नई दिल्ली
नोएडा में बने सुपरटेक के ट्विन टावर ध्वस्त हो चुके हैं। बड़ी संख्या में लोग इस बात से खुश हैं। वो इसे बेईमानी और भ्रष्टाचार के टावर के तौर पर देख रहे थे। हालांकि, सुपरटेक के चेयरमैन आरके अरोड़ा बार-बार यह दावा करते रहे हैं कि इसे बनाने में कंपनी ने किसी तरह की धांधली नहीं की है। नोएडा विकास प्राधिकरण के नियमों के अनुसार ही इस प्रोजेक्ट की मंजूरी ली गई। उसी के कायदे-कानून के तहत इसे बनाया गया। सवाल यह है कि जब सबकुछ लीगल ही था तो सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इसे जमींदोज करने का आदेश क्यों दे दिया? आरके अरोड़ा ने इसका भी कारण बताया है। उन्होंने उस छोटी सी गलती के बारे में बताया है जिसके चलते ट्विन टावर धुआं कर दिए गए। जिस दिन इन टावरों को ढहाया गया, उस रात अरोड़ा सो तक नहींं पाए।
एक समाचार चैनल के साथ बातचीत में सुपरटेक के चेयरमैन ने उस गलती का जिक्र किया है। उन्होंने बताया कि सब कुछ नियमों के अनुसार ही हुआ था। इस बात में कोई शकशुबा नहीं था कि ट्विन टावर एमराल्ड कोर्ट से अलग कहीं बनेंगे। यह और बात है कि टावरों की ऊंचाई 40 मंजिल तब बढ़ाने की मंजूरी बाद में ली गई। पूरे कंस्ट्रक्शन में सभी नियमों का पालन किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने टावर को जमींदोज करने का फैसला सिर्फ एक छोटी सी गलती के कारण दिया। वह गलती यह थी कि ऊंचाई बढ़ाने से पूर्व वहां मौजूद 15 टावर के लोगों से मंजूरी नहीं ली गई थी। अरोड़ा ने दावा किया कि इसमें भी कंपनी की गलती नहीं थी। यह अनुमति प्राधिकरण को लेनी थी।
क्या कहते रहे हैं आरके अरोड़ा
सुपरटेक के चेयरमैन दोहराते आए हैं कि इसमें उनसे किसी भी तरह की गलती नहीं हुई है। रविवार को ट्विन टावर गिराए जाने से पहले भी उन्होंने कहा था कि सुपरटेक ने प्राधिकरण की तरफ से स्वीकृत भवन योजना के अनुरूप ही इनका निर्माण किया था। इसमें कंपनी ने कोई गड़बड़ी नहीं की थी। इसमें उन्होंने पूरे प्रोजेक्ट में हुए नुकसान का भी जिक्र किया था। उन्होंने बताया था कि इसमें कंपनी को करीब 500 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है। इस खर्च में निर्माण पर आई लागत और कर्ज पर देय ब्याज शामिल है। एडिफिस इंजीनियरिंग नाम की जिस कंपनी ने ये टावर गिराए हैं उसे भी सुपरटेक ने 17.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया है।
जिस दिन टावर गिरे उस रात सो नहीं पाए
चैनल के साथ बातचीत में आरके अरोड़ा ने यह भी बताया कि जिस सुबह ट्विन टावर गिराए जाने थे, उस रात उन्हें नींद नहीं आई। उन्हें इस बात की चिंता थी कि टावर गिरने से आसपास की इमारतों को नुकसान नहीं हो। यही कारण था कि बेस्ट कंपनी को इस काम के लिए लाया गया था। दोनों टावर नोएडा के सेक्टर 93ए में बने थे। ये एक्सप्रेसवे पर सुपरटेक की एमराल्ड कोर्ट परियोजना का हिस्सा थे। इन टावर में बने 900 से ज्यादा फ्लैट की मौजूदा बाजार मूल्य के हिसाब से कीमत करीब 700 करोड़ रुपये थी।