EWS पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बढ़ाई केंद्र सरकार की परेशानी, अब राज्यों से उठ रही नए आरक्षण की मांग

नई दिल्ली

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को सही ठहराते हुए फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्थिक मानदंडों पर आरक्षण संविधान का उल्लंघन नहीं है। कोर्ट ने आरक्षण की 50% सीमा से परे ये फैसला दिया। इस फैसले ने केंद्र सरकार के सामने नई परेशानी खड़ी कर दी है। अब राज्य सरकार ने अलग-अलग आधार पर आरक्षण की मांग कर सकते हैं, जो केंद्र सरकार को अस्वीकार्य स्थिति में डाल सकता है कि इसे स्वीकार करें या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया ये तर्क
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बहुमत से फैसला किया कि आरक्षण के कोटा की सीमा को बढ़ा दिया गया है, जिसे अब तक अनुल्लंघनीय माना जाता था। लेकिन अगर कोर्ट के आदेश को ठीक से पढ़ा जाए तो पता चलता है कि इसने एससी / एसटी / ओबीसी के लिए कोटा की 50% सीमा को सीमित कर दिया है, जबकि ईडब्ल्यूएस को इसकी सीमा से परे करार दिया है। इसके अलावा इंद्रा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों पर चर्चा करते हुए इसे गलत करार नहीं दिया। अदालत के जजों ने तर्क दिया कि असाधारण स्थितियों” में सीमा का उल्लंघन किया जा सकता है।

आरक्षण की सीमा को किया जा सकता है पार
ईडब्ल्यूएस फैसले के बाद ये बात साफ हो गई कि आरक्षण की 50% की सीमा को पार किया जा सकता है। आरक्षण मामलों के विशेषज्ञ शशांक रत्नू, जिन्होंने ईडब्ल्यूएस मामले में कोर्ट में भी अपना पक्ष रखा उन्होंने कहा कि असाधारण स्थिति/परिस्थितियों के तहत एक संवैधानिक संशोधन के माध्यम से 50% के उल्लंघन को वैध बनाया जा सकता है।

राज्य कर सकते हैं आरक्षण बढ़ाने की मांग
अगर राज्य अपने कोटा कानूनों को फ़ायरवॉल करने के लिए संवैधानिक संशोधन कराने के लिए केंद्र को याचिका देना शुरू करते हैं, तो सरकार के सामने कठिन स्थिति आ जाएगी। अगर सरकार इससे इनकार करती है तो इसे एक समाजिक मुद्दे के नजरिए से देखकर राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ सकता है। वहीं, इन याचिकाओं को स्वीकार करना भी आसान नहीं होगा। क्योंकि ऐसा करना आरक्षण को बहुत बढ़ावा दे सकता है। ऐसे में नौकरियों को शिक्षा में जनरल सीटें गंभीर रूप से कम हो जाएंगी।

कई राज्यों ने बढ़ाए कदम
ईडब्ल्यूएस फैसले के एक सप्ताह के भीतर, कई राज्यों ने स्थानीय कोटा बढ़ाने के लिए तेजी से कदम उठाए हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मांग की है कि केंद्र 50% की सीमा को हटा दे, जबकि झारखंड ने अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कुल आरक्षण बढ़ाकर 77% कर दिया है।

रविवार को, बिहार में सत्तारूढ़ सात-दलीय महागठबंधन के दो घटकों ने सीएम नीतीश कुमार से 23 नवंबर से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में एक कानून लाने के लिए कहा, जिसमें मौजूदा 50% से कुल आरक्षण को 77% तक बढ़ाया जा सके। राजस्थान में भी मांग उठी है कि ओबीसी कोटा 21% से बढ़ाकर 27% किया जाए। साथ ही, राजस्थान और महाराष्ट्र ने गुर्जर और मराठा समुदायों के लिए अपनाए गए विशेष उपायों के खिलाफ अपने कानूनी संघर्ष किए हैं।

राज्यों ने किया आरक्षण बढ़ाने में तेजी से काम
ईडब्ल्यूएस फैसले के मद्देनजर आरक्षण की पहल में ताजा उछाल इस बात की याद दिलाता है कि जनवरी 2019 में मोदी सरकार द्वारा ईडब्ल्यूएस कोटा लागू किए जाने के बाद राज्यों ने किस तरह तेजी से काम किया। ईडब्ल्यूएस के बाद उन्होंने 50% से ज्यादा आरक्षण लिया। राज्यों ने जाति कोटा के लिए अलग-अलग विधान पेश करने के लिए इसके कवर का इस्तेमाल किया। जबकि राजस्थान ने गुर्जर और चार अन्य जातियों को 5% आरक्षण दिया, मध्यप्रदेश ने अपना ओबीसी कोटा 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया . दोनों ही मामलों में, कुल आरक्षण 64% और 70% तक बढ़ गया।

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