रियाद
सऊदी अरब और रूस दो ऐसे देश हैं जिन्होंने अपने पड़ोसी देशों में जंग शुरू की। दोनों ही दुनिया के ऊर्जा बाजार पर प्रभुत्व रखते हैं और दोनों को ही ऐसे देशों के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने इतिहास में किसी भी तरह की असहमति कभी नहीं जताई। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) के बीच कई ऐसी बातें है जो एक समान सी लगती हैं। रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग ने पुतिन और एमबीएस को और करीब ला दिया है। इस जंग को अब आठ महीने होने वाले हैं और सऊदी अरब के रिश्ते रूस के साथ काफी आगे बढ़ गए हैं। यूरोप, अमेरिका और यूके ने जहां पुतिन का सामना कर रहे हैं तो वहीं मोहम्मद बिन सलमान उनके साथ रिश्तों को और मजबूत कर रहे हैं।
क्या हुआ ओपेक की मीटिंग में
बुधवार को विएना में ओपेक की मीटिंग इस बात का ताजा मौका है जो रूस और सऊदी अरब के मजबूत होते रिश्तों को बयां करती है। ये संबंध इस तरह से आगे बढ़ रहे हैं कि वो सऊदी के साथियों की मांग को भी नजरअंदाज कर रहे हैं। सऊदी अरब वह कड़ी बन गया है जो इस समय पुतिन को आराम पहुंचा सकता है। दोनों ही देश चाहते हैं कि दुनिया को होने वाली तेल की सप्लाई में कटौती करके इसकी कीमतों को बढ़ाया जाए। इस तरह का कदम यूरोप में बड़े पैमाने पर मुश्किलों को बढ़ा सकते हैं।
फेल हो गए बाइडेन
यूरोप पहले ही महंगाई का सामना कर रहा है और कोई भी नया फैसला उसे बर्बाद करने के लिए काफी होगा। एमबीएस और पुतिन की दोस्ती अमेरिका के लिए सिरदर्द बन सकती है। इस साल जून में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पहली सऊदी अरब यात्रा पर गए थे। बाइडेन का यह दौरा फेल साबित हुआ। वह जिन लक्ष्यों के साथ सऊदी अरब गए थे, उनमें से एक भी हासिल नहीं हो सका। अगर तेल की कीमतों में इजाफा होता है तो बाइडेन की उन कोशिशों को झटका लग सकता है जिसके तहत वह पुतिन को युद्ध के लिए मिलने वाली आर्थिक मदद पर लगाम लगाना चाहते हैं।
क्या हुआ था पिछले महीने
पिछले महीने सऊदी और रूस के बीच गहरे होते संबंधों की एक और झलक देखने को मिली। असाधारण कूटनीति का परिचय देते हुए सऊदी राजनयिकों ने रूस में बंद कुछ अंतरराष्ट्रीय कैदियों की रिहाई सुरक्षित कराई। इनमें से पांच ब्रिटेन के वो कैदी थे जिन्हें यूक्रेन में लड़ाई करते हुए गिरफ्तार किया गया था। माना गया कि सऊदी अरब के अधिकारियों ने रूस के साथ एक ऐसी डील कर ली है जिसका मीडिल ईस्ट से कोई लेना देना नहीं है। ब्रिटिश अधिकारियों ने तो यहां तक कहा कि ये पुतिन की तरफ से एमबीएस को दिया गया गिफ्ट था। वह चाहते थे कि ऐसा हो और ऐसा हुआ। हालांकि सऊदी अरब न राजनयिक प्रयासों के तहत अपना लक्ष्य हासिल किया।
पुतिन को पसंद करते एमबीएस
चार साल पहले जब सऊदी नागरिक और जर्नलिस्ट जमाल खाशोगी की हत्या हुई थी तो यह सऊदी प्रिंस के लिए मुश्किल पल था। एमबीएस इस समय उन कोशिशों में लगे हैं जिसके तहत वह सऊदी अरब को क्षेत्रीय और वैश्विक ताकत बनाना चाहते हैं। यूक्रेन में जिस तरह से रूस ने हमला बोला है विशेषज्ञों की मानें तो कहीं न कहीं पुतिन ने इसके लिए यमन में सऊदी हमले से प्रेरणा ली थी।
साल 2016 में जब एमबीएस की उम्र बस 30 साल थी और वह उप रक्षा-मंत्री थे तो उन्होंने ब्रिटिश राजनयिकों को समन किया था। इनमें से कुछ ब्रिटिश इंटेलीजेंस एजेंसी एमआई-6 के ऑफिसर्स थे जो रियाद में पोस्टेड थे। इस मीटिंग का बस एक ही मकसद था। यूके ने सऊदी अरब को सलाह दी थी कि वह पुतिन का सामना कैसे करें। विशेषज्ञों की मानें तो एमबीएस पुतिन को पसंद करते हैं।
बड़ा है तेल का खेल
एमबीएस और पुतिन दोनों ही बाइडेन को पसंद नहीं करते हैं। पुतिन अब एक नया वैश्विक क्रम चाहते हैं और उन्हें लगता है कि एमबीएस उनके साथ आ सकते हैं। ब्रिटिश अधिकारियों की मानें तो सऊदी अरब इस समय काफी ताकतवर संपत्ति का मालिक है और वह है तेल। ऑयल आज भी दुनिया की राजनीति में एक बड़ा रणनीतिक रोल अदा करता है। एमबीएस को मालूम है कि पुतिन के साथ जाना कुछ लोगों को पसंद नहीं आ सकता है, लेकिन उन्हें इसकी परवाह नहीं है।