तेहरान
ईरान ने जब भारत से चाय और बासमती चावल का आयात रोका तो राजनयिक स्तर पर अजीब सी हलचल देखने को मिली। ईरान ऐसा कर सकता है, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। दो सरकारी अधिकारियों की मानें तो ईरान ने यह कदम बदले में उठाया है। भारत ने ईरान से कुछ फलों जैसे आडू और कीवी का आयात कम कर दिया था। अधिकारियों की मानें तो उन्हें व्यापारिक और राजनयिक सूत्रों की तरफ से यह जानकारी मिली है। लेकिन ईरान का बासमती चावल न लेने का फैसला असाधारण है। भारत से मिलने वाला चावल काफी सस्ता होता है जबकि दूसरे देशों से काफी ज्यादा कीमत पर इसे आयात किया जाता है। ईरान के इस फैसले के बाद सरकार हरकत में आ गई है।
क्यों जरूरी है भारत
विशेषज्ञों की मानें तो ईरान को यह समझना पड़ेगा कि वह भारत से दुश्मनी नहीं ले सकता है। अगर वह ऐसा करता है तो फिर उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इस साल जून में जब ईरान के विदेश मंत्री आमिर अब्दुल्लायिान भारत आए तो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। पीएम मोदी जो हर देश के विदेश मंत्री से नहीं मिलते, उन्होंने खासतौर पर ईरान के विदेश मंत्री से मुलाकात की थी। पीएम मोदी ने कहा था कि दोनों देशों के बीच रिश्तों से दोनों देशों को फायदा हुआ था। उन्होंने ईरान को याद दिलाया था कि भारत के साथ रिश्तों की वजह से क्षेत्रीय सुरक्षा और समृद्धशीलता आगे बढ़ी है।
भारत और ईरान मामलों के जानकारों की मानें तो दोनों देश साथ आकर काफी कुछ हासिल कर सकते हैं। भारत की तरफ से आक्रामक कूटनीति को आगे बढ़ा रहा है। उसका जोर हमेशा से अपने पड़ोसियों और दोस्तों पर हैं जो कि उसके राष्ट्रीय हितों के लिए कारगर साबित हो सकता है। ईरान जानता है कि भारत के साथ आपसी संबंध उसके लिए काफी संभावनाओं से भरे हैं।
कब कायम हुए संबंध
भारत और ईरान के बीच 15 मार्च 1950 में राजनयिक संबंध कायम हुए थे। सन् 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा नहीं हुआ था तो दोनों देश एक ही बॉर्डर साझा करते थे। सन् 1953 में ईरान में जब शाह मोहम्मद रजा पहलवी का शासन था और इसी समय दोनों देशों के रिश्ते आगे बढ़ रहे थे। लेकिन शीत युद्ध के बाद दोनों देशों के रिश्तों में काफी तनाव आ गया था। भारत जहां रूस के पक्ष में था तो ईरान का रुख अमेरिका के लिए नरम था। शीत युद्ध खत्म होने के बाद दोनों देशों के रिश्ते बेहतर होने शुरू हुए। ईरान और भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ बने गठबंधन उत्तरी गठबंधन का समर्थन किया था।
भारत आया था दबाव में
साल 2000 में भारत, रूस और ईरान ने एक समझौता साइन किया था। इस समझौते के तहत भारत को मध्य एशिया और रूस में व्यापार करने का रास्ता मिल सका था। भारत, उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर के जरिए रूस तक कार्गो भेज सका। लेकिन साल 2006 में भारत ने ईरान के खिलाफ इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) में परमाणु कार्यक्रम पर वोट किया था। यहां से दोनों देशों के रिश्ते बदल गए थे। अमेरिका के दबाव में भारत ने तेल के आयात में 40 फीसदी तक कटौती कर दी थी। साथ ही पाकिस्तान के रास्ते आने वाली गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट से भी पैर पीछे खींच लिए थे।
साल 2008 में बदला रुख
साल 2008 में भारत ने अपना रुख बदल लिया था। अमेरिका के दबाव के आगे न झुकते हुए भारत, संबंधों को पटरी पर लेकर आया। उस समय ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद भारत की यात्रा पर आए थे। भारत ने उनसे एक स्वतंत्र नीति को अपनाने का वादा किया। आज तक भारत उस नीति पर अड़ा हुआ है। जिस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ईरान पर चारों तरफ से प्रतिबंध लग रहे थे, उस समय कई मुश्किलों के बाद भी भारत ने अपने संबंध ईरान के साथ बरकरार रखे हैं। साल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईरान की यात्रा पर गए थे। इस दौरे पर संपर्क, व्यापार और निवेश के साथ ही साथ ऊर्जा साझीदार पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
बढ़ता गया निवेश
भारत की तरफ से न सिर्फ वीजा नीति को बदला गया है बल्कि निवेश को भी बढ़ाया गया है। करीब 20 अरब डॉलर का निवेश भारत, ईरान में करने को तैयार है। यह निवेश तेल और गैस, पेट्रोकेमिकल और फर्टिलाइजर में निवेश किया जाएगा। साथ ही चाबहार बंदरगाह पर भी काम जारी है। भारत की तरफ से चाबहार में एल्म्यूनियम से लेकर यूरिया का प्लांट लगाए जाने की तैयारी है जिससे ईरान को ही फायदा पहुंचेगा।
मुश्किल में साथ आया भारत
साल 2018 में जब अमेरिका ने ईरान के साथ साल 2015 में हुई परमाणु संधि खत्म की तो देश के सामने बड़ा संकट पैदा हो गया था। भारत पर दबाव था कि वह ईरान से तेल का आयात न करे लेकिन इसके बाद भी तेल का आयात जारी रखा। भारत की तरफ से स्पष्ट कर दिया गया था वह अमेरिका के नहीं बल्कि यूनाइटेड नेशंस (UN) की तरफ से लगाए गए प्रतिबंधों को मानता है। ईरान, भारत से आयरल और स्टील के अलावा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, मशीनरी, परमाणु रिएक्टर्स बॉयलर्स और जानवरों का चारा आयात करता है।