सरकारी खर्च में कटौती की तैयारी, क्या भारत की चौखट पर आ चुकी है मंदी?

नई दिल्ली

केंद्र सरकार मौजूदा वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को तय लक्ष्य के भीतर रखने के लिए सरकारी खर्च में तीन साल में पहली बार कटौती कर सकती है। यह कटौती चालू वित्त वर्ष के अंतिम तिमाही में की जा सकती है। खर्च में कटौती इस तरह से की जाएगी, जिससे जीडीपी ग्रोथ (GDP growth) पर इसका असर कम से कम पड़े। सरकार पहले ही कह चुकी है कि चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के परिपेक्ष्य में 6.4 प्रतिशत रखने के लिए वह हरसंभव प्रयास करेगी। सरकार वित्तीय घाटे पर लगाम लगाने के उपाय कर रही है, जो फिलहाल 4 से 5 फीसदी के ऐतिहासिक स्तर से ऊपर है। गौरतलब है कि 2020-21 में कोरोना महामारी के पहले साल के दौरान वित्तीय घाटा 9.3 फीसदी तक बढ़ गया था।

सूत्रों के अनुसार इस बारे में महामंथन चल रहा है। किस-किस सेक्टर में सरकारी खर्च में कटौती की जाए, इस पर अभी फैसला नहीं लिया गया है। सरकारी आमदनी और खर्च के भीतर के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। एक अप्रैल से शुरू हुए 2022-23 के वित्तीय वर्ष में कुल सरकारी खर्च 39.45 लाख करोड़ के बजट से काफी कम 70 से 80 करोड़ रुपये तक हो सकता है। राजकोषीय घाटा तय लक्ष्य के भीतर रहें, इसके लिए कदम भी उठाए जाएंगे। सरकार चाहती है कि चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय तय लक्ष्य में रहे ताकि अगले वित्त वर्ष में इस मोर्चे पर ज्यादा चुनौतियां न रहें। आईएमएफ ने साफ तौर पर कहा है कि अगले वित्त वर्ष में ग्लोबल मंदी आ सकती है। उससे हालात बिगड़ सकती है। यही कारण है कि सरकार चालू खाते के मोर्चे पर ज्यादा रिस्क नहीं लेना चाहती।

क्यों कर रही है सरकार ऐसा
वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सरकार अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की ऊंची कीमत से निपटने के लिए कदम उठा रही है। देश अपनी कच्चा तेल की जरूरतों का 85 प्रतिशत आयात के जरिये पूरा करता है। डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में कमी से आयात महंगा हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण कच्चे तेल समेत जिंसों के दाम उच्च स्तर पर हैं। इससे भारत और अन्य देशों में महंगाई बढ़ी है। इसके अलावा महंगाई को नियंत्रण में रखने के लिए सरकार और आरबीआई मिलकर प्रयासरत हैं।

इधर ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स का कहना है कि भारत चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएगा। भारत का वित्तीय घाटा तय लक्ष्य से ज्यादा होगा। फिच के अनुसार भारत ने चालू वित्त वर्ष के लिए वित्तीय घाटा का लक्ष्य जीडीपी के परिपेक्ष्य में 6.4 फीसदी तथा साल 2025-25 तक इसे जीडीपी के परिपेक्ष्य में 4.5 फीसदी तक लाने का लक्ष्य तय किया हुआ है। फिच का कहना है कि भारत की इकॉनमी के जो हालात है, उसे देखते हुए भारत को सब्सिडी और अन्य मदों में ज्यादा खर्च करना होगा। ऐसे में उसका खर्च बढ़ता जाएगा। ऐसे में भारत को अपनी आमदनी भी बढ़ानी होगी। जिस तरह के वैश्विक इकॉनमी में अनिश्चितता की स्थिति है, उसे देखते हुए नहीं लगता कि भारत खर्च और आमदनी के बीच ज्यादा संतुलन बना सकने में कामयाब होगा।

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