नोटबंदी के 6 साल, भूले तो नहीं आप 500-1000 के ये नोट, बैंक के बाहर लंबी कतार, 5 यादें

नई दिल्ली,

आज 8 नवंबर है, ये तारीख देश में एक बड़े फैसले और बदलाव की गवाह है. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छह साल पहले 8 नवंबर 2016 को देश में नोटबंदी का ऐलान किया था. इसके बाद उसी दिन आधी रात से 500 और 1000 के नोट चलन भारत में बैन हो गया और ये चलन से बाहर कर दिए गए थे. सरकार के इस फैसले से देश में काफी उथल-पुथल मची, लेकिन फिर नए नोट करेंसी मार्केट का हिस्सा बने. आइए पांच खास बातों के जरिए जानते हैं कि नोटबंदी के बाद इन छह साल में कितना बदलाव देखने को मिला है?

1- चलन में आए 2000, 500 और 200 के नए नोट
भले ही देश में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले 500 और 1000 रुपये के नोट एकाएक चलन से बाहर हो गए और उनकी जगह 2000, 500 और 200 के नए नोटों ने ले ली. शुरुआती दौर में थोड़ी शिथिलता के बाद देश में नोटों का चलन साल-दर-साल फिर से बढ़ता ही गया है. नोटबंदी के छह साल के बाद भी देश में करेंसी नोटों के चलन में खासी तेजी देखने को मिल रही है. अब देश में कैश सर्कुलेशन करीब 72 फीसदी बढ़ चुका है. हालांकि, नोटबंदी जैसे फैसलों से लगे झटके से उबारने में डिजिटल पेमेंट या कैशलेस पेमेंट में भी खासी तेजी आई है, जो कोरोना काल से और भी बढ़ा है.

2- फैसले के बाद मची थी अफरा-तफरी
नवंबर 2016 में नोटबंदी के बाद अगले कई महीनों तक देश में काफी अफरा-तफरी का माहौल बना रहा था. लोगों को पुराने नोट जमा करने और नए नोट हासिल करने के लिए बैंकों में लंबी लाइनों में लगना पड़ा. ऐसा भी कहा गया कि सरकार के इस बड़े फैसले से देश में काला धन खत्म होगा और नकदी का चलन कम होगा. इसका कारण ये था कि कैश सर्कुलेशन में सबसे अहम रोल बैन किए गए 500 और 1000 रुपये के नोटों का ही था, नोटबंदी के ऐलान के बाद ऐसे भी कई मामले सामने आए थे कि करोड़ों की ऐसी राशि जिनमें चलन से बाहर किए गए ये नोट शामिल थे, कभी कूड़े में तो कभी नदी में बहते हुए दिखे.

3- कैश में आई थी कमी, अब फिर बना किंग
ताजा आंकड़ों को देखें तो नोटबंदी के बाद से अब तक देश में कैश सर्कुलेशन 71.84 फीसदी बढ़ चुका है. 8 नवंबर 2016 को जब नोटबंदी की घोषणा की गई थी, उस समय 4 नवंबर 2016 को देश में 17.7 लाख करोड़ रुपये का कैश मौजूद था. जबकि पिछले साल अक्टूबर के अंत तक (29 अक्टूबर 2021) यह बढ़कर 29.17 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया था. यानी बीते साल नोट के सर्कुलेशन में करीब 64 फीसदी की बढ़त हुई थी, जो छठे साल में बढ़कर करीब 72 फीसदी तक पहुंच गई है.

4- नोटबंदी से ये तत्काल असर पड़ा था
नोटबंदी से तात्कालिक रूप से नकदी में कमी जरूर आई थी. 4 नवंबर, 2016 को देश में करेंसी नोटों का सर्कुलेशन 17.97 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर था. नोटबंदी के बाद 25 नवंबर, 2016 को यह 9.11 लाख करोड़ रुपये रह गया. नवंबर 2016 में 500 और 1,000 रुपये के नोट वापस लेने के बाद लोगों के पास करेंसी, जो 4 नवंबर 2016 को 17.97 लाख करोड़ रुपये थी, जनवरी 2017 में घटकर 7.8 लाख करोड़ रुपये रह गई थी.

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के डाटा के अनुसार, देश में भले ही डिजिटल भुगतान कई गुना बढ़ गया है, लेकिन खरीदारी के लिए अब भी नकदी को ज्यादा तरजीह देते हैं. नोटबंदी के करीब 2 सप्ताह बाद 25 नवंबर 2016 को जहां देश के लोगों के पास 9.11 लाख करोड़ रुपये की नकदी मौजूद थी, इसमें अब तक 239 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. 21 अक्टूबर तक यह 30.88 लाख करोड़ रुपये के नए उच्च स्तर पर पहुंच गई है. यहां बता दें कि देशवासियों के पास मौजूद कैश की गणना केंद्रीय बैंक कुल कैश सर्कुलेशन यानी देश में कंज्यूमर और कारोबारियों के बीच लेन-देन में इस्तेमाल करेंसी में से बैंकों के पास मौजूद नकदी को घटाकर करता है.

5- डिजिटल पेमेंट ने पकड़ी रफ्तार
नोटबंदी वाले साल ही UPI की शुरुआत भी साल 2016 में हुई थी. देश में कैश सर्कुलेशन के साथ ही डिजिटल पेमेंट्स भी जोरदार तरीके से बढ़ा है. फिलहाल, देश में डिजिटल पेमेंट के ढेरों विकल्प लोगों के पास हैं. पूर्व रिपोर्ट्स के मुताबिक, नोटबंदी के फैसले के बाद तुरंत बाद भी क्रेडिट-डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग, यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस सभी तरीकों सेडिजिटल पेमेंट बढ़ा था.

बीते साल अक्टूबर 2021 में यानी नोटबंदी के पांच साल बाद करीब 7.71 लाख करोड़ रुपये मूल्य का लेन-देन हुआ था. वहीं भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) के मुताबिक, सितंबर 2022 में 6.78 अरब (678 करोड़) लेन-देन हुए और इनका मूल्य 11.16 लाख करोड़ रुपये रहा. इससे पहले अगस्त 2022 में 10.73 लाख करोड़ रुपये का ट्रांजैक्शन हुआ था, जबकि जुलाई में यूपीआई आधारित डिजिटल लेन-देन का मूल्य 10.62 लाख करोड़ रुपये रहा था.

सिस्टम में वापस आया पैसा
रिजर्व बैंक की अपनी साल 2018 की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि नोटबंदी के बाद करीब 99 फीसदी करेंसी सिस्टम में वापस आ गई. यही नहीं, प्रॉपर्टी जैसे कई सेक्टर में भी कैश का लेन-देन कम नहीं हुआ है. रिजर्व बैंक द्वारा दिसंबर 2018 और जनवरी 2019 में छह शहरों के बीच किए गए एक पायलट सर्वे में पता चला कि नियमित खर्चों के लिए लोग लेन-देन में कैश को ही तरजीह देते हैं.

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