– जंबूरी मैदान में रामकथा का चौथा दिन
भोपाल
जंबूरी मैदान में चल रही रामकथा के चौथे दिन व्यासपीठ संत श्री मुरलीधरजी महाराज ने राजा दशरथ के चारों पुत्रों का नामकरण किया । बाल लीला का वर्णन करते हुए अहिल्या उद्धार के प्रसंग को सुनाते वक्त संत श्री मुरलीधरजी महाराज ने कहा कि कभी-कभी संत का श्राप भी वरदान बन जाता है जब विश्वामित्र प्रभु श्री राम और लक्ष्मण को लेकर जनकपुर जा रहे थे तो रास्ते में एक विरान आश्रम देखा जब प्रभु राम ने गुरु विश्वामित्र से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि गौतम ऋषि का आश्रम है उनके श्राप से उनकी पत्नी अहिल्या पत्थर बनी हुई हैं और जब भगवान ने उस पत्थर से आंसू गिरते हुए देखे तो उन्होंने पांव से उस शीला को छुआ और वह शिला नारी बन गई और रोते-रोते भगवान से कहने लगी हे भगवान यदि मेरे पति मुझे श्राप नहीं देते तो मैं आंखों से आपको देख नहीं देख पाती इसके पश्चात भगवान ने अहिल्या से कुछ मांगने को कहा तो इस पर अहिल्या बोली मैं आपसे क्या मांग सकती हूं मैं तो इतना ही मांगती हूं कि आपके चरणों की रज सदैव मिलती रहे ।
इस मार्मिक प्रसंगों को सुनकर पंडाल में उपस्थित अनेक श्रोताओं की आंखें भर आई । इससे पूर्व मानस पूजन के साथ आरंभ हुई इस राम कथा में पूज्य महाराज जी ने अवध के लोगों के राम अवतरण के पश्चात उत्सव मनाने भगवान शंकर के द्वारा प्रभु श्री राम के शिशु रूप के दर्शन करने के प्रसंग को सारगर्भित रूप में श्रोताओं के समक्ष रखा उसके पश्चात विश्वामित्र जी के द्वारा अवध में जाकर राजा दशरथ जी से प्रभु श्री राम और लक्ष्मण को मांगने के प्रसंग की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि इस देश की ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत देखिए उस समय राजा को भी राम चाहिए और साधु को भी राम चाहिए । इस अवसर पर उनके द्वारा गाया गया भजन राघव को मैं न दूंगा पर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।