लखनऊ
इसी साल 25 नवंबर को समाजवादी पार्टी के मीडिया सेल ने अपने ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट किया और उसे पिन कर दिया। उसमें लिखा था, ‘सुन लो और समझ लो भाजपाइयों! अब सपा का सिर्फ एक ही सूत्र है, ‘शठे शाठ्यम समाचरेत’। विदुर नीति को कोट करके किए गए इस ट्वीट के साथ ही मीडिया सेल के तेवर बदल गए। मुद्रा आक्रामक हो गई। किसी भी आरोप का जवाब देने भर तक की भूमिका अब हमला करने वाले को धराशायी करने तक पहुंच गई। मीडिया सेल के इस बदले हुए तेवर की चर्चा इन दिनों राजनीतिक गलियारों में हो रही है।
जानकारों के मुताबिक बीते महीने सपा के कुछ प्रवक्ताओं ने अपने दिल का हाल सपा मुखिया अखिलेश यादव से बयान किया। उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया पर भाजपा उन्हें निशाने पर लेती है। पार्टी पर अनर्गल आरोप लगाती है। कुछ लोगों ने सपा मुखिया को ऐसे ट्वीट भी दिखाए, जिनमें समाजवादी पार्टी को गिरोह या गुंडों की पार्टी तक कहा गया था। इन लोगों ने ही सुझाव दिया कि भाजपा को माकूल जवाब देना चाहिए। नीति के तहत ही मीडिया सेल के हैंडल को चुना गया ताकि उससे सपा के नेताओं और पार्टी के खिलाफ बोलने वाले लोगों को सीधे निशाने पर लिया जाए। शीर्ष नेतृत्व से हरा सिग्नल मिलने के बाद ही सपा के मीडिया सेल ने अपना अंदाज बदल लिया। बताया तो यह भी जाता है कि आक्रमण के लिए यह ट्विटर हैंडल इसलिए चुना गया क्योंकि अगर किसी व्यक्ति विशेष का हैंडल होता तो उसपर सीधे तौर पर कार्रवाई की जा सकती थी। अब अगर प्रशासनिक कार्रवाई करने के विकल्प पर विचार भी किया जाए तो वह सामूहिक ही होगी, व्यक्ति केंद्रित नहीं। कहा जा रहा है कि इसके लिए टीम में कुछ नए लोग भी शामिल किए गए।
सपा या नेतृत्व के खिलाफ बोला तो सीधा निशाने पर
जानकारों के मुताबिक, भाजपा के ऐसे नेताओं को चिह्नित किया गया है, जो लगातार सपा और सपा नेतृत्व को निशाने पर लिया करते हैं। उनके ट्वीट पर उन्हीं को कोट करके जवाब दिए जा रहे हैं। जैसे, मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव को लेकर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने 4 दिसंबर को भाजपा की जीत और सपा की साइकल पंक्चर होने की बात कही तो मीडिया सेल ने फौरन जवाब दिया, ओ भाई केशव मौर्य, सिराथू में कौन सा सुज्जा डालकर तुम्हारी विधानसभा को पंक्चर किया था ये बताओ? इसी ट्वीट में कहा गया, तुम्हारे पास एक्को विधायक नहीं। विभाग भी ऐसा है जिसमें बजट नहीं मिलता।’ अखिलेश यादव के साथ विधानसभा में हुई तीखी बहस के बाद से ही केशव सपा के निशाने पर हैं। 1 दिसंबर को भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने जैसे ही सपा पर निशाना साधा, उन्हें कई ऐसे शब्दों के साथ सपा मीडिया सेल ने जवाब दिया, जो भाजपा को अच्छे नहीं लगे। जबतक वह जवाब देते रहे, उन्हें लगातार जवाब दिया जाता रहा। इसके अलावा मनीष शुक्ला, नवीन श्रीवास्तव, आलोक अवस्थी समेत कई भाजपा प्रवक्ता भी निशाने पर आए। बात यहीं तक नहीं रुकी, एक दिसंबर को इस ट्विटर हैंडल से कहा गया- भल्लालदेव के रथ की माफिक इस वक्त भाजपाइयों की जलालत, बेइज्जती और पोल खोल अभियान चल रहा है। जिस-जिस भाजपा नेता को यहां सेवाएं प्राप्त करनी हों वो अपनी बदजुबानी जारी रखे। एक-एक करके सबका नंबर आएगा, कोई धक्कामुक्की नहीं करना, सबको बराबर से मौका मिलेगा। यही नहीं, कुछ अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। उन्हें इस ट्विटर हैंडल से लगातार चेताया जा रहा है कि वक्त बदलता है और सबका हिसाब होता है।
सपा के नेता ही भाषा पर एकराय नहीं
जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल इस ट्विटर हैंडल से किया जा रहा है, उसपर सपा के कई नेता ही एकराय नहीं हैं। दलाल, बौड़म, गर्दभ जैसे शब्दों का इस्तेमाल इस हैंडल से जवाब देते समय किया जाता है। इसपर सपा के कई वरिष्ठ नेताओं की राय है कि ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। हालांकि सपा का दूसरा वर्ग इसी भाषा के पक्ष में है।
कौन है जानकारी देने वाला?
मीडिया सेल के ट्विटर हैंडल से कई ट्वीट इस तरह के भी हुए हैं, जिनकी जानकारी सामान्य तौर पर लोगों को नहीं रही है। मसलन भाजपा के किस प्रवक्ता का किन नेताओं के यहां उठना-बैठना रहा है। इनपर लगातार टिप्पणियां की जाती रही हैं। इसके अलावा कई लोगों पर ऐसी निजी टिप्पणियां भी की गईं, जिसकी जानकारी सभी को नहीं थी। माना जा रहा है कि कोई भाजपा के भीतर का ही व्यक्ति है जो सारी जानकारियां संबंधित के बारे में सपा तक पहुंचा रहा है। कुछ लोग आईटी सेल छोड़ चुके या पार्टी से किनारे किए गए नेताओं पर भी शक कर रहे हैं।
क्यों बदले तेवर
कहा जा रहा है कि मीडिया सेल के इस आक्रामक रुख से बीते कुछ समय में सपा और नेतृत्व के खिलाफ जारी होने वाले बयानों के तीखेपन में कमी आई है। इसे 30 नवंबर को मीडिया सेल के एक ट्वीट से समझा जा सकता है-‘, इधर से डिफेंस नहीं होगा। क्लियर और तगड़ा जवाब मिलेगा। अपनी इज्जत प्यारी हो तो वैचारिक लड़ें, व्यक्तिगत नहीं।’ मीडिया सेल के ट्वीट में इस्तेमाल होने वाली भाषा को लेकर दो मुकदमे भी दर्ज किए गए। अभी तक देखा जाए तो सपा अपनी रणनीति में कामयाब दिखी है, लेकिन अगर यह सिलसिला जारी रहा तो और भी मुकदमे हो सकते हैं। या हैंडल बंद भी हो सकता है। या ऐसा भी हो सकता है कि दोनों तरफ से ऐसे ही शब्दों का आदान-प्रदान भाषा के ऐसे निचले स्तर पर पहुंच जाए जो हर किसी को स्वीकार्य न हो।