नई दिल्ली,
जियांग जेमिन चीन के वो कम्युनिस्ट नेता थे जिन्होंने उन आर्थिक नीतियों पर अमल किया जिससे साम्यवादी चीन को पूंजी की तगड़ी खुराक मिली. मजबूत पार्टी नेतृत्व, केंद्रीकृत सत्ता और सोशलिस्ट मार्केट इकोनॉमी के दम पर उन्होंने उस चीन की नींव रखी जिसकी बुलंद तस्वीर अभी दिखती है.
जियांग जेमिन मार्च 1993 से मार्च 2003 तक चीन के राष्ट्रपति रहे. 30 नवंबर 2022 को 96 साल की उम्र में इस कद्दावर कम्युनिस्ट नेता ने दुनिया को अलविदा कह दिया. जियांग जेमिन के कार्यकाल पर नजरें दौड़ाएं तो हम पाते हैं कि उन्होंने साम्यवाद के असर से उंघ रहे चीन आर्थिक तंत्र में पूंजी का प्रवाह सुनिश्चित किया. इसी के दम पर चीन अगले कुछ दशकों में दुनिया की सर्वोच्च आर्थिक शक्तियों की कतार में आ गया.
चीन को हॉन्गकॉन्ग, मकाऊ देने वाले राष्ट्रपति
जियांग जेमिन के शासन काल में ही ब्रिटेन ने हॉन्गकॉन्ग (1997) और पुर्तगाल ने मकाऊ (1999) चीन को सौंप दिया. इससे पहले इन क्षेत्रों में चीन की संप्रभुता नहीं थी. चीन सालों से इन दो क्षेत्रों पर दावा कर रहा था. लेकिन ये दोनों ही इलाके यूरोपीय शक्तियों के अधीन थे. आखिरकार 90 के दशक के आखिरी सालों में जियांग जेमिन की प्रभावी विदेश नीति के बाद ब्रिटेन और पुर्तगाल ने इन दोनों क्षेत्रों को चीन को सौंप दिया.
इसी दौरान चीन को 2008 ओलंपिक खेलों की मेजबानी मिली. यही वो समय था जब 2001 में चीन वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन का सदस्य बन गया. इसके बाद चीन ने तेजी से आर्थिक विकास हासिल किया. इसी समय चीन की अर्थव्यवस्था 8 फीसदी की दर से कुलांचे भर रही थी. 2008 में बीजिंग ओलंपिक खेलों के दौरान दुनिया ने जब चीन की आर्थिक विकास की झलक देखी तो दुनिया को उभरते ड्रैगन की ताकत का पता चला.
फैक्ट्री इंजीनियर से करियर की शुरुआत
एक फैक्ट्री से बतौर इंजीनियर के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले जियांग जेमिन मार्च 1993 में जब चीन के राष्ट्रपति बने तो दुनिया बदलाव के दौर से गुजर रही थी. भारत ने अपने बाजार खोल दिए थे. तो चीन भी इस दिशा में कदम उठा चुका था. जियांग जेमिन ने चीन में आर्थिक सुधारों का लंबा दौर शुरू किया. इसे सोशलिस्ट मार्केट इकोनॉमी के रूप में जाना जाता है. सोशलिस्ट मार्केट इकोनॉमी आर्थिक विकास वो का मॉडल है जिसमें सरकारी कंपनियों की प्रमुखता होती है.
थियानमेन कांड के बाद जियांग जेमिन को मिली सत्ता
बता दें कि 1989 में चीन में हुए थियानमेन कांड के बाद चीन राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता झेल रहा था. 1993 में राष्ट्रपति बनने के बाद वे देश को हर हाल में आर्थिक स्थिरता देना चाह रहे थे. इसके लिए उन्होंने विरोधियों को कुचलना और मीडिया पर नियंत्रण किया. लेकिन आर्थिक मोर्चे पर उन्होंने चीन में हजारों स्पेशल इकोनॉमिक जोन को बनवाया, समुद्री तटों को आर्थिक रूप से विकसित किया. यही स्पेशल इकोनॉमिक जोन आज लगभग 20 साल बाद चीन के एक्सपोर्ट केंद्र बन गए हैं. जहां से निकले सस्ते सामान पूरी दुनिया में छाये रहते हैं.
जियांग जेमिन को सत्ता Deng Xiaoping के बाद मिली थी. लेकिन जियांग जेमिन में रिव्योलूशन का वो एलिमेंट नहीं था. जिसकी तत्कालीन चीन को जरूरत थी. जियांग जेमिन ने आर्थिक सुधार को अपना रास्ता बनाया. उन्होंने खेती को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया. 1997 में उन्होंने कहा था कि पहले आर्थिक समस्या का समाधान किए बिना, किसी अन्य अधिकार को प्राप्त करना कठिन होगा.
जियांग जेमिन ने चीन के साथ रिश्तों को सुधारा. अमेरिका चीन संबंधों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा था कि ताली बजाने के लिए दोनों हाथों का होना जरूरी है. चीन को आर्थिक तरक्की पर ले जाने के लिए जियांग जेमिन ने झू रोंगजी को चुना और उन्हें अपना पीएम बनाया. इन दोनों के संयुक्त नेतृत्व में चीन ने सालाना 8% जीडीपी की रफ्तार हासिल की. वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन की खासियतों का फायदा उठाकर चीन ने अपने प्रोडक्ट से दुनिया के बाजारों को भर दिया. भारत भी इससे अछूता नहीं रहा दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में टॉप पर पहुंच गया.
द्विपक्षीय संबंधों की बहाली के बाद भारत आने वाले पहले चीनी राष्ट्राध्यक्ष
अगर जियांग जेमिन की भारत के साथ रिश्तों की बात करें तो इसे एक बढ़िया दौर कहा जा सकता है. 1996 में जब भारत में साझी सरकारों का दौर शुरू हो चुका था तो उस समय राष्ट्रपति जियांग जेमिन ने भारत की यात्रा की थी. वह चीन के पहले स्टेट हेड थे जिन्होंने द्विपक्षीय संबंधों की स्थापना के बाद से भारत का दौरा किया. इस दौरान 21वीं सदी की जरूरतों को देखते हुए दोनों देशों ने अपनी पार्टनरशिप को आगे बढ़ाने का फैसला किया. जियांग जेमिन के इस यात्रा के दौरान LAC पर विश्वास बहाली के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए.
जून 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जब चीन की यात्रा पर गए तो राष्ट्रपति जियांग जेमिन ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया. जियांग जेमिन ने कहा कि भारत और चीन के बीच अनुकूल संबंध दुनिया में शांति, स्थिरता और प्रगति के लिए जरूरी हैं. मौजूदा चीन भले ही विस्तारवादी दिखता हो, लेकिन जियांग जेमिन अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में बल के दुरुपयोग का विरोध करते थे. वे अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय शांति बनाए रखने के लिए सभी कोशिशों का समर्थन करते थे.
वाजपेयी के सामने टैगौर का जिक्र
जब वाजपेयी 2003 में चीन में थे तो जियांग जेमिन ने रवींद्रनाथ टैगोर की कुछ पंक्तियों का जिक्र कर एशियाई दर्शन की व्याख्या की थी. जियांग जेमिन ने टैगौर की पंक्तियां का उद्धरण देते हुए कहा था ‘उसने अपने हथियारों को अपना देवता बना लिया है’ जब उसके हथियार जीत जाते हैं तो वह स्वयं हार जाता है.’ यही एशिया का दर्शन है.