नई दिल्ली
अपनी पत्नी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे स्वयंभू स्वामी श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा ने सु्प्रीम कोर्ट से खुद को रिहा करने की गुहार लगाई है। श्रद्धानंद का कहना है कि उसे राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की तरह जेल से रिहा किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 से मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए एजी पेरारिवलन को मई महीने में रिहा किया था। शीर्ष अदालत ने अन्य दोषियों की रिहाई के लिए भी उसी की हवाला दिया। ऐसे में राजीव गांधी के हत्यारों को रिहाई करने के फैसले से जुड़ी आशंकाएं सच साबित हो रही हैं। शीर्ष अदालत के फैसले के बाद यह सवाल उठने लगे थे कि भविष्य में इस आधार पर लंबे समय से जेल में बंद अन्य लोग भी रिहा करने की मांग करने लगेंगे। अब श्रद्धानंद का कहना है कि उसका मामला समानता के अधिकार के उल्लंघन का सटीक उदाहरण है। उसने कहा कि वह जेल में 29 साल से अधिक बिता चुका है और एक भी दिन की पैरोल नहीं मिली है।
राजीव के हत्यारों के बाद जताई थी आशंका
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे एक लेख में राजीव गांधी हत्यकांड के साक्षी रहे वरिष्ठ पत्रकार जीसी शेखर ने एक 14 नवबंर को एक लेख लिखा था। लेख में जीसी शेखर ने राजीव हत्याकांड के दोषियों की रिहाई को न्याय की हार बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 से मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए एजी पेरारिवलन को मई महीने में रिहा किया था। फैसले के के बाद शेखर ने लेख में आशंका जताई थी कि फैसले के बाद इस पैमाने पर सुप्रीम कोर्ट के सामने उम्रकैद की सजा पाए कुछ और दोषियों के भी आवेदन आएंगे। लेख के बाद अब श्रद्धानंद की याचिका से यह आशंका सच साबित हो रही है।
नशीला पदार्थ खिला पत्नी का जिंदा दफन किया था
श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा ने अपनी पत्नी शकीरे नमाजी को नशीला पदार्थ खिलाकर उसे 28 अप्रैल, 1991 को बेंगलोर स्थित अपने विशाल बंगले के परिसर में जिंदा दफन कर दिया था। मैसूर के पूर्व दीवान सर मिर्जा इस्माइल की पौत्री नमाजी ने पूर्व राजनयिक अकबर खलीली से तलाक लेने के बाद 1986 में श्रद्धानंद से शादी कर ली थी। नमाजी की बेटी की शिकायत पर पुलिस ने मामले में जांच की थी और उसके शव को बाहर निकाला था जिसके बाद स्वयंभू बाबा को गिरफ्तार किया गया।
पत्नी की संपत्ति हड़पना चाहता था
अभियोजन पक्ष के अनुसार श्रद्धानंद अपनी पत्नी की संपत्ति हड़पना चाहता था। हत्या के मामले में निचली अदालत ने उसे मौत की सजा सुनाई। बाद में हाईकोर्ट ने मौत की सजा को कायम रखा था। हालांकि, इस अदालत ने मौत की सजा को बिना माफी के उम्रकैद में बदल दिया। श्रद्धानंद से इससे पहले राष्ट्रपति के पास दया याचिका भी लगाई थी। श्रद्धानंद पहले बेंगलुरु जेल में बंद था। उसे बाद में साल 2011 में मध्यप्रदेश के सागर जेल में शिफ्ट किया गया था। इससे पहले उसने अच्छे व्यवहार का हवाला देते हुए राष्ट्रपति से खुद के रिहा करने से जुड़ी अर्जी लगाई थी।