नई दिल्ली
विदेशी बाजारों में खाद्य तेलों (Edible Oils) की मांग होने तथा जाड़े में हल्के तेलों की मांग बढ़ने से कीमतों में उछाल आया है। दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में शनिवार को सरसों, सोयाबीन और मूंगफली तेल-तिलहन, सीपीओ, पामोलीन और बिनौला तेल कीमतों में बढ़ोतरी दर्ज की गई। बाकी तेल-तिलहनों की कीमतें पूर्व-स्तर पर बनी रहीं। कारोबारी सूत्रों ने कहा कि विदेशी बाजारों में हल्के खाद्य तेलों की मांग होने और इसके मुकाबले आपूर्ति कम होने से खाद्य तेल कीमतों में वृद्धि देखी जा रही है। सूत्रों ने कहा कि सरकार को व्यापक विमर्श के बाद कोई कदम उठाना होगा। इसके साथ ही सूरजमुखी और सोयाबीन तेल के शुल्क-मुक्त आयात का कोटा निर्धारित किये जाने जैसे कदम से बचने की सलाह भी कारोबारी सूत्रों ने सरकार को दी। सूत्रों का कहना है कि इस कदम से खाद्य तेल सस्ता होने के बजाय कम आपूर्ति की स्थिति पैदा होने से महंगे हो गए।
देश में बढ़े तिलहन का उत्पादन
अभी कोटा प्रणाली के हिसाब से आयातित सूरजमुखी का तेल थोक में 140 रुपये किलो पड़ता है। लेकिन यही तेल कांडला बंदरगाह पर ग्राहकों को थोक में 25 रुपये ऊंचे प्रीमियम पर मिल रहा है। इसी तरह पहले पॉल्ट्री कंपनियों की मांग के कारण सरकार ने तिलहन के डीआयल्ड केक (डीओसी) का आयात 30 सितंबर तक खोल दिया था। जबकि देश में किसानों के पास सोयाबीन की पर्याप्त उपलब्धता थी। खाद्य तेल कीमतों की घट-बढ़ और तमाम अनिश्चितताओं से निकलने का एक सही रास्ता देश में तिलहन उत्पादन बढ़ाना ही हो सकता है। इसके लिए किसानों को सिर्फ प्रोत्साहन एवं संरक्षण जारी रखने की आवश्यकता है।
कोई नहीं है खुश
सूत्रों ने कहा कि सरकार की तरफ से कोटा प्रणाली शुरू करने से न तो तेल उद्योग, न किसान और न ही उपभोक्ता खुश हैं। इस व्यवस्था को जल्द से जल्द खत्म किया जाना चाहिए। सूत्रों ने कहा कि किसानों को सोयाबीन, बिनौला और मूंगफली के लिए पिछले साल से कम दाम मिल रहे हैं। इसकी वजह से वे बिक्री के लिए मंडियों में कम उपज ला रहे हैं। सोयाबीन प्रसंस्करण संयंत्रों के पास पाइपलाइन में माल कम है। इस वजह से सोयाबीन तेल तिलहन, मूंगफली और बिनौला तेल कीमतों में सुधार है।
सरसों तेल तिलहन में तेजी
सूत्रों ने कहा कि मंडियों में आवक कम होने से सरसों तेल तिलहन कीमतों में तेजी है। सर्दियों में हल्के तेलों की मांग बढ़ने का भी सरसों के साथ साथ बाकी तेल तिलहन कीमतें बढ़ी हैं। सूत्रों ने कहा कि वैसे तो जाड़े में सीपीओ और पामोलीन तेल की मांग कम हो जाती है। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध जारी रहने और सूरजमुखी जैसे खाद्य तेलों की आपूर्ति प्रभावित होने और सस्ता होने की वजह से कच्चे पामतेल और पामोलीन तेल की वैश्विक मांग बढ़ी है। इसकी वजह से सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में सुधार आया।