तवांग पर कब्‍जा कर दलाई लामा का गुस्‍सा भारत पर तो नहीं निकाल रहा ड्रैगन

बीजिंग

तवांग, एलएसी और दलाई लामा, वह त्रिकोणीय समीकरण जो रह-रहकर चीन को परेशान करता रहता है। अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर से 200 किलोमीटर दूर तवांग में इन दिनों तापमान 11 डिग्री से -1 डिग्री है लेकिन इसके बाद भी तवांग पर कब्‍जे के लिए पीपुल्‍स लिब्रेशन आर्मी (PLA) के सैनिकों का खून गर्म हो रहा है। तवांग, चीन को उसकी बेइज्‍जती की याद दिलाता है। यह जगह चीन को बताती है कि जब वह तिब्‍बत पर कब्‍जा कर रहा था तो कैसे तवांग में दलाई लामा सुरक्षित थे और चीन की हरकत के खिलाफ दुनिया को बता रहे थे। आज हम आपको बताते हैं कि दलाई लामा और चीन का क्‍या कनेक्‍शन है और जानिए कि कैसे तिब्‍बती धर्मगुरु की वजह से पड़ोसी हमेशा भारत के खिलाफ आक्रामक रहता है।

छठें दलाई लामा का जन्‍म
तवांग वही जगह है जहां पर सन् 1683 में छठे दलाई लामा का जन्‍म हुआ था। ये जगह तिब्‍बती बौद्ध धर्म का केंद्र है। शांति का नोबल हासिल करने वाला दलाई लामा आज भी अरुणाचल प्रदेश और तवांग को भारत का हिस्‍सा करार देते हैं तो चीन इसे दक्षिणी तिब्‍बत करार देता है। इस वजह से चीन दलाई लामा को एक अलगाववादी नेता मानता है। वो कहता है कि दलाई लामा भारत और चीन की शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।

साल 1950 में चीन ने तिब्‍बत पर हमला किया। साल 1959 में चीन ने मनमाने ढंग से तिब्‍बत पर कब्‍जे का ऐलान कर दिया। इसके बाद भारत की तरफ से एक चिट्ठी भेजी गई जिसमें चीन को तिब्‍बत मुद्दे में हस्‍तक्षेप का प्रस्‍ताव दिया था। चीन उस समय मानता था कि तिब्‍बत में उसके शासन के लिए भारत सबसे बड़ा खतरा है।

युद्ध की बड़ी वजह
वर्ष 1962 में चीन और भारत के बीच युद्ध की यह एक अहम वजह थी। मार्च 1959 में दलाई लामा चीनी सेना से बचकर भारत में दाखिल हुए। वो सबसे पहले अरुणाचल प्रदेश के तवांग और फिर 18 अप्रैल को असम के तेजपुर पहुंचे। दलाई लामा के भारत आने को आज भी दोनों देशों के रिश्‍तों में एक अहम और नाजुक मोड़ माना जाता है। चीन ने उस समय दलाई लामा को शरण दिए जाने पर भारत का कड़ा विरोध किया था। इसी का बदला लेने के लिए चीन ने भारत पर 1962 में हमला किया था।

जब दलाई लामा ने की गलती
वर्ष 2003 में हालांकि दलाई लामा ने तवांग को तिब्‍बत का हिस्‍सा करार दिया और अपने लिए विवाद मोल ले लिया था। साल 2008 में उन्‍होंने अपनी भूल को सुधारा और मैकमोहन रेखा पहचाना। इसके साथ ही उन्‍होंने तवांग को भारत का हिस्‍सा करार दे दिया। दलाई लामा अमेरिका से लेकर संयुक्‍त राष्‍ट्र तक तिब्‍बत की आजादी और यहां की शांति की अपील करते रहते हैं। उनकी मांग है कि पूरे तिब्बत को एक शांति क्षेत्र में बदला जाए। चीन की जनसंख्‍या स्‍थानातंरण की पॉलिसी को अब छोड़ दिया जाए क्‍योंकि यह तिब्‍बतियों के अस्तित्‍व के लिए खतरा है।

क्‍या हुआ था 1954 में
चीन आज भी तिब्‍बत को अपना हिस्‍सा मानता है। साल 1954 में दलाई लामा ने चीन के राष्‍ट्रपति माओ त्से तुंग और दूसरे चीनी नेताओं के साथ शांति वार्ता के लिए बीजिंग गए। इस ग्रुप में चीन के प्रभावी नेता डेंग जियोपिंग और चाउ एन लाइ भी शामिल थे। साल 1959 में चीन की सेना ने ल्‍हासा में तिब्‍बत के लिए जारी संघर्ष को कुचल दिया। तब से ही दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित जिंदगी बिता रहे हैं।

अरुणाचल, तिब्‍बत का हिस्‍सा
जब तक भारत पर अंग्रेजों का राज था, चीन मैकमोहन रेखा को लेकर एकदम खामोश था लेकिन जैसे ही सन् 1947 में यह शासन खत्‍म हुआ, चीन बेचैन हो गया। उसकी नजरें अरुणाचल प्रदेश पर जा टिकी जिसे वह दक्षिणी तिब्‍बत का हिस्‍सा बताता है। इतिहास में ऐसी कोई घटना या किस्‍सा नहीं है जो यह साबित कर सके कि अरुणाचल प्रदेश, तिब्‍बत या फिर चीन का हिस्‍सा है। चीन हमेशा से अपने और भारत के बीच अरुणाचल प्रदेश को तनाव का मसला बनाता आया है।

क्‍यों लगती है मिर्ची
सन् 1952 में जब बांडुंग सम्‍मेलन हुआ तो पंचशील सिद्धांतों पर चीन राजी हुआ। लेकिन सन् 1961 से ही चीन, अरुणाचल प्रदेश पर आक्रामक बना हुआ है। यही वजह है कि जब कभी भी भारत सरकार का कोई प्रतिनिधि या फिर विदेशी सरकार का कोई मेहमान अरुणाचल प्रदेश जाता है तो चीन को मिर्ची लग जाती है।

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