लखनऊ
उत्तर प्रदेश में मदरसों के सर्वे का काम पूरा कर लिया गया है और शासन को इसकी रिपोर्ट भी भेजी जा चुकी है। सर्वेक्षण होने के बाद मदरसों के लिए सरकार का क्या प्लान है? इस तथ्य से पर्दा उठना अभी बाकी है लेकिन उससे पहले सर्वे को लेकर मदरसा संचालकों में खलबली मची हुई है। सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। मदरसों की शिक्षा प्रणाली में बदलाव की आशंका को लेकर मौलवी परेशान हैं। वहीं सरकार उन्हें लगातार आश्वस्त कर रही है कि सर्वे और सर्वे के आधार पर लिए जाने वाले फैसले से मदरसों को आधुनिक बनाने का काम किया जाएगा। गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को कानूनी दायरे में लाकर उन्हें मान्यता देने की कोशिश की जाएगी। इसके अलावा मदरसों में पढ़ने और पढ़ाने वाले लोगों के लिए जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने की कोशिश की जाएगी। लेकिन रविवार को जमीयत-ए-उलमा हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने एक बार फिर साफ कर दिया कि मदरसों को सरकारी मदद की जरूरत नहीं है।
मदरसों को किस बात का डर?
सहारनपुर के देवबंद स्थित दारुल उलूम की रशीदिया मस्जिद में रविवार को आयोजित मदरसा संचालकों के सम्मेलन में मौलाना मदनी ने अपनी तकरीर में मदरसों के सर्वे पर खुलकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि मदरसों को किसी भी सरकारी मदद की जरूरत नहीं है। वहीं दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम (कुलपति) मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने कहा कि मदरसे तालीमी निजाम को पुराने पाठ्यक्रम के आधार पर ही रखें। अगर पाठ्यक्रम में तब्दीली हुई तो मदरसे अपने असली मकसद से भटक जाएंगे। कुछ नासमझ लोग मदरसों के पाठ्यक्रम में बुनियादी तब्दीली और मॉडर्न शिक्षा की बात करते हैं। ऐसे लोगों से प्रभावित होने की कोई जरूरत नहीं है।
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने एक और बयान दिया था, जिसमें उसने सर्वे को लेकर योगी सरकार पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि उत्तर प्रदेश में मदरसों का सर्वेक्षण करने का राज्य सरकार का कदम इस शिक्षा प्रणाली को कम महत्व का बताने की एक दुर्भावनापूर्ण कोशिश है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने राज्य सरकार के फैसले के प्रभावों का आकलन करने के लिए मदरसा शिक्षकों की एक बैठक के बाद एक हेल्पलाइन नंबर की भी घोषणा कर दी, ताकि किसी समस्या का सामना करने पर मदरसे इस पर संपर्क कर सकें। इसके अलावा उसने इन मामलों को देखने के लिए एक संचालन समिति का भी गठन किया।
मदरसा संचालकों को डर है कि सर्वे के बाद सरकार सिलेबस में बदलाव करने जा रही है। सरकार का बार-बार मदरसों में विज्ञान की शिक्षा देने की बात करने से उन्हें लगता है कि यहां दीनी तालीम का प्रभाव कम होगा। यही कारण है कि वे इसके जवाब में मदरसों के मकसद पर बात करते हैं और कहते हैं कि अगर ऐसा किया गया तो मदरसों के संचालन का मकसद ही खत्म हो जाएगा।
छोटा एनआरसी है मदरसों का सर्वे?
सिर्फ मौलवी ही नहीं, मदरसों के सर्वे पर राजनेताओं ने भी जमकर बयानबाजी की। एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने मदरसों के सर्वे को छोटा एनआरसी बता दिया। उन्होंने कहा कि सभी मदरसे आर्टिकल 30 के तहत हैं। फिर यूपी की सरकार ने सर्वे का आदेश क्यों दिया? यह सर्वे नहीं, बल्कि छोटा एनआरसी है। कुछ मदरसे तो यूपी मदरसा बोर्ड के तहत आते हैं। हमें आर्टिकल 30 के तहत अधिकार मिले हुए हैं और उसमें सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। वे केवल मुस्लिमों का उत्पीड़न करना चाहती है।
सरकारी मदद क्यों नहीं लेना चाहते मदरसे
मदरसा संचालकों के सम्मेलन में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि सरकार ने यूपी के मरदसों का सर्वे कराया, उससे कोई दिक्कत नहीं। यह उसका अधिकार है लेकिन मदरसना चलाने के लिए हमें किसी भी दान और सहयोग की जरूरत नहीं है। इसे लेकर मदनी के दो तर्क हैं। उन्होंने कहा कि जिन भी मदरसों को सरकारी मदद मिली, उनकी हालत खराब है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि मदरसों को दान और सहयोग की जरूरत इसलिए नहीं है क्योंकि हम अपने बच्चों को गुलाम नहीं बनाना चाहते। हम अगर सरकारी मदद लेंगे तो हमारे ऊपर सरकार के नियम थोपे जाएंगे।
कुरान से होगी मदरसों में शिक्षा, लैपटॉप से नहीं
मदनी ने यह भी साफ किया कि सरकार की मदरसों में लैपटॉप से पढ़ाने की योजना भी उनके काम की नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें ऐसे लोगों की जरूरत है जो कम पैसे में मस्जिदों, जंगल, देहात में भी जाकर नमाज पढ़ा सकें। उनकी नहीं जो लैपटॉप लें। हम एक हाथ में लैपटॉप और एक हाथ में कुरान लेकर नहीं नमाज नहीं पढ़ा सकते। उन्होंने कहा कि मदरसों में पढ़ाई का बोझ कौम उठाती है। मदनी ने यह भी कहा कि दुनिया की कोई कौम मदरसों के मकसद को नहीं समझ सकती, इसलिए किसी भी बोर्ड से जुड़ने का सवाल ही नहीं है।
सरकार क्यों करा रही है सर्वे
वहीं, सर्वे को लेकर सरकार का कहना है कि गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराने के पीछे हमारी मंशा साफ है। अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों के लिए सरकार ने कई नीतियां बनाई हैं लेकिन, मदरसों के बारे में सही जानकारी न होने के चलते यहां के पढ़ने वाले बच्चे इन फायदों को नहीं ले पाते। मदरसों की सही संख्या, छात्रों की सही जानकारी का अभाव नीतियों के निर्धारण को भी प्रभावित करता है।
अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के एक अधिकारी का दावा है कि सर्वे के रिपोर्ट के आधार पर मदरसों में बुनियादी सुविधाएं बढ़ाने के साथ पढ़ाई का स्तर सुधारने पर जोर होगा। एक ओर हम मदरसों में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम लागू कर रहे हैं दूसरी ओर ये मदरसे दीनी तालीम तक सीमित हैं। उन्होंने कहा कि इसकी वजह से यहां पढ़ने वाले बच्चे वास्तविक प्रतिस्पर्द्धा के धरातल पर पिछड़ जाते हैं। इसलिए, सर्वे के आधार पर यहां भी पाठ्यक्रम को अपडेट करने, आधुनिक विषयों को पढ़ाने पर ध्यान दिया जा सकेगा।
सिर्फ इतना ही नहीं, सर्वे के जरिए गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की पहचान की भी कोशिश की जा रही है। मीडिया से बातचीत में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के चेयरमैन डॉ. इफ्तेखार जावेद ने कहा था कि गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे करवाने का आदेश इसी मकसद से जारी किया गया है ताकि ऐसे मदरसों से जुड़ी सूचनाओं को जुटाकर उन्हें मान्यता देने की प्रक्रिया शुरू की जा सके। साथ ही सर्वे में गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के संचालन के आर्थिक स्रोत की भी जानकारी ली जाएगी लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मदरसों को टेरर फण्डिंग से जोड़कर देखा जाएगा।
मदरसों के सर्वे का काम पूरा कर लिया गया है। रिपोर्ट शासन को भेजी जा चुकी है। ऐसे में सवाल यह भी है कि सर्वे के बाद सरकार उन मदरसों के साथ क्या करने वाली है, जो गैर मान्यता प्राप्त मिले हैं। सरकार ने तो पहले ही आश्वासन दिया था कि ऐसे मदरसों को जरूरी दायरे में लाकर मान्यता देने का काम किया जाएगा लेकिन लोगों के मन में यह आशंका भी है कि ऐसे मदरसों पर बुलडोजर भी चल सकते हैं।
इसे लेकर योगी सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने अपने एक बयान में साफ किया था कि योगीजी का बुलडोजर अपराधियों, समाज में गड़बड़ी फैलाने वालों पर चलता है। पहले तो मदरसों का सर्वे होगा, उसके आधार पर फिर आगे कुछ फैसला लिया जाएगा। सरकार को जानकारी होनी चाहिए कि ग्राउंड पर क्या चल रहा है।’