करीब ढाई दशक बाद कांग्रेस की कमान किसी गैर गांधी के हाथ में आई है। पिछले कुछ सालों में कांग्रेस के भीतर जिस बदलाव की मांग पहले दबे-ढके स्वर में उठी, फिर सार्वजनिक हुई और उसके बाद बगावत का कारण बनी, वह अंतत: पूरी हुई। यह बदलाव कांग्रेस के लिए अंतत: कैसा साबित होता है, यह तो आने वाले वक्त में पता चलेगा, मगर पिछले एक दशक से कांग्रेस नेतृत्व परिवारवाद का जो आरोप झेल रहा था, उससे फिलहाल मुक्त होता दिख रहा है। हालांकि कांग्रेस के लिए आगे की राह आसान नहीं है। नए बने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है और वक्त कम है। कांग्रेस के भीतर अगर यह बदलाव एक साल पहले हो गया होता या भारत जोड़ो यात्रा पहले हुई होती, तो कांग्रेस को इनकी फसल काटने के लिए समुचित समय मिल जाता।
चुनाव, चुनाव और चुनाव की चुनौती
कांग्रेस के अंदर नेताओं को और खुद खरगे को पता है कि उनके पास कोई हनीमून पीरियड नहीं है। इस जिम्मेदारी के साथ ही तमाम जिम्मेदारियां और चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। जहां साल 2024 के आम चुनावों के लिए महज डेढ़ साल बचे हैं, वहीं अगले दो सालों में देश के 18 राज्यों- हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम, हरियाणा और महाराष्ट्र- में चुनाव होने हैं। इनमें से ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की सियासत दांव पर है। खरगे के लिए इन तमाम राज्यों में खुद को साबित करने की चुनौती रहेगी। उनकी सबसे बड़ी परीक्षा हिमाचल प्रदेश, गुजरात और खुद उनके गृह राज्य कर्नाटक में होगी। इन तीनों ही राज्यों में कांग्रेस सत्ता वापसी की राह देख रही है।
मुकाबला बीजेपी से, चुनौती बनी आप
हिमाचल और गुजरात में कांग्रेस का मुकाबला है तो बीजेपी से, लेकिन वहां कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी चुनौती खड़ी कर रही है। गुजरात में अगर आप ने कांग्रेस को चुनौती दे दी तो पार्टी के लिए आगे की राह कठिन हो जाएगी। ऐसे ही कर्नाटक में खरगे की असली परीक्षा इस चीज में होगी कि वहां वह पूर्व सीएम सिद्धारमैया और प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार को एक साथ मिलकर पार्टी के लिए काम करने को राजी करा पाएंगे या नहीं? फिर अगले साल होने वाले राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनाव में पार्टी की सत्ता बनाए रखने और मध्य प्रदेश में सत्ता में वापसी कराने का दबाव भी उनके ऊपर रहेगा। हालांकि पार्टी नेता मानते हैं कि ताजा बदलाव के बाद गांधी परिवार की भूमिका का फायदा कांग्रेस पार्टी को मिलेगा। संगठन के भीतर कील-कांटे दुरुस्त करने, कार्यकर्ताओं से संपर्क कर उसे मजबूत बनाने में खरगे समय दे सकते हैं और भारत जोड़ो यात्रा जैसे कार्यक्रमों के जरिए लोगों तक पहुंचने का काम राहुल गांधी जारी रख सकते हैं।
कम नहीं होने वाली गांधी परिवार की भूमिका
कांग्रेस के भीतर अलग-अलग पावर सेंटर होने की परंपरा कोई नई नहीं है। लेकिन 2013 में राहुल गांधी के कांग्रेस उपाध्यक्ष बनने के बाद जिस तरह से इसमें तेजी आई, उसके चलते पार्टी के भीतर सत्ता के एक से अधिक केंद्र लगातार काम करते दिखाई दिए। पार्टी को इसका खासा नुकसान भी हुआ। खरगे के कमान संभालने के बाद भी एक से ज्यादा सत्ता केंद्र होने का खतरा दूर होता नहीं दिख रहा। भले ही कांग्रेस की कमान अब गैर गांधी के हाथ में आ गई हो, लेकिन एक सचाई यह भी है कि गांधी परिवार की भूमिका निकट भविष्य में तो कम होने वाली नहीं है। खुद खरगे पहले ही कह चुके हैं कि पार्टी को लेकर किए जाने वाले फैसलों में गांधी परिवार से राय मशवरा करने में उन्हें कोई हर्ज नजर नहीं आता। अब देखना होगा कि आने वाले वक्त में खरगे कितने फैसले स्वतंत्र रूप से लेते हैं। कांग्रेस में अपनी सियासत और अस्तित्व के लिए जूझते तमाम नेताओं की राजनीति ही एक से ज्यादा सत्ता केंद्रों को पोषित करने पर टिकी हुई है। एक से अधिक पावर सेंटर रहने का दुष्प्रभाव फैसलों पर भी पड़ता है। समय पर उचित फैसले न हो पाने से पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
सबको एकसाथ संभालने की चिंता
खरगे के सामने सबसे पहले तो राजस्थान का मामला है, जहां उनकी सूझबूझ की परीक्षा होनी है। हालांकि खरगे आम सहमति बनाने और सभी की सुनने में यकीन रखते हैं। हाल ही राजस्थान में गहलोत समर्थक विधायकों के व्यवहार से नाराज अजय माकन ने कड़ा रुख अपनाया, लेकिन खरगे ने न केवल मामले को शांत कराते हुए सभी पक्षों की राय सुनी, बल्कि सोनिया गांधी को अपना फीडबैक भी दिया। कहा जाता है कि उनके फीडबैक के बाद ही सोनिया गांधी अशोक गहलोत से मिलने और उनका पक्ष जानने के लिए तैयार हुईं।
पार्टी से विपक्ष तक सबको साधने की चुनौती
खरगे की एक चुनौती बिखरी हुई कांग्रेस को एकजुट करने की भी रहेगी। एक अच्छी बात यह है कि खरगे पार्टी जनों को गांधी परिवार की अपेक्षा ज्यादा सुलभ रहेंगे। आगामी आम चुनावों के मद्देनजर आम नेताओं और वर्कर्स के बीच हाईकमान की उपलब्धता पार्टी के मनोबल के लिहाज से अहम साबित हो सकती है। इससे जहां एक ओर संगठन में नीचे तक सीधे संपर्क की गुंजाइश बढ़ेगी, वहीं शीर्ष नेतृत्व को असल फीडबैक भी मिलेगा। 2024 के मद्देनजर खरगे के लिए जितना अहम कांग्रेस को मजबूत बनाना है, उतना ही जरूरी है विपक्षी दलों की एकजुटता सुनिश्चित करना। खरगे जैसे सीनियर और अनुभवी नेता के आने से तमाम विपक्षी दलों के बड़े नेता आसानी से जुड़ सकते हैं। खरगे का पहले लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता का अनुभव और फिर राज्यसभा में नेता विपक्ष का अनुभव उन्हें सबको साथ लेकर चलने वाले नेता के रूप में सामने लाता है।