपा के वैचारिक प्रभुत्व को चुनौती देना है। भारत जोड़ो यात्रा के लिए कांग्रेस कुछ आकर्षक नारे लेकर आई है और इसे जनता की मुहिम बनाने की कोशिश है। इस प्रकार के प्रयास का अपना राजनीतिक महत्व है। भारत जोड़ो यात्रा के जरिए पुरानी धर्मनिरपेक्ष पार्टी की ओर से 2014 के बाद से यह पहला सकारात्मक संकल्प है। इस मुहिम का कितना असर होगा इसको लेकर कुछ भी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी। हालांकि इसके जरिए उन फैक्टर्स को जांचने का मौका मिलेगा जिसके जरिए भारतीय राजनीति पर बीजेपी ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया है। साथ ही विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस को भी यह समझने की जरूरत है कि बीजेपी सिर्फ गोलवलकर और सावरकर के सहारे ही आगे नहीं बढ़ रही है।
हिंदुत्व की राजनीति को लेकर गैर बीजेपी दलों का तर्क
इस संबंध में दो मूल बातें हैं न्यू इंडिया और हिंदुत्व की राजनीति में इसकी संवैधानिकता दूसरा भारत का विचार। गैर-भाजपा दल अक्सर हिंदुत्व की राजनीति की आलोचना करते हैं। उनकी ओर से यह तर्क दिया जाता है कि यह एक संकीर्ण दिमाग वाली राजनीति है जो सांप्रदायिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है। जो देश की धार्मिक और सांस्कृतिक बहुलता को समायोजित करने में असमर्थ है। इसे सही ठहराने के लिए सावरकर की हिंदुत्व पर किताब और और गोलवलकर के विचार से जोड़ा जाता है।
विपक्षी दल गांधी, नेहरू और आम्बेडकर के लेखन का हवाला देते हुए यह धारणा बनाते हैं कि वे जिस भारत के विचार का पालन करते हैं वह ऐतिहासिक रूप से मान्य और राजनीतिक रूप से समझने योग्य है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो गैर-बीजेपी दल इन राजनीतिक हस्तियों से आगे निकल नहीं पाते और भविष्य की कोई राजनीतिक पिक्चर पेश नहीं करते।
BJP सिर्फ सावरकर-गोलवलकर के हिंदुत्व पर निर्भर नहीं
दूसरी ओर, भाजपा जो हिंदुत्व की राजनीति कर रही है लेकिन इसके साथ ही बदली हुई परिस्थितियों के हिसाब से इसमें कई बदलाव भी कर रही है। न्यू इंडिया की बात उसका एक अच्छा उदाहरण है। पीएम मोदी ने इसे पहली बार 2017 के स्वतंत्रता दिवस भाषण में एक राजनीतिक नारे के रूप में पेश किया। बीजेपी ने 2018 में आधिकारिक तौर पर न्यू इंडिया को एक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया।
इस पहल में अधिक से अधिक जनता की भागीदारी हो इसके लिए अभियान चलाया। नीति आयोग ने एक दिलचस्प दस्तावेज, न्यू इंडिया@75 के लिए रणनीति तैयार की। इस योजना पर कैसे आगे बढ़ना है यह उसका फ्रेमवर्क था। इससे पता चलता है कि भाजपा पूरी तरह से सिर्फ सावरकर-गोलवलकर के हिंदुत्व पर ही निर्भर नहीं है। बीजेपी की ओर से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अपनी घोषित विचारधारा की रूपरेखा का विस्तार करने के लिए नए विचारों को लाने का एक प्रयास है।
संविधान के नाम पर हिंदुत्व की राजनीति को खारिज करने की कोशिश
गैर-भाजपा दल संविधान के नाम पर हिंदुत्व की राजनीति को खारिज करते हैं। एक अजीब और शायद बेहद ही भ्रामक तर्क दिया जाता है कि हिंदुत्व की राजनीति और भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के लिए बीजेपी संविधान को बदलने जा रही है। इस आशंका का भी अपना इतिहास है। 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद, कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों की ओर से यह कहा जाने लगा कि हिंदुत्व की राजनीति संविधान के लिए खतरा है। समय के साथ, संविधान की व्याख्या अपने-अपने हिसाब की जाने लगी।
यह सच है कि शुरुआती दशकों में हिंदू राष्ट्रवाद संविधान के साथ फिट नहीं बैठता था। कानूनी-संवैधानिक ढांचा हमेशा राजनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है। हिंदुत्व की राजनीति करने वालों ने कभी भी संविधान को एक स्व-व्याख्यात्मक पाठ के रूप में नहीं पेश किया। यहां तक कि वाजपेयी सरकार ने संविधान की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए आयोग का गठन किया। बीजेपी ने 2010 के दशक में अपनी रणनीति बदली। पार्टी ने अपने हिंदुत्व एजेंडे को संविधान के साथ आगे बढ़ाने के लिए संभावनाओं का पता लगाना शुरू किया। इसे मैं हिंदुत्व संविधानवाद कहता हूं। एक कानूनी-राजनीतिक तंत्र जो नए भारत के सिद्धांत को लागू करने के लिए बनाया गया है।
कांग्रेस की मजबूरी आखिर कब तक रहेगी इनके सहारे
हिंदुत्व संविधानवाद की दो विशेषताएं हैं जो सबसे पहले स्ट्राइक करती हैं। सबसे पहले, संविधान द्वारा दार्शनिक सिद्धांतों (जैसे धर्मनिरपेक्षता) और उनसे जुड़ी कानूनी तकनीकी के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर किया जाता है। दूसरा ऐसे कानून जिसको लेकर यह कहा गया कि यह बहुसंख्यक हिंदू उत्पीड़न के लिए है। इसके कई उदाहरण भी दिए गए। बीजेपी इसको लेकर आक्रामक भी रही।
वहीं कांग्रेस एक अजीबोगरीब बौद्धिक संकट का सामना कर रही है। यह हिंदुत्व की राजनीति की सफलता को स्वीकार करती है और इसी वजह से सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर झुकाव है। साथ ही पार्टी की ऐतिहासिक विरासत पर अब तक ज्यादा जोर दिया जा रहा है। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा तभी सार्थक होगी जब इसमें एक समावेशी राजनीतिक कल्पना हो साथ ही में भारत के लिए एक नया विचार।